Published - 20 Apr 2021 by Tractor Junction
फूलों में गेंदे का भी अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है। गेंदे की बाजार में साल भर मांग बनी रहती है। समाजिक एवं धार्मिक आयोजनों सहित शादी-विवाह मेें सजावट के काम में इका प्रयोग काफी किया जाने लगा है। इसके अलावा इसका प्रयोग औषधी निर्माण में होने से इसकी मांग काफी बढ़ती जा रही है। किसान फूलों की खेती करके खेतों की रौनक बढ़ाने के साथ ही अपनी आय भी बढ़ा सकते हैं। इसका वानस्पतिक नाम टेजेटेज है। गेंदे जिसे प्रचलित भाषा में गुल या हजारे का फूल भी कहते हैं। इसकी खेती करके अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है।
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गेंदे के फूल का इस्तेमाल एंटी-बायोटीक के रूप में किया जाता है। इसके फूल में कई ऐसे एंटी-ऑक्सीडेंट्स पाए जाते हैं। इसके अलावा गेंदे के फूल में कई ऐसे तत्व पाए जाते हैं जो अल्सर और घाव को ठीक करने में मददगार होते हैं। इसके अलावा डायबिटीज, सुजाक और मूत्र रोग में भी गेंदा के औषधीय गुण से लाभ मिलता है। इतना ही नहीं आंखों की बीमारी, नाक से खून बहने पर और कान दर्द सहित सांसों से संबंधित बीमारियों में गेंदा के औषधीय गुण के फायदा मिलता है। खांसी, हाथों-पैरों की त्वचा का फटने और चोट आने पर भी गेंदा से लाभ ले सकते हैं। गेंदे का फूल एक बेहतरीन सौंदर्य उत्पाद भी है।
गेदें के मूल्य संर्वधन के लिए उत्पाद विविधता के रूप में इसके प्रचुर उत्पाद और असमय उत्पाद का प्रयोग हो सकता है। इसके वर्णक निष्कर्षण, खाने के उत्पाद, प्राकृतिक रंग के निर्माण, औषधियां, इत्र, पत्तियों से तेल के निष्कर्षण द्वारा किसानों की आय को बढ़ाया जा सकता है।
भारत में गेंदे की खेती सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है लेकिन बेहतर पैदावार के लिए बलुई दोमट मिट्टी उत्तम मानी जाती है जिसका पी.एच. 7.0 से 7.5 हो और अच्छे जल निकास वाली हो। इसकी खेती सर्दी, गर्मी व वर्षा तीनों ऋतुओं में की जा सकती है। इसके उत्पादन के लिए 15-30 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त रहता है तथा अधिक गर्मी व अधिक सर्दी से पुष्प की गुणवत्ता तथा उपज पर विपरित प्रभाव पड़ता है। गर्मियों में फसल लेेने के लिए इसकी बुवाई जनवरी-फरवरी माह, सर्दियों के लिए सितंबर माह व वर्षा ऋतु के लिए जून माह में करनी चाहिए।
गेंदें की मुख्यत: दो प्रकार की प्रजातियां पाई जाती है। जिसमें अफ्रीकन गेंदा या हजारिया गेंदा है। इन किस्मों के पौधों की ऊंचाई 60-80 सेंटीमीटर तक होती है तथा इसके पुष्पों का आकार बड़ा, गुथा हुआ एवं विभिन्न रंगों जैसे पीला, नारंगी होता हैं।
खेत की तैयारी करते समय भूमि की मिट्टी पलटने वाले हल से तीन-चार जुताइयां करके पाटा लगाकर भुरभुरी करके छोड़ दें तथा अंतिम जुताई के समय 150-200 क्विंटल सड़ी गोबर की खाद डालकर मिलाकर साथ ही, दीमक व अन्य कीटों से बचाव हेतु 4-5 क्विंटल नीम की खली डालकर मिला देवें। पौधों को खेत में रोपण से पूर्व खेत को छोटी-छोटी क्यारियों में बांट लें जिससे सिंचाई आदि कार्यों में आसानी से हो जाएं।
