सीताफल की खेती : व्यापारिक स्तर पर शरीफा की खेती से करें बंपर कमाई

Share Product Published - 23 Apr 2022 by Tractor Junction

सीताफल की खेती : व्यापारिक स्तर पर शरीफा की खेती से करें बंपर कमाई

सीताफल (शरीफा) की खेती की पूरी जानकारी, जानें कैसे उगाया जाता है शरीफा

शरीफा (सीताफल) शरद ऋतु में मिलने वाला एक प्रकार का फल है, जिसे आमतौर पर शरीफा (सीताफल), शुगर एप्पल या कस्टर्ड एप्पल के नाम से भी जाना जाता हैं। हालांकि पहले यह माना जाता था कि यह भारत का मूल फल है, लेकिन यह पेड़ बहुत पहले अन्य देशों से लाया गया था बाद में इसकी खेती पूरे भारत में की गई। दक्षिण भारत में यह फल अपने आप भी उग आता है। शरीफा की खेती ब्राजील और भारत में सबसे आम है, और यह सबसे महत्वपूर्ण फलों की फसलों में से एक है। यह एक बहुत ही स्वादिष्ट और मीठा फल है। इस फल में औषधीय गुण भी होते हैं, इस कारण लोग इसको खाना ज्यादा पसंद करते हैं। शरीफा सूखे फलों के पेड़ों में एक महत्वपूर्ण फल फसल है। भारत में मुख्य रूप से इसकी खेती सूखा प्रवण क्षेत्रों और हल्की मिट्टी में की जाती है। रोजगार गारंटी योजना से संबंधित बागवानी विकास योजना के तहत सूखे फलदार वृक्षों की खेती में इसे शामिल किया गया है। इसलिए शरीफा की खेती किसानों के लिए किसी अवसर से कम नहीं है। क्योंकि शरीफा का खाने के अलावा व्यापारिक तौर पर भी बहुत ज्यादा इस्तेमाल होता है। इसके बीजों से तेल निकाला जाता है, जो साबुन और पेंट बनाने में काम में लिया जाता है। इसके अलावा इसके गूदे को दूध में मिलाकर आइसक्रीम तैयार किया जाता है। अगर आप भी इसकी खेती कर अच्छा लाभ कमाना चाहते हैं, तो ट्रैक्टर जंक्शन की इस पोस्ट में आपको इसकी खेती के बारे में सम्पूर्ण जानकारी दी जा रही है।

महाराष्ट्र में होती है इसकी अधिक पैदावार

भारत में इसकी खेती महाराष्ट्र, झारखंड, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, असम और आंध्रप्रदेश में सबसे ज्यादा होती हैं। महाराष्ट्र 92,320 टन शरीफे (सीताफल) के उत्पादन के साथ शीर्ष में है। महाराष्ट्र में बीड, औरंगाबाद, परभणी, अहमदनगर, जलगाँव, सतारा, नासिक, सोलापुर और भंडारा जिलों में बड़ी संख्या में सीताफल के पेड़ देखने को मिल जाते है। महाराष्ट्र के इन जिलों में काफी ज्यादा संख्या में शरीफा की खेती की जाती है। रोजगार गारंटी योजना से संबंधित बागवानी विकास योजना के तहत महाराष्ट्र में 25906 हेक्टेयर के क्षेत्र में सफलतापूर्वक शरीफा को लगाया गया है। मराठवाड़ा के धारूर और बालाघाट गांव शरीफा (कस्टर्ड सेब) के लिए प्रसिद्ध माने जाते है। 

शरीफा या सीताफल (कस्टर्ड सेब) का वैज्ञानिक परिचय

शरीफा या सीताफल (कस्टर्ड ऐपल) एक प्रकार का फल है। इसका वानस्पतिक नाम अन्नोना स्क्वामोसा है। भारत में इसे आमतौर पर शरीफा (सीताफल), शुगर एप्पल या कस्टर्ड एप्पल के नाम से भी जाना जाता हैं। इसका पेड़ छोटा और तना साफ, छाल हल्के नीले रंग की लकड़ी होती है।

