प्रकाशित - 21 Dec 2022 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
काबुली चने की खेती करने वाले किसानों के लिए पानी की कमी एक गंभीर चुनौती बनी हुई है। लेकिन अब कृषि वैज्ञानिकाें ने एक ऐसी किस्म विकसित की है जो कम पानी में बंपर उत्पादन देगी। काबुली चने की इस नई किस्म का नाम “पूसा जेजी 16” रखा गया है। जैसा की हम सभी यह जानते हैं कि इस साल बारिश, बाढ़ और सूखे के कारण किसान भाइयों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। इन परेशानियों को ध्यान में रखते हुए देश के वैज्ञानिकों व रिसर्च सेंटर ने फसलों की ऐसी कई नई किस्में भी विकसित की हैं, जो सूखे से प्रभावित नहीं होती हैं या अधिक पानी उन्हें नुकसान नहीं पहुंचा सकता है। इन्ही फसलों में एक फसल काबुली चना हैं। काबुली चने की एक प्रजाति पूसा जेजी 16 इन सभी समस्याओं का समाधान है, तो आइए हमारी ट्रैक्टर जंक्शन की इस पोस्ट की मदद से जानते हैं काबुली चने की प्रजाति के बारे में।
चना रबी मौसम की प्रमुख दलहनी फसल है, जिसकी खेती शीतकाल में अधिक मात्रा में की जाती है। इसके उत्पादन को बढ़ाने के लिए ICAR-IARI के वैज्ञानिकों ने चने की नई नस्ल 'पूसा जेजी 16' विकसित की है। बता दें, पूसा जेजी 16 काबुली चने की प्रजाति है जिसे चिकपी वैरायटी पूसा जेजी 16 (Chickpea Variety Pusa JG 16) के नाम से भी जाना जाता है। इस किस्म को वर्तमान परिस्थितियों व जलवायु को ध्यान में रखकर बनाया गया हैं। वैज्ञानिकों ने विशेष रूप से उन क्षेत्रों के लिए विकसित किया है जहां सिंचाई करना अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा कम होता है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR), भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) ने जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय (JNKVV) जबलपुर, राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय, ग्वालियर और आईसीआरआईएसएटी, पाटन केरु ने पूसा जेजी 16, काबुली जड़ी बूटी (हर्बल किस्म) की सूखा सहिष्णु किस्म विकसित की है। इस किस्म में मध्य भारत में काबुली चने की उत्पाद को बढ़ाने की क्षमता है। बता दें कि वैज्ञानिक इस समस्या के समाधान के लिए काफी समय से लगे हुए थे। जो इस प्रजाति पूसा जेजी 16 को विकसित किया है। काबुली चने का यह प्रजाति फ्यूजेरियम विल्ट और स्टंट जैसे रोगों के प्रति सहनशील है।
काबुली चने की इस नई प्रजाति पूसा जेजी 16 को वैज्ञानिकों ने ICC 4958 से सूखा-प्रतिरोधी जीन को स्थानांतरित करके बनाया गया है। वैज्ञानिकों द्वारा इसमें जीनोमिक असिस्टेड ब्रीडिंग तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। इस प्रजाति के चने का परीक्षण वैज्ञानिकों द्वारा हर एक परिस्थिति में किया गया है। अतंत: इसे अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान कार्यक्रम द्वारा परीक्षण कर सहन सूखा होने की पुष्टि कर दी गई। इस पूसा जेजी 16 की घोषणा करते हुए ICAR-IARI प्रमुख ए.के. सिंह ने कहा कि इस प्रजाति की मध्य क्षेत्र के सूखे इलाकों में खेती करना आसान होगा।