इसकी खेती के लिए एक हेक्टेयर के लिए सामान्य तौर पर 1.5 किलो बीज की आवश्यकता पड़ती है। जबकि संकर प्रजातियों का प्रयोग करने पर 700-800 ग्राम प्रति हेक्टेयर बीज पर्याप्त रहता है। बुवाई हेतु पुराने बीजों का प्रयोग नहीं करें। मौसम के अनुसार बीज को 8-10 सेमी ऊंची उठी हुई, 1 मीटर चौड़ी व आवश्यकतानुसार 2-3 मीटर लंबी क्यारियों में बुवाई करें। अंतिम जुताई के बाद भुरभुरी तैयार बीज की क्यारी को 1:50 (फार्मलीन व पानी) से उपचारित करे बीजों को लाइन में या छिडक़वां विधि से बुवाई करके गोबर की खाद से ढंककर झारे से पानी देते रहें। नर्सरी में अधिक जल-भराव नहीं हो।
जब पौध लगभग 30-35 दिन की या 4-5 पत्तियों की हो जाए, तब खेत या बगीचे में उसकी रोपाई कर दें। रोपाई में पौधे से पौधे की दूरी 30-35 सेंटीमीटर व लाइन से लाइन की दूरी 45 सेंटीमीटर हो। रोपाई हमेशा शाम के समय करें व रोपाई के बाद पौधों के चारों ओर से मिट्टी को हाथ से दबा दें।
खेत की जुताई से 10 से 15 दिन पहले 150 से 200 क्विंटल सड़ी गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर खेत में डाल दें साथ ही 160 किलो नाइट्रोजन, 80 किलो फॉस्फोरस व 80 किलो पोटाश की आवश्यकता होती है। नाइट्रोजन की आधी तथा फॉस्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा रोपाई के पहले आखिरी जुताई के समय भूमि में मिला दें। शेष बची नाइट्रोजन की मात्रा का लगभग एक महिने के बाद खड़ी फसल में छिडक़ाव कर दें।
गर्मियों में 4-5 दिनों के अंतराल पर व सर्दियों में 10-12 दिनों के अंतराल पर हल्की सिंचाई करते रहें। अच्छे उत्पादन के लिए नमी का रहना अति आवश्यक होता है।
रोपण के बाद खेत में समय-समय पर खुर्पी की सहायता से खरपतवारों को निकालते रहें। पौधों में अधिक शाखाओं के विकास हेतु रोपण के बाद कटाई-छंटाई करते रहें। पुष्प आते समय पौधों के पास मिट्टी चढ़ा दें, जिससे अधिक शाखाएं निकालें। निराई-गुड़ाई का पौधों की आरंभिक अवस्था में विशेष महत्व है। इससे प्रथम गुड़ाई रोपण के 20-26 दिन बाद तथा द्वितीय 40-45 दिन बाद करें। जब गेंदे की फसल लगभग 45 दिन की हो जाए तो पौधे की शीर्ष कलिका को 2-3 सेंटीमीटर काटकर निकाल दें। इससे पौधे में अधिक कलियों का विकास होता है और अधिक फूल प्राप्त होते हैं।
फूलों को तोडऩे से पहले खेत में हल्की सिंचाई करें, जिससे फूलों का ताजापन बना रहे। फूलों की तुड़ाई अच्छी तरह से खिलने के बाद ही करना चाहिए तथा फूल तोडऩे का श्रेष्ठ समय सुबह या शाम का होता है।
अफ्रीकन गेंदा से 18-20 टन, फ्रेंच गेंदा से 10-12 टन प्रति हेक्टर उपज प्राप्त होती है, जो लगाए गए मौसम व कल्चरल क्रियाओं के अनुसार कम-ज्यादा भी प्राप्त हो सकती है।
द्विस्तरीय बागवानी प्रणाली में भी फल वृक्षों के साथ गेंदे को उगाकर अधिक मुनाफा प्राप्त किया जा सकता है। गेंदे के फूलों का बाजार भाव कम होने पर किसान फूलों से बीज उत्पादन, रसायन मुक्त रंग बनाकर तथा फूलों को सीधे प्रसंस्करण उद्योगों में भी बेचकर किसान अधिक आय प्राप्त कर सकते हैं।
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