शरीफा या सीताफल के बारे में

शरीफा एक ठंडा स्वादिष्ट मीठा फल होता है। इसका फल गोलाकार-शंक्वाकार, व्यास में 5 से 10 सेंटीमीटर और 6 से 10 सेंटीमीटर लंबा होता है, और इसका वजन 100 से 240 ग्राम होता है। यह अन्दर से काफी सुगंधित, मीठा, नरम, थोड़ा दानेदार और चिकना होता है, तथा हल्के पीले से मलाईदार सफेद रंग का दिखता है। इसमें 13 से 16 मिलीमीटर लंबे बीज होते हैं, जो एक शंक्वाकार मूल के चारों ओर एक परत में व्यवस्थित अलग-अलग खंड बनाते हैं। प्रति फल में भूरे से काले रंग के 20 से 40 या उससे अधिक बीज जो कठोर, चमकदार होते हैं। वहीं इनकी कुछ ऐसी किस्में भी मौजूद हैं जो लगभग बीज रहित होती हैं। शरीफा विटामिन सी और मैंगनीज, थाइमिन और विटामिन बी6 का एक उत्कृष्ट स्रोत है, और उचित मात्रा में विटामिन बी2, बी3, बी5, बी9, आयरन, मैग्नीशियम, फास्फोरस और पोटेशियम, फाइबर जैसे न्यूट्रिएंट्स की मात्रा अधिक होती हैं।

शरीफा या सीताफल का उपयोग

शरीफा या सीताफल इसलिए कहा जाता है। क्योंकि वनवास के दौरान भगवान राम को सीता मां ने यह फल उपहार स्वरूप प्रदान किया था इसका नाम तभी से सीताफल रख दिया गया और इसे शरीफा के नाम से भी जाना जाता है। सीताफल एक बहुत ही मीठा फल होता है। तथा इसे शुगर के मरीज को नहीं खाना चाहिए। सीताफल की तासीर ठंडी होती है। इसमें कैल्शिम और फाइबर जैसे न्यूट्रिएंट्स की मात्रा अधिक होती है जो आर्थराइटिस और कब्ज जैसी हेल्थ प्रॉब्लम से बचाने में मदद करता है। साथ ही इसके पेड़ की छाल में टैनिन होता है जिसका इस्तेमाल दवाइयां बनाने में होता है। इस पेड़ के पत्तों से कैंसर और ट्यूमर जैसी बीमारियों का इलाज किया जाता है। सीताफल ज्यादा उपयोग करने से यह मोटापे को बढ़ावा देता है। सीताफल को सर्दी-जुखाम में नहीं खाना चाहिए तथा इसे सुबह-सुबह खाली पेट नहीं सेवन करना चाहिए। सीताफल की तासीर ठंडी होने के कारण यह शरीर में सर्दी जुखाम को बढ़ावा देता है। सीताफल को खाने के अलावा इसका उपयोग व्यापारिक स्तर पर भी किया जाता है। बीजों को पीसकर इसके बीजों से तेल निकाला जाता है। इस तेल का इस्तेमाल साबुन और पेंट इत्यादि में  किया जाता है। साथ ही इसके फलों का उपयोग रस, शर्बत, मिठाई, वाइन और आइसक्रीम तैयार करने के लिए भी किया जाता हैं। इसके सूखे कच्चे फल, बीज और पत्तियों का चूर्ण कीटनाशक के रूप में भी उपयोग किया जाता है। क्योंकि इसके पत्तियों, तनों और बीजों में रेशा, तेल और विभिन्न क्षाराभ मौजूद होते हैं।

ऐसे करें शरीफा (सीताफल) की खेती (Sitafal ki Kheti)

शरीफे के पेड़ ऐसे उगाए -  शरीफा के पेड़ उगाने के लिए या तो पारंपरिक बीज रोपाई का प्रयोग करे या इसकी पोलीहाऊस में पौध तैयार करके खेत में रोपाई करे। सीधे बीज बुआई वि‍धि‍ में प्रति‍ हि‍ल दो बीजों की, 2 से 3 इंच गहराई में बुआई करते हैं। बुआई के 15 दि‍नो बाद 2 से 4 पत्तियां आने पर अति‍रि‍क्‍त पौधों को नि‍काल देना चाहि‍ए तथा प्रति‍ हि‍ल एक पौधा रखना चाहि‍ए। शरीफे के पेड़ को उगाने की पारंपरिक विधि बीज प्रसार है। यह सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली प्रसार विधि है। हालांकि, इस विधि में कई नुकसान हैं जैसे कम अंकुरण दर, उच्च आनुवंशिक परिवर्तनशीलता, फसल की देर से शुरुआत और लंबे पौधे होने की वजह से इन्हें संभालना मुश्किल होता है। 

