ज्वार की नई उन्नत किस्म ‘सीएसवी 44 एफ’ : अब पशु देंगे ज्यादा दूध

Share Product Published - 13 Nov 2020 by Tractor Junction

ज्वार की नई उन्नत किस्म ‘सीएसवी 44 एफ’ : अब पशु देंगे ज्यादा दूध

चौधरी चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय के विज्ञानियों ने विकसित की नई उन्नत किस्म

देश में कृषि व पशुपालन को ज्यादा लाभप्रद बनाने की दिशा में कई प्रयोग हो रहे हैं। अब चौधरी चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय, हरियाणा के विज्ञानियों ने ज्वार की नई उन्नत किस्म ‘सीएसवी 44 एफ’ विकसित की है। कृषि विज्ञानियों का दावा है कि ज्वार की इस किस्म में अन्य प्रचलित किस्मों के मुकाबले ज्यादा मिठास है। मिठास के कारण पशु ज्वार के इस चार को चाव से खाता है और ज्यादा दूध देता है। सभी किसान भाई और पशुपालक जानते हैं कि पशुओं से अधिक दूध प्राप्त करना है तो उन्हें अच्छा चारा और संतुलित आहार खिलाना होगा। कई पशुपालक किसान पशुओं को खिलाने के लिए हरे चारे की खेती भी करते हैं। ऐसे किसानों के लिए ही कृषि विज्ञानियों ने ज्वार की नई किस्म ‘सीएसवी 44 एफ’ विकसित की है। यह किस्म पशुओं में दूध का उत्पादन बढ़ाती है साथ ही पशुओं को सेहतमंद भी रखती है।

 

सबसे पहले सरकार की सभी योजनाओ की जानकारी के लिए डाउनलोड करे, ट्रेक्टर जंक्शन मोबाइल ऍप - http://bit.ly/TJN50K1

 

चौधरी चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय के बढ़ते कदम

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार के कृषि नित नए प्रयोग कर रहे हैं। विवि का चारा अनुभाग 1970 से अब तक ज्वार की आठ किस्मों को विकसित कर चुका है। इनमें से बहु कटाई वाली किस्म एसएसजी 59-3 (1978), दो कटाई वाली किस्म एचसी 136 (1982) व एक कटाई वाली किस्में एचसी 308 (1996), एचजे 513 (2010) और एचजे 541 (2014) किसानों की पहली पसंद बनी हुई है। अब विवि के कृषि वैज्ञानिकों ने पशुओं के चारे की फसल ज्वार की नई व उन्नत किस्म ‘सीएसवी 44 एफ’ विकसित कर विश्वविद्यालय के नाम एक और उपलब्धि दर्ज करवा दी है। ज्वार की इस किस्म को विश्वविद्यालय के अनुवांशिकी एवं पौध प्रजनन विभाग के चारा अनुभाग द्वारा विकसित किया गया है। इस किस्म को भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के कृषि एवं सहयोग विभाग की ‘फसल मानक, अधिसूचना एवं अनुमोदन केंद्रीय उप-समिति’ द्वारा नई दिल्ली में आयोजित 84वीं बैठक में अधिसूचित व जारी कर दिया गया है।

 

 

ज्वार की नई विकसित किस्म ‘सीएसवी 44 एफ’ की विशेषताएं

  • ‘सीएसवी 44 एफ’ किस्म में मिठास 10 प्रतिशत से भी अधिक व स्वादिष्ट होने के कारण पशु इसे खाना काफी पसंद करते हैं।
  • इस किस्म में हरे चारे के लिए प्रसिद्ध किस्म ‘सीएसवी 21 एफ’ से 7.5 प्रतिशत व ‘सीएसवी 30 एफ’ से 5.8 प्रतिशत अधिक हरे चारे की पैदावार होगी।
  • ‘सीएसवी 44 एफ’ किस्म में अन्य किस्मों की तुलना में प्रोटीन व पाचनशीलता अधिक है, जिसकी वजह से यह पशु के दुग्ध उत्पादन में बढ़ोतरी करती है।
  • यह किस्म अधिक पैदावार देने में सक्षम है और इसे लवणीय भूमि में भी उगाया जा सकता है।
  • अधिक बारिश व तेज हवा चलने पर भी यह किस्म गिरती नहीं है। ज्वार में प्राकृतिक तौर पर पाया जाने वाला विषैला तत्व धूरिन इस किस्म में बहुत ही कम है।
  • ‘सीएसवी 44 एफ’ किस्म तनाछेदक कीट की प्रतिरोधी है व इसमें पत्तों पर लगने वाले रोग भी नहीं लगते।