पूसा जेजी 16 को भारत के उन क्षेत्रों के लिए तैयार किया गया है, जहां का वातावरण या जलवायु शुष्क है। जहां सिंचाई के अभाव से उपज एक हिस्से तक खराब हो जाती है। बता दें यह प्रजाति विशेष रुप से मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र, छत्तीसगढ़, दक्षिण राजस्थान, महाराष्ट्र (महाराष्ट्र में खेती) और गुजरात के मध्य क्षेत्रों में उत्पादकता बढ़ाएगी। कभी-कभी इन क्षेत्रों में सूखे के कारण 50-100 प्रतिशत उपज नष्ट हो जाती है। इस प्रकार यह इन सूखाग्रस्त क्षेत्रों के लिए काफी उपयोगी साबित हो सकता है।
चने का उपयोग इंसानों के खाने के साथ जानवरों के चारे के रूप में किया जाता है। बता दें कि संपूर्ण भारत में चने की खेती मध्य प्रदेश के उज्जैन, इंदौर, मंदसौर, रतलाम, देवास, शाजापुर व राजगढ़ में चने की खेती बड़े स्केल पर किया जाता है। चने की बुआई आमतौर पर अक्टूबर मध्य से शुरू हो जाती है। चने की अच्छी पैदावार के लिए 10 अक्टूबर से 25 अक्टूबर तक बुआई का कार्य पूरा कर लेना चाहिए।
चने की खेती करते समय विभिन्न मापदंडों से गुजरना पड़ता है। देर बुआई से फसल पर कई प्रकार के कीटों के लगने का खतरा होता है। जैसा की हम सभी जानते हैं कि चना काफी नाजुक फसल होती है। सही तरीके से देखभाल व सिंचाई आदि न करने पर इसके उत्पादन पर काफी असर पड़ता है। चने की खेती के लिए आवश्यक मानदंडों में जलवायु का ख्याल रखना पड़ता हैं -
इन सबके बाद चने की फसल में कीट जैसे दीमक, कुतरा सुंडी, फली छेदक से फसल नष्ट हो जाती है। किसानों को इस मेहनत पर पैदावार ज्यादा नहीं होती थी इन सभी बातों को ध्यान में रखकर चने की इस प्रजाति को विकसित किया गया है।
काबुली चने की प्रजाति पूसा जेजी 16 वैज्ञानिकों द्वारा विकसित कृषि क्षेत्र में एक वरदान हैं। आइए, जानते हैं पूसा जेजी 16 प्रजाति की विशेषताएं -
रबी की फसलों को सर्दी की फसल के नाम से जाना जाता है। सामान्य व सर्द वातावरण में तैयार होने वाले फसल कभी-कभी तेज धूप में खराब हो जाता है। वहीं काबुली चने की पूसा जेजी 16 प्रजाति की बुआई से लेकर पकने तक की अवधि 110 दिन है। इस अवधि के अंतराल में किसानों को सर्द वातावरण में पूसा जेजी 16 को तैयार कर सकता है।
जैसा की हम सभी जानते हैं, आज के समय में कृषि व्यवसाय का रूप ले चुका है। किसानों का ध्यान कम समय में ज्यादा पैदावार वाली फसलों की तरफ होता है। बात करें इस फसल के उत्पादन की इस फसल का कुल उत्पादन 1.3 से 2 टन प्रति हेक्टेयर है।
रबी की फसल में किसानों को डर हैं, फसलों में लगने वाले कीटों से होता है, इसके उपचार हेतु मेहनत के अलावा विभिन्न प्रकार की कीटनाशक दवाओं का उपयोग करता है। कीटनाशक फसलों के पोषक तत्वों को नष्ट कर देते हैं। इन बातों को ध्यान में रखकर काबुली चने की पूसा जेजी 16 को कीट रोधी भी बनाया गया है।
इस फसल को विकसित बी शुष्क क्षेत्रों के लिए किया है, तो अगर हम तापमान की बात करें तो यह फसल ठंड के मौसम के अनुकूल है। साथ ही साथ यह 24 से 30 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान पर अच्छी पैदावार हो सकती है।
विशेषज्ञों के अनुसार मध्य प्रदेश, बुंदेलखंड, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान के साथ-साथ महाराष्ट्र और गुजरात के सूखा प्रभावित क्षेत्रों में पूसा जेजी-16 लगाकर उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है। इन क्षेत्रों में सूखे और समुचित सिंचाई के अभाव में 50 से 100 प्रतिशत फसलें नष्ट हो जाती हैं। ऐसी परिस्थितियों में, काबुली चने की किस्म जेजी-16 सूखे की स्थिति में अच्छा उत्पादन करेगी।
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