प्रकाशित - 02 Sep 2023 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
गन्ने की खेती (sugar cane field) करने वाले किसान इन दिनों गन्ने की फसल को लेकर परेशान हैं, क्योंकि गन्ने की फसल में लाल सड़न रोग (red rot disease) का प्रकोप दिखाई दे रहा है जिससे गन्ने के उत्पादन में भारी गिरावट आने की संभावना है। हाल ही में पश्चिमी उत्तरप्रदेश के हापुड जिले में गन्ने की फसल पर यह रोग दिखाई दिया है। हापुड जिले के गढ़ खादर क्षेत्र में रहने वाले गन्ना किसान इस रोग से परेशान हैं। गन्ने में यह रोग तेजी से बढ़ रहा है। इस रोग से ग्रसित गन्ना सूख जाता है और इससे फसल को नुकसान होता है। यदि समय रहते हुए गन्ने को लाल सड़न रोग से सुरक्षित कर लिया जाए तो नुकसान को कम किया जा सकता है।
लाल सड़न रोग गन्ने में लगने वाली बीमारी है। इस बीमारी की चपेट में आने के बाद गन्ने की फसल को बचाना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में किसानों को इस रोग की प्रारंभिक अवस्था में ही रोकथाम करनी चाहिए। इसके लिए किसान का जागरूक रहना जरूरी है। कृषि जानकार बताते हैं कि लाल सड़न रोग गन्ने की खतरनाक बीमारी है। इस रोग से फसल को पूरी तरह नुकसान पहुंचता है। इस समय गन्ने की को-238 प्रजाति इस रोग से ग्रसित हो चुकी है।
इस रोग से प्रभावित गन्ना की तीसरी-चौथी पत्ती पीली पड़ने लगती है, जिससे पूरा गन्ना सूखने लग जाता है। जब गन्ने के तने को लंबा करने पर वह लाल रंग का दिखाई देता है जिसके बीच-बीच में सफेद धब्बे नजर आते हैं। वहीं तने को छूने पर अल्कोहल जैसी गंध आती है। गांठों से गन्ना आसानी से टूट जाता है। बता दें कि यह एक फंफूदी जनित रोग है जिसका कोई इलाज नहीं है, एक बार फसल को यह रोग लग जाता है तो इसका उपचार नहीं है, लेकिन सावधानी और जागरुकता से इस रोग से फसल को बचाया जा सकता है।
यदि आपकी गन्ने की फसल में लाल सड़न रोग का प्रकोप नहीं हो, इसके लिए आपको इस रोग संबंध जानकारी होनी जरूरी ताकि आप शुरुआत से ही इस रोग से गन्ने की फसल को बचाने के उपाय कर सकें। गन्ने की फसल को इस रोग से बचाने के लिए यह उपाय किए जा सकते हैं।
यदि आपने भी को-238 प्रजाति के गन्ने की बुवाई कर रखी है और आपको चाहिए कि रोग लगने से पहले उसका उपचार करें। इसके लिए ट्राईकोडरमार का प्रयोग करें। यदि खड़ी फसल में रोग नजर आ रहा है तो रोग प्रभावित गन्ने को जड़ से उखाडकर नष्ट कर दें तथा जिस जगह से गन्ने को उखाड़ा है वहां पर 2 से 3 ग्राम ब्लीचिंग पाउडर पानी डाल दें।
किसानों को गन्ने की बुवाई ट्रंच विधि (tranche method of sowing sugarcane) से करनी चाहिए। इस विधि से गन्ने की बुवाई करने पर रोग नहीं लगता है और फसल भी अच्छी होती है। इस विधि से बुवाई करने के लिए दो आंख वाले गन्ने के टुकड़ों को क्यारी विधि से उगाया जाता है। इस विधि के तहत प्रति मीटर क्षेत्र में 10 गन्ने लगाए जाते हैं। बुवाई के बाद से ही फसल की देखभाल व प्रबंधन के काम में सावधानी बरती जाती है। इसके बाद गन्ने की आंखे ठीक से उगने लगती हैं। इसके लिए खाद-पानी के अलावा कीट-रोग नियंत्रण व रोकथाम के उपाय भी किए जाते हैं।
गन्ने में लाल सड़न रोग से बचाव के लिए किसान अन्य उपाय भी अपना सकते हैं, ये उपाय इस प्रकार से हैं
किसानों को चाहिए कि रबी की फसल की कटाई के बाद जिस खेत में वे गन्ने का रोपण करना चाहते हैं उस खेत की गहरी जुताई करें। इसके लिए मिट्टी पलट हल का उपयोग कर सकते हैं। यह जुताई गर्मी के महीने में ही करनी चाहिए। आमतौर पर मई-जून में मानसून आने से पहले खेत की गहरी जुताई की जाती है। खेत की गहरी जुताई का सबसे बड़ा फायदा यह है कि ऐसा करने से मिट्टी में पनप रहे जीवाणु ऊपर आ जाते हैं और तेज धूप में नष्ट हो जाते हैं जिससे मिट्टी इन कीटों से सुरक्षित हो जाती है। अब ऐसी मिट्टी में फसल की बुवाई करने से संक्रमण की कम संभावना रहती है।
किसानों को फसल का अच्छा उत्पादन लेने के लिए फसल चक्र के सिद्धांत को अपनाना चाहिए। फसल चक्र का मतलब है कि फसल को बदल-बदल कर बोना। जब फसलों को बदल-बदल कर बोया जाता है तो किसी फसल विशेष में लगने वाले जीवाणु जिनसे उन्हें पोषण मिलता है वह मर जाते हैं। जैसे- इस साल आपने गन्ने की फसल उगाई है तो उस खेत में अगले साल गन्ने की फसल की जगह कोई दलहनी या तिलहनी फसल उगाएं। इससे यह फायदा होगा कि जिन जीवाणुओं को गन्ने की फसल से पोषण मिलता था, वह नष्ट हो जाएंगे। इससे आपके लिए इस जमीन पर फिर से गन्ने को लगाना आसान हो जाएगा।
गन्ने की स्वस्थ खेती के लिए फसल चक्र को अपनाना चाहिए। इससे गन्ने को लगने वाले रोगों में कमी आती है और पैदावार में भी बढ़ोतरी होती है। इसके अलावा भूमि की उर्वरा शक्ति भी बनी रहती है। गन्ने के लिए क्षेत्र के अनुसार अपनाए जाने वाले फसल चक्र इस प्रकार से हैं
चारा- लाही – गन्ना -पेडी+ लोबिया (चारा)- गेहूं, धान- बरसीम-गन्ना-पेडी+ लोबिया (चारा) धान-गेहूं-गन्ना-पेडी-गेहूं-मूंग
धान-राई-गन्ना पेडी-गेहूं हरी खाद- आलू-गन्ना- पेडी- गेहूं चारा- लाही-गन्ना- पेडी+लोबिया (चारा)
धान-लाही-गन्ना- पेड़ी-गेहूं, धान- गन्ना- पेडी- गेहूं, धान- गेहूं- गन्ना- पेड़ी+लोबिया (चारा)
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