मल्टीलेयर फॉर्मिंग : किसानों को मालामाल करने वाली खेती की आधुनिक तकनीक

Share Product Published - 06 Jul 2021 by Tractor Junction

मल्टीलेयर फॉर्मिंग : किसानों को मालामाल करने वाली खेती की आधुनिक तकनीक

जानें, मल्टीलेयर फार्मिंग क्या है और इसके लाभ (what is Multilayer Farming and its benefits)

खेतीबाड़ी को लेकर निरंतर नई तकनीकों का प्रयोग किया जा रहा है। पहले परंपरागत तरीके से खेती होती थी जिससे किसानों को अधिक मेहनत और उसकी तुलना में कम मुनाफा होता था। धीरे-धीरे आधुनिक यंत्रों का प्रयोग खेती में होने लगा और किसानों को सुविधापूर्वक खेती करना आसान हुआ। आज वर्तमान समय में खेती की नई-नई तकनीके विकसित हो रही है जिससे किसानों को कम परिश्रम में अधिक मुनाफा मिलने लगा है। ऐसी ही एक तकनीक मल्टीलेयर फार्मिंग है जिसका प्रयोग करके किसान अपनी आय को बढ़ा सकते हैं। मल्टीलेयर फार्मिंग खेती की तकनीक जिसे बहुस्तरीय खेती के नाम से भी जाना जाता है। इसके तहत एक साथ 4 से 5 फसलों की खेती करके किसान अच्छा मुनाफा प्राप्त कर सकता है। आइए जानतें हैं आज खेती की मल्टीलेयर फार्मिंग तकनीक के बारे में।

 

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क्या है मल्टीलेयर फॉर्मिंग (Multilayer Farming)

मल्टीलेयर फॉर्मिंग तकनीक में एक से अधिक फसलों की खेती की जा सकती है। इनकी फसलों में न तो कीट पतंगों का प्रकोप रहता है और न ही खरपतवार का। आज के समय में इस मॉडल को हजारों किसान अपनाने के साथ ही अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। मल्टीलेयर फार्मिंग आज के किसान की जरूरत बन गया है। क्योंकि यदि एक फसल से किसान को नुकसान हो तो वह अन्य फसल से उसकी भरपाई भी कर सकता है और अच्छा मुनाफा भी कमा सकता है। भविष्य में इस प्रकार की खेती ही किसान को एक अच्छी आमदनी देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।


कब शुरू कर सकते हैं मल्टीलेयर फार्मिंग ( Multilayer Farming )

मल्टीलेयर फॉर्मिंग की शुरुआत कोई भी किसान किसी भी क्षेत्र का फरवरी माह में शुरू कर सकते हैं। एक साथ क्षेत्र के और मिट्टी के हिसाब से किसान चार से पांच फसल ले सकते हैं।


कैसे की जाती है मल्टीलेयर फार्मिंग (Multilayer Farming kese kare)

मल्टीलेयर फार्मिंग के तहत जैविक तरीके से जमीन की हर परत पर मौजूद पानी और पोषक तत्वों का लाभ उठाने की कोशिश की जाती है। इसके लिए एक साथ चार से पांच तरह की फसलें एक साथ उगाई जाती हैं, जिनकी जड़ें जमीन के अलग-अलग हिस्से से पानी और पोषण लेती हैं। वहीं जमीन के ऊपर भी ये फसलें अलग-अलग समय में अलग-अलग ऊंचाई तक बढ़ती हैं और एक-दूसरे को पोषित करने के साथ-साथ कीटों और खरपतवारों से भी बचाती हैं। इसमें चार फसलों के लिए एक फसल जितनी ही खाद लगती है साथ ही फसलों को एक-दूसरे से भी पोषण मिलता है।    


मल्टीलेयर फार्मिंग के लिए मंडप तैयार करना (multilayer farming techniques )

मल्टीलेयर फार्मिंग के लिए सबसे पहले खेत में मंडप तैयार किया जाता है। इसके लिए एक एकड़ खेत में 2200 बांस के डंडे लगाते हैं जिसकी लंबाई नौ दस फीट की होती है। एक दो इंच नीचे गाड़ देते हैं एक फीट ऊपर लगा देते हैं, सिर्फ सात फीट का बांस खेत में दिखता है जिसमे हमारी फसल चलती है। 5-6 फीट की दूरी पर बांस लगाते हैं। सवा सौ से डेढ़ सौ किलो तक बीस गेज पतला तार लगाते हैं। 100 किलो तार 16 गेज का लगाते हैं। इसके बाद आधा-आधा फीट के गैप से तार को बुनते हैं, गुनैइया नाम की घास या फिर कोई भी घास डालने के बाद उसके ऊपर लकड़ी डाल देते हैं जिससे घास उड़े नहीं। इससे 60-70 प्रतिशत धूप सोख लेती है, ये मंडप प्राकृतिक आपदा को फसल के नुकसान से रोकने का काम करता है। बाउंड्री बॉल ग्रीन नेट से या साड़ी से चारों तरफ से ढक देते हैं। ये देशी तरीके से फॉर्म हॉउस बन जाता है। 