शील्ड बडिंग या ग्राफ्टिंग विधि से पौधा प्रसारण - अगर सीताफल की पौध को अच्छी किस्मों की शुद्धता बनाये रखने एवं तेजी से विकास और शीघ्र फसल लेने के लिए तैयार करना है, तो कलम के माध्यम से तैयार करना चाहिए। क्योंकि कलम के माध्यम से तैयार करने पर इसका फल दो साल बाद ही बनना शुरू हो जाता है। जबकि बीज के माध्यम से तैयार की हुई पौध पर चार से पांच साल बाद फल लगने शुरू होते हैं। कलम के माध्यम से इसकी पौध तैयार करने के लिए शील्ड बडिंग और ग्राफ्टिंग विधि का इस्तेमाल करते हैं। ये दोनों विधि अलग अलग समय पर की जाती है। शील्ड बडिंग के लिए जनवरी से जून का महीना तथा ग्राफ्टिंग के लिए अक्टूबर और नवम्बर का महीना उपयुक्त होता है। इसकी कलम तैयार करने के बजाय इसे बाजार में रजिस्टर्ड नर्सरी से खरीदकर भी लगा सकते हैं। पौधे को खरीदकर लगाने से टाइम की बचत होती है और फल भी जल्दी लगने लगते हैं।

शरीफा की उन्नत किस्में 

शरीफा की किस्में स्थान, फलों के आकार, रंग, बीज की मात्रा के आधार पर वर्गीकृत किये गये है। प्रमुखतः बीज द्वारा प्रसारित होने के कारण अभी तक शरीफा की प्रमाणिक किस्मों का अभाव है। 

बाला नगर : झारखंड क्षेत्र के लिए यह एक उपयुक्त किस्म है। इसके फल हल्के हरे रंग के होते हैं। इस किस्म के फलों में बीज की मात्रा अधिक पाई जाती है। इसक एक पौधे से तकरीबन 5 किलो के आसपास फल प्राप्त किए जा सकते हैं। 

अर्का सहन : यह एक संकर किस्म है, जिसके फल अपेक्षाकृत चिकने और अधिक मीठे होते है। अर्का सहन सीताफल की एक संकर किस्म है। इस किस्म के फल बहुत रसदार होते हैं जो बहुत धीमी गति से पकते हैं। इस किस्म के फलों में बीज की मात्रा कम और आकार छोटा होता है। इसके गूदे अंदर से बर्फ की तरह सफेद दिखाई देते हैं। 

लाल शरीफा : यह एक ऐसी किस्म है जिसके फल लाल रंग के होते हैं तथा औसतन प्रति पेड़ प्रति वर्ष लगभग 40से 50 फल आते हैं। बीज द्वारा उगाये जाने पर भी काफी हद तक इस किस्म की शुद्धता बनी रहती है।

मैमथ : इसकी उपज लाल शरीफा की अपेक्षा अधिक होती है। इस किस्म में प्रतिवर्ष प्रति पेड़ लगभग 60 से 80 फल आते हैं। इस किस्म के फलों में लाल शरीफा की अपेक्षा बीजों की संख्या कम होती है। मैमथ किस्में को उत्पादन और गुणवत्ता के मामलें में अच्छी पाई जाती है। इसके अलावा भी कुछ अन्य किस्म का उतपदन अलग-अलग जगहों पर किया जाता है। इनमें वाशिंगटन पी. आई. 107, 005  ब्रिटिशग्वाईना और बारबाड़ोज जैसी विभिन्न किस्में मौजूद है।

आदर्श जलवायु और तापमान : शरीफा (कस्टर्ड एप्पल) के पौधे को वैसे तो कोई विशेष जलवायु की आवश्यकता नही होती हैं। लेकिन शरीफा एक उष्णकटिबंधीय जलवायु का पेड़ है। जिस  कारण शुष्क जलवायु वाले क्षेत्र इसकी खेती के लिए उपयुक्त है। इसके अच्छी पैदावार के लिए शुष्क और गर्म जलवायु के क्षेत्र का ही चुनाव करें। क्योंकि इसके पौधे अधिक गर्मी में आसानी से विकास करते हैं। लेकिन अधिक समय तक पड़ने वाली तेज सर्दी इसके लिए उपयुक्त नही होती। क्योंकि ज्यादा सर्दी और पाला पड़ने से इसके फल सख्त हो जाते है और वे पक नहीं पाते। इसके फलों को पकने एवं विकास के लिए 40 डिग्री तक का तापमान उपयुक्त होता है। लेंकिन अंकुरण के लिए इसे सामान्य तापमान की जरूरत होती है। इसके पौधे 40 डिग्री तापमान को भी सहन कर लेता है. लेकिन जब इस पर फूल और फल बनते हैं, उस वक्त 40 डिग्री से ज्यादा तापमान होता है तो इसके फूल और फल दोनों झड़ने लगते हैं।