 

दक्षिणी राज्यों में ज्यादा से ज्यादा लगाने की सिफारिश

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार में नई किस्म को विकसित करने वाली टीम सदस्य डा. डीएस फौगाट ने मीडिया को बताया कि हालांकि इस किस्म को एचएयू में ही विकसित किया गया है, लेकिन कमेटी द्वारा इसकी गुणवत्ता व पैदावार को ध्यान में रखते हुए अभी देश के दक्षिणी राज्यों (तमिलनाडु, महाराष्ट्र और कर्नाटक) में हरे चारे की उत्तम पैदावार के लिए सिफारिश किया गया ।उन्होंने बताया कि इस किस्म को हरियाणा के विभिन्न क्षेत्रों में परीक्षण के तौर पर लगाया गया था, जहां इसके बहुत ही सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। इसलिए यहां किसानों के लिए भी इसकी सिफारिश संबंधी प्रपोजल जल्द ही कमेटी को भेजा जाएगा।
 

ज्वार का प्रमुख विषैला तत्व धूरिन इस किस्म में बहुत कम

सामान्यत : ज्वार में प्राकृतिक तौर पर विषैला तत्व धूरिन पाया जाता है लेकिन इस किस्म में यह बहुत ही कम है। ‘सीएसवी 44 एफ’ किस्म तनाछेदक कीट के प्रति प्रतिरोधी है व इसमें पत्तों पर लगने वाले रोग भी नहीं लगते। विज्ञानियों के अनुसार चारा उत्पादन, पौष्टिकता एवं रोग प्रतिरोधकता की दृष्टि से यह एक उत्तम किस्म है। इस किस्म की हरे चारे की औसत पैदावार 407 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है, जोकि ज्वार की अन्य बेहतर किस्मों सीएसवी 21 एफ और सीएसवी 30 एफ से क्रमश: 7.5 प्रतिशत व 5.8 फीसद अधिक है। इस किस्म की सूखे चारे की औसत पैदावार 115 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। यह पूर्व में विकसित उन्नत किस्मों से अधिक है।

 

विवि के इन कृषि विज्ञानियों की मेहनत लाई रंग

विश्वविद्यालय के आनुवांशिकी एवं पौध प्रजनन विभाग के विभागाध्यक्ष डा. एके छाबड़ा ने बताया कि सीएसवी 44 एफ किस्म को विकसित करने में इस विभाग के चारा अनुभाग के विज्ञानियों डा. पम्मी कुमारी, डा. सत्यवान आर्य, डा. एसके पाहुजा, डा. एके ठकराल एवं डा. डी.एस. फौगाट की टीम की मेहनत रंग लाई है। इसके अलावा डा. सतपाल, डा. जयंती टोकस, डा. हरीश कुमार, डा. विनोद मलिक एवं डा. सरिता देवी का भी विशेष सहयोग रहा है।

 

 

अगर आप अपनी कृषि भूमि, अन्य संपत्ति, पुराने ट्रैक्टर, कृषि उपकरण, दुधारू मवेशी व पशुधन बेचने के इच्छुक हैं और चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा खरीददार आपसे संपर्क करें और आपको अपनी वस्तु का अधिकतम मूल्य मिले तो अपनी बिकाऊ वस्तु की पोस्ट ट्रैक्टर जंक्शन पर नि:शुल्क करें और ट्रैक्टर जंक्शन के खास ऑफर का जमकर फायदा उठाएं।

Quick Links

Call Back Button
scroll to top
Close
Call Now Request Call Back