एक साथ उगा सकते चार फसलें

फरवरी महीने में जमीन के नीचे अदरक लगाते हैं उसके ऊपर कोई भी साग भाजी जैसे-मेंथी, पालक, चौलाई में से कोई भी एक। तीसरी कोई भी बेल वाली फसल जिसमें कुंदरू, करेला, परवल, पड़ौरा। इसकी पत्तियां छोटी होती हैं जिससे नीचे की फसल पर कोई नुकसान नहीं होता है। इसके साथ ही पपीता लगा सकते हैं।


परत ( लेयर ) के अनुसार फसल लगाने के तरीके को ऐसे समझे (Multi Layer Farming Method)

मल्टीलेयर खेती की इस तकनीक में ज़मीन की अलग-अलग परत (लेयर) पर उगने वाली फसलों को उगाया जाता है। इसे इस प्रकार से समझा जा सकता हैं-

  • पहली लेयर - जमीन को खोदने के बाद सबसे पहले जमीन के नीचे  2 इंच की गहराई तक उगने वाली फसल जैसे अदरक या हल्दी की बिजाई की जाती है।
  • दूसरी लेयर -  इसमें सतह के ऊपर एक-दो फुट तक उगने वाली मौसमी साग-सब्जियां बीजी जाती हैं जैसे- मेथी, पालक, चौलाई इत्यादि। इन फसलों को तैयार होने पर जड़ सहित उखाड़ा जाता है, जिससे मिट्टी हल्की होती रहती है और गुड़ाई करने की भी जरूरत नहीं पड़ती।
  • तीसरी लेयर -  इसमें बेलों में उगने वाली फसलें उगाई जाती हैं जैसे- करेला, परवल, कद्दू, ककड़ी आदि। इसके लिए बांस के डंडे खेतों में खड़े किए जाते हैं। जिसके आसपास इसकी बुवाई की जाती है।
  • चौथी लेयर -   चौथी लेयर में फलदार पौधे रोपे जाते हैं, जिनकी जड़ें तीन फीट से भी ज्यादा गहरी होती है और लंबाई 4-5 फीट से ज्यादा। इसमें पपीता, नींबू, अमरूद, आडू, नाशपाती, आम, लीची समेत अन्य पौधे क्रमबद्ध तरीके से रोपे जा सकते हैं।   


मल्टीलेयर फार्मिंग में कितनी आती है लागत

इस तकनीक से खेती करने के लिए बांस, तार और घास से मंडप तैयार करना पड़ता हैं। मंडप बनाने में सवा लाख रुपए खर्च आता है। इसे एक बार तैयार कर लिया जाए तो ये लगातार पांच साल तक चलता है। इस प्रकार देखें तो एक साल में सिर्फ 25 हजार रुपए ही इस पर लागत आती है। वहीं हमारे पास इसके निर्माण में काम आने वाला सामान जैसे-बांस, घास, साड़ी है तो बहुत ही कम पैसा खर्च होता है। जबकि हम इसी काम के लिए पॉली हाउस या नेट हॉउस लगाते हैं तो 30 से 40 लाख रुपए की लागत आती है। इसके मुकाबले मंडप तैयार करने में लगने वाला खर्चा काफी कम है।  


मल्टीलेयर फॉर्मिंग से होने वाले लाभ

  • मल्टीलेयर तकनीक से खेती करने पर 70 प्रतिशत पानी की बचत होती है।
  • जमीन में जब खाली जगह नहीं रहती है, तो खरपतवार भी नहीं होते हैं।
  • एक फसल में जितनी खाद डालते हैं, उतनी ही खाद से एक से अधिक फसलों की उपज मिल जाती है।
  • फसलों को एक-दूसरे से पोषक तत्व मिल जाते हैं।
  • किसानों की लागत चार गुना कम होती है, जबकि मुनाफा 8 गुना ज्यादा मिलता है।


मल्टीलेयर फार्मिंग के लिए कहां से ले प्रशिक्षण

मल्टीलेयर फार्मिंग के लिए उद्यान विभाग की ओर से समय-समय पर प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया जाता है। वहीं कई प्राईवेट संस्थाएं भी इसके लिए शिविर लगाती है। इसकी जानकारी किसान अपने क्षेत्र के कृषि विभाग से ले सकते हैं। 


किसानों को सलाह

इस तरह की खेती में पहले तीन या चार फसलों का चयन करना होता है। इसमें एक फसल वो होती है, जो जमीन के नीचे होती है जबकि दूसरी फसल वो होती है जो जमीन के ऊपर होती है। इस के बाद बेल की तरह तीसरी और चौथी फसल बड़े पड़ों के रुप में होती है। हालांकि, आपको विज्ञान से जुड़ी पूरी जानकारी हासिल करने के बाद ही इसकी शुरुआत करनी चाहिए और उसके अपनी मिट्टी, जलवायु के आधार पर फसल का चयन करना चाहिए। इसलिए किसानों को सलाह दी जाती है कि मल्टीलेयर फार्मिंग शुरू करने से पहले इसकी पूरी जानकारी उद्यान विभाग से लें और शुरुआत में विभाग के अधिकारियों की देखरेख में इस तकनीक से खेती करें ताकि बेहतर परिणाम मिल सके।

 

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