मिट्टी : शरीफा की खेती पीएच स्तर 7 से 8 की अनुपजाऊ, पथरीली मिट्टी में की जा सकती है। यानि इसे लगभग सभी तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है, लेकिन अच्छी पैदावार के लिए उचित जल निकासी वाली दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती हैं। जबकि जल भराव वाली काली चिकनी मिट्टी में इसकी खेती नही की जा सकती। क्योंकि जल भराव होने पर उत्त्पन्न होने वाले कीटों के कारण पौधों में कई तरह के रोग लगने की संभावना बढ़ जाती है। इस लिए इसकी खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी जिसका पी.एच मान 5.5 से 7 हो ऐसी मिट्टी वाली भूमि का चयन करें। 

पौधों की रोपाई : शरीफा के पौधों की रोपाई से पहले खेत में गड्ढ़े तैयार करने होते है। गड्ढ़े तैयार करने के लिए समतल खेत में तीन से चार मीटर की दूरी रखते हुए दो फिट चौड़े और एक फिट गहरे गड्ढ़े तैयार कर लें। गड्ढ़ों को पंक्ति में तैयार करें और प्रत्येक पंक्ति के बीच तीन मीटर की दूरी बनाकर रखे। गड्ढ़ों के तैयार हो जाने के बाद उसमें जैविक और रासायनिक खाद की उचित मात्रा डालकर उसे अच्छे से मिट्टी में मिला दें। उसके बाद गड्ढ़ों की सिंचाई कर दें। इन तैयार गड्ढ़ों में पौधों को रोपाई करने से पहले पौधों को गोमूल या जैविक रासायनिकों से उपचारित कर शरीफा के तैयार पौधे की रोपाई इन तैयार किये गए गड्ढ़ों में करें। पौधों की रोपाई करने के बाद गड्ढ़ों को मिट्टी से भर दें और हाथ से चारों तरफ से मिट्टी को अच्छे दबा दें। इसके पौधों की रोपाई का सबसे उपयुक्त टाइम जुलाई का महीना है, क्योंकि बारिश का मौसम होने की वजह से, इस दौरान पौधों को विकास करने के लिए आदर्श वातावरण मिलता हैं।

सिंचाई : शरीफा का पौधा आसानी से सूखे की विस्तारित अवधि को संभाल लेते हैं। लेकिन पौधों को गर्मियों में पानी देना आवश्यक होता है, क्योंकि अत्यधिक गर्मी से  इसकी पत्ती और फल गिर सकते हैं। इसकी पहली सिंचाई रोपाई के तुरंत बाद करें। अगर रोपाई बीजों द्वारा की गई हैं तो बीजों के अंकुरित होने तक खेत में पर्याप्त नमी बनाये रखने के लिए 2 से 3 दिन के अन्तराल में सिंचाई करतें रहें। लेकिन जब पौधा सालभर का हो जाता है तो फिर पौधे 15 से 20 दिन के अन्तराल में सिंचाई कर लेनी चाहिए। सर्दियों के मौसम में इसकी 20 से 25 दिन में सिंचाई करनी चाहिए और गर्मियों के मौसम में इसके पौधे की सप्ताह में एक बार सिंचाई जरुर कर देनी चाहिए। 

फलों की तुडाई, पैदावार एवं लाभ : शरीफा (कस्टर्ड सेब) के पौधे खेत में लगाने के दो से तीन साल बाद फल देना शुरू कर देते हैं। इनके फलों की बनने की अवधि काफी लम्बी होती है। इसके फलों को बनने में चार महीने का वक्त लगता है। इसके फल सितम्बर माह के बाद पकने शुरू होते है। इसका तुड़ाई पूर्ण रूप से पका हुआ और कठोर अवस्था में करें।

इसके प्रत्येक पौधे से शुरूआत में 60 से 65 के आसपास फल प्राप्त होते हैं, जो पौधें की उम्र बढ़ने के साथ साथ बढ़ते हैं। कुछ सालों बाद इसके एक पूर्ण विकसित पौधे से 100 से ज्यादा फल प्राप्त होने लगते हैं। एक एकड़ में इसके 500 के आसपास पौधे लगाए जा सकते हैं। जिनसे  शरीफा (सीताफल) की सालाना 30 क्विंटल के आसपास पैदावार हो जाती हैं। जिनका बाजार भाव 40 रूपये किलो के आसपास पाया जाता हैं। जिससे किसान भाई एक साल में एक एकड़ से एक से सवा लाख तक की कमाई आसानी से कर लेता हैं।
 

अगर आप नए ट्रैक्टर, पुराने ट्रैक्टर, कृषि उपकरण बेचने के इच्छुक हैं और चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा खरीददार आपसे संपर्क करें और आपको अपनी वस्तु का अधिकतम मूल्य मिले तो अपनी बिकाऊ वस्तु को ट्रैक्टर जंक्शन के साथ शेयर करें।

Quick Links

Call Back Button
scroll to top
Close
Call Now Request Call Back