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लीची की खेती कैसे करें : जानें, लीची की उन्नत किस्में और खेती का तरीका

Published - 21 Dec 2021

जानें, लीची की खेती का सही तरीका, किस्में और सावधानियां

लीची की खेती भारत में कई जगहों पर की जाती है। ये बहुुत ही रसीला फल होता है। इसका वैज्ञानिक नाम लीची चिनेंसिस है। यह जीनस लीची का एकमात्र सदस्य है। इसका परिवार है सोपबैरी है। यह ऊष्णकटिबंधीय फल है, