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नेपियर घास : कम लागत में पांच साल तक चारे की समस्या से मुक्ति पाएं

Published - 17 Apr 2020

पशुपालकों के लिए वरदान नेपियर घास

ट्रैक्टर जंक्शन पर किसान भाइयों का एक बार फिर हम स्वागत करते हैं। सभी किसान भाई जानते हैं कि गर्मी का मौसम शुरू हो गया है और अब पशुओं के लिए हरे चारे की समस्या का सामना करना पड़ेगा। गर्मी के मौसम में अगर दुधारू पशुओं को सही आहार नहीं मिलता है तो दूध में कमी आ जाती है और किसानों को दूध बेचकर होने वाली आय कम हो जाती है। ऐसे में किसानों को नेपियर घास लगानी चाहिए। एक बार नेपियर घास लगाने के बाद 3 से 5 पांच साल तक किसानों को हरे चारे की समस्या का समाधान मिल जाता है। पशुओं के चारे की समस्या के कारण गुणवत्तापरक हरे चारे की कमी का समाधान ढूढऩे के लिए राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान काफी समय से शोध कर रहे थे जो कि कुछ माह पहले सफल हुई है। जिसके तहत संस्थान ने नेपयिर घास को हरियाणा और पंजाब राज्य की जलवायु के अनुरूप उगाने में सफलता प्राप्त की है। ट्रैक्टर जंक्शन आपको नेपियर घास के हर पहलू से अवगत करा रहा है।

सबसे पहले सरकार की सभी योजनाओ की जानकारी के लिए डाउनलोड करे, ट्रेक्टर जंक्शन मोबाइल ऍप - http://bit.ly/TJN50K1

नेपियर घास की खास बातें

  • नेपियर घास बाजरा की हाईब्रिड वैरायटी है। जो कि न केवल बंजर जमीन बल्कि खेतों की मेड़ों पर उगाई जा सकती है। केवल सिंचित करने की आवश्यकता है। 
  • बरसात का समय नेपियर घास की रोपाई करने का सही समय है। यह घास बीस से पच्चीस दिन में तैयार हो जाती है। 
  • नेपियर घास का उत्पादन प्रति एकड़ लगभग 300 से 400 क्विंटल होता है। एक बार घास की कटाई करने के बाद उसकी शाखाएं पुन: फैलने लगती है।
  • इस घास की खासियत यह है कि अगर आप इस घास को 1 बार लगाते है आने वाले 3 से 5 सालों तक हरे चारे की समस्या नहीं होगी। 
  • इसकी 25 दिन के अंतराल में कटाई कर सकते है। 
  • पहली बार इस घास को लगाने पर ये करीब 45 दिनों का समय लेती है तैयार होने में जबकि उसके बाद 25 दिन में ही तैयार हो जाती है और इसकी घास कटाई का चक्र चलता रहता है।
  • इस घास की वृद्धि की प्रारंभिक अवस्था में 12 से 14 फीसद शुष्क पदार्थ मौजूद  होता है। जिसमें औसतन 7 से 12 फीसद तक प्रोटीन, 34 फीसद रेशा तथा कैल्शियम व फास्फोरस की राख 10.5 फीसदी तक पाई जाती हैं।

नेपियर घास के लिए जलवायु

नेपियर घास की जड़ बरसात के मौसम में खेत में रोपी जाती है तथा प्रति हेक्टेयर लगभग 35-40 हजार जड़ खेत में रोपी जाती है। नेपियर घास गर्म और आर्द्रता वाले क्षेत्रों में लगाई सही से उगती है। यह ज्यादा वर्षा व ज्यादा ठंडे क्षेत्र में यह सही तरह से नहीं उग पाती है। पशुओं की संख्या को देखते हुए हरे चारे की समस्या ज्यादा है। ऐसे में ये नेपियर घास इस समस्या को दूर करने के लिए एक अच्छी भूमिका निभा रही है।

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नेपियर घास के लिए  भूमि

इसे विभिन्न प्रकार की भूमि मे उगा सकते हैं । परन्तु फसल की उपज भारी भूमियों की अपेक्षा हल्की भूमि मे अधिक होती हैं । उत्तम उपज के लिए दोमट अथवा बलुअर दोमट मृदा उपयुक्त हैं।

नेपियर घास के लिए खेत की तैयारी

खेत की तैयार के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से की जाती हैं। इसके बाद 2-5 जुताइयाँ देशी हल से करते हैं। मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए प्रत्येक जुताई के बाद पाटे का प्रयोग किया जाता हैं। भारत मे नेपियर घास की फसल रबी की फसल की कटाई के पश्चात खरीफ ऋतु में तथा बसन्त ऋतु(फरवरी - मार्च) में बोई जाती हैं । अत: इन्हीं के आधार पर खेती की तैयारी की जाती हैं।

नेपियर घास की प्रजातियां

नेपियर घास जिसे शंकर हाथी घास के नाम से भी जाना जाता है वैसे तो इसकी लगभग 30 प्रकार की प्रजातियां मौजूद हैं, लेकिन हरियाणा व पंजाब राज्यों की जलवायु के मुताबिक वैज्ञानिकों ने निम्नलिखित  प्रजातियों को अच्छा माना है-

  • आईजीएफआरआई-3
  • आईजीएफआरआई-6
  • सीओ-3

इन प्रजातियों में सामान्य घास के मुकाबले ज्यादा प्रोटीन पाया जाता। अगर हम सामान्य घास कि बात करें तो उसमें 4 से 5 फीसदी तक प्रोटीन की मौजूद होता है, लेकिन इस घास में 7 से 12 फीसद तक प्रोटीन की मात्रा पाई जाती है। जोकि  दूध उत्पादन को बढ़ाने में भी काफी लाभदायक साबित हो सकती है।

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नेपियर घास से बढ़ती है दूध की मात्रा

दुधारू पशुओं के लिए हरा चारा सबसे उपयुक्त माना जाता है। लेकिन किसान बरसाती सीजन में ही मवेशियों को उपलब्ध करा पाते हैं। गर्मियों के सीजन में खेतों में चारा ढूंढऩे से भी नहीं मिलता है। नेपियर घास गर्मियों के मौसम में भी हरी रहती है और हाईब्रिड की होने के कारण इसके खाने से दुधारू पशु 10 से 15 प्रतिशत अधिक दूध देने लगते है।

 

देश में है पशु चारे का संकट

पशुचारे का संकट पूरे देश में है। लगभग 20 करोड़ पशुओं के सापेक्ष आधा चारा ही उपलब्ध है। केंद्र सरकार की समिति ने एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें बताया गया है कि देश में हरे चारे और भूसे का संकट है। पशुओं को तीन तरह का चारा दिया जाता है, हरा, सूखा और सानी। तीनों तरह के पशु चारे का अभाव है। जितनी जरूरत है उससे हरा चारा 63 फीसदी, सूखा चारा 24 फीसदी और सानी चारा 76 फीसदी कम है। 

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