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सरसों की खेती : अब होगा बंपर उत्पादन, कृषि वैज्ञानिकों ने तैयार की नई किस्म

Published - 12 Mar 2021

जानें, सरसों की नई किस्म आरवीएम-20 की विशेषताएं और लाभ?

जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर के वैज्ञानिकों ने सरसों की एक नई किस्म तैयार की है जो अधिक उत्पादन देगी। वैज्ञानिकों का दावा है कि ये किस्म अभी तक खोजी गई अन्य किस्मों की तुलना में बेहतर उत्पादन देने में सक्षम है, साथ ही ये असिंचित क्षेत्रों के लिए भी उपयोगी साबित होगी। मीडिया में प्रकाशित खबरों के हवाले से जबलपुर कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने आरवीएम-20 नाम की ये सरसों की नई किस्म तैयार की है। वैज्ञानिकों के अनुसार सरसों की इस किस्म के दानों से अन्य किस्म की अपेक्षा 50 प्रतिशत ज्यादा तेल निकलता है। अभी तक सरसों की अन्य किस्मों से 30-35 प्रतिशत ही तेल निकाला जा सकता है। इस लिहाज से ये किस्म किसानों के लिए लाभ का धंधा साबित होगी।

 

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सरसों की नई किस्म आरवीएम-20 की विशेषताएं और लाभ

  • यह किस्म मध्यप्रदेश राज्य को ध्यान में रखकर तैयार की गई है।
  • वैज्ञानिकों ने इसे जबलपुर जिले में 20 हैक्टेयर क्षेत्र में तैयार किया है।
  • ये किस्म को सिंचित व असिंचित दोनों क्षेत्रों में उगाया जा सकता है।
  • इस किस्म के दानों से 50 प्रतिशत ज्यादा तेल निकाला जा सकता है।
  • वैज्ञानिक जबलपुर जिले के किसानों को इस खेती का प्रशिक्षण दे रहे हैं।
  • वैज्ञानिकों का मानना है कि जबलपुर जिले के कुंडम, शहपुरा, पनागर तहसील जहां पानी का संकट है, वहां सरसों की इस किस्म को आसानी से उगाया जा सकता है।

 


नई किस्म आरवीएम-20 को लेकर वैज्ञानिकों के प्रयास

इस नई किस्म आवीएम-20 को लेकर कृषि वैज्ञानिकों के प्रयास जारी है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार जबलपुर जिले में सरसों का रकबा करीब 35 हैक्टेयर है। इसमें से 20 हैक्टेयर में इस नई किस्म को तैयार किया जा रहा है। वैज्ञानिक किसानों को प्रोत्साहित करने में जुटे हुए हैं। जिले के किसानों को इस नई किस्म की खूबियों को बताया जा रहा है। इतना ही नहीं इसका इस मॉडल से खेती का प्रशिक्षण भी किसानों को दिया जा रहा है ताकि जिले में सरसों का उत्पादन बढ़ाया जा सके जिससे किसानों को लाभ हो। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि इस किस्म को उगाकर दोहरा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।


सरसों की ये किस्में भी देती है बेहतर उत्पादन

उपरोक्त किस्म के अलावा मध्यप्रदेश व राजस्थान सहित अन्य प्रदेशों के किसानों के लिए आंचलिक कृषि अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों द्वारा इजाद की गई आरवीएम-1 किस्म भी बेहतर उत्पादन देती है। इस किस्म को सरसों बीज मुरैना के कृषि अनुसंधान केंद्र में तैयार किया गया। यह किस्म को पूसा बोल्ड गुणा वाईआरटी-3 प्रजाति की सरसों को मिलाकर तैयार की गई है।


आरवीएम-1 प्रजाति की विशेषताएं

  • आरवीएम-1 प्रजाति की सरसों का बीज 108 दिन की समयावधि में फसल के रूप में पक कर तैयार हो जाता है।
  • इस प्रजाति से एक हेक्टेयर में 15 से 20 क्विंटल सरसों का उत्पादन प्राप्त होता है।
  • इस किस्म की मुख्य विशेषता यह है कि आरवीएम-1 सरसों का तेल हाई क्वालिटी का तेल माना गया है। इसे लंबे समय तक स्टोर किया जा सकता है।
  • इसमें यूरिसिक एसिड व ग्लूकोसाइनेट की मात्रा बहुत कम होती है जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नहीं बताई गई है।
  • आरवीएम-1 सरसों के तेल को कढ़ाही में गर्म करने पर झाग नहीं बनते हैं। इससे किसानों को कृषि मंडियों में नई प्रजाति की सरसों के अच्छे रेट मिलने की उम्मीद बनी रहती है।
  • इस प्रजाति के सरसों बीज से फसल लेने पर कीट व्याधि नहीं पनप पाती है। कारण यह है कि सितंबर में बोवनी के बाद दिसंबर तक फसल जब पक कर तैयार होती है उससे पहले कीट व्याधि शुरू नहीं होती।


आरवीएम-3 में 40 से 42 फीसदी तेल

कृषि अनुसंधान केंद्र मुरैना की ओर से तैयार की गई सरसों की एक और प्रजाति आरवीएम-3 है। यह किस्म 125 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। इस प्रजाति की फसल से 40 से 42 प्रतिशत मस्टर्ड ऑइल मिलता है। आरवीएम-3 प्रजाति की सरसों बीज की विशेषता यह है कि कम सिंचाई के बाद भी इसकी पैदावार पर कोई अंतर नहीं पड़ता है।

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