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बाजरा की खेती : कृषि वैज्ञानिकों ने विकसित की अधिक उत्पादन देने वाली नई किस्म

Published - 04 Mar 2021

बाजरा की खेती : जानें, इस नई किस्म की विशेषताएं और लाभ

भारत में बाजरा सर्दियों के दिनों में खाए जाने वाला खाद्यान्न हैं। गेहूं की तरह ही बाजरे की रोटी, चूरमा आदि बनाकर खाया जाता है। भारत में इसकी खेती प्राचीन समय से होती आ रही है। इसकी खेती से दो लाभ हैं। इसकी खेती करने से एक ओर खाने के लिए बाजारा दाना प्राप्त हो जाता है। वहीं पशुओं के लिए भी सूखा चारा मिल जाता है। इस प्रकार किसानों के लिए बाजारा की फसल उगाना काफी फायदेमंद है। किसानों को इस फसल का बेहतर उत्पादन मिल सके इसके लिए चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार के वैज्ञानिकों ने एचएचबी-311 नामक बाजरे की नई बायोफोर्टीफाइड किस्म विकसित की है। इस किस्म को कृषि महाविद्यालय के आनुवांशिकी एवं पौध प्रजनन विभाग के बाजरा अनुभाग के वैज्ञानिकों ने विकसित किया है।

 

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क्या होती हैं बायोफोर्टीफाइड किस्में

बायोफोर्टीफाइड किस्में वे होती हैं जिसमें पोष्टिक पदार्थ- जैसे प्रोटीन, आयरन, जिंक आदि अधिक मात्रा में होते हैं इन्हें बॉयोफोर्टीफाइड वैरायटी कहा जाता है। पोष्टिक गुणों से भरपूर होने के कारण ये फसल कुपोषण से लडऩे में समक्ष है। इसी कारण वर्तमान में दुनियाभर में बाजरा और बाजरा उत्पादों की मांग लगातार बढ़ती जा रही है।

 


बाजरा में पाए जाने वाले पोषक तत्व स्वास्थ्य के लिए उत्तम

बाजरे में मुख्य रूप से 12.8 प्रतिशत प्रोटीन, 4.8 ग्राम वसा, 2.3 ग्राम रेशे, 67 ग्राम कार्बोहाइड्रेट एवं खनिज तत्व जैसे कैल्शियम-16 मिली ग्राम, लौह-6 मिली ग्राम, मैग्नीशियम -228 मिली ग्राम, फॉस्फोरस-570 मिली ग्राम, सोडियम-10 मिली ग्राम, जिंक 3.4 मिली ग्राम, पोटैशियम 390 मिली ग्राम व कॉपर-1.5 मिली ग्राम पाया जाता है। इसमें गेहूं एवं चावल से अधिक आवश्यक एमिनो अम्ल पाए जाते हैं। बाजरे के दानों का सेवन सूजन रोधी, उच्च रक्तचाप रोधी, कैंसर रोधी होता है एवं इसमें पाए जाने वाले एंटीऑक्सीडेंट यौगिक हृदयाघात के जोखिम एवं आंत्र के सूजन को कम करने में मदद करते हैं।

 

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बाजरा की एचएचबी-311 में पोषक तत्वों की मात्रा अन्य किस्मों से ज्यादा

एचएचबी-311 बाजार की किस्म में पोषक तत्वों की मात्रा बाजरा की अन्य किस्मों के मुकाबले अधिक है। इसमें लौह तत्व एवं जिंक क्रमश: 83 व 42 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम पाया जाता है। सामान्य किस्मों में इनकी मात्रा क्रमश: 45-55 व 20-25 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम होती है।


बाजरे की नई किस्म एचएचबी-311 की विशेषताएं व लाभ

  • यह किस्म जोगिया रोगरोधी है व अन्य किस्मों की तुलना में सूखा चारा व उपज अधिक देने की क्षमता है।
  • यह 75 से 80 दिनों में पककर तैयार हो जाती है।
  • अच्छा रखरखाव करने पर एचएचबी 311 किस्म 18.0 क्विंटल प्रति एकड़ तक पैदावार देने की क्षमता रखती है।
  • बाजरा में गेहूं, धान, मक्का एवं ज्वार की तुलना में शुष्क एवं निम्न उपजाऊ क्षमता, उच्च लवण युक्त भूमि एवं उच्च तापमान के प्रति अधिक प्रतिरोधक क्षमता पाई जाती है।
  • इस फसल का उत्पादन ऐसी भूमि में भी किया जा सकता है जहां पर अन्य फसल लेना संभव न हो। उन्नत किस्मों, अच्छी सस्य क्रियाओं व रोग रोधी किस्मों के विकसित होने से बाजरा की पैदावार व उत्पादकता बढ़ रही है।


इन राज्यों में की जा सकती है एचएचबी 311 की खेती

अनुसंधान निदेशक डॉ. एसके सहरावत ने मीडिया को बताया कि इनकी उच्च अनाज और उपजाऊ क्षमता व लौह तत्व की मात्रा और रोग प्रतिरोधिकता को ध्यान में रखते हुए एचएचबी-311 को राष्ट्रीय स्तर पर खेती के लिए इसकी सिफारिश की गई है। इसके तहत जोन-ए जिसमें राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, मध्य प्रदेश, पंजाब और दिल्ली और जोन-बी में महाराष्ट्र और तमिलनाडु के लिए खरीफ सीजन के लिए इसकी सिफारिश की गई है।

 

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विश्वविद्यालय की ओर से विकसित बाजरे की अन्य उन्नत किस्में

बाजरा की नई किस्म एचएचबी 311 इसके अलावा विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने एच.एच.बी. 223, एच.एच.बी. 197, एच.एच.बी. 67 (संशोधित), एच.एच.बी.-226, एच.एच.बी. 234, एच.एच.बी. 272 किस्में भी विकसित की हैं।

 

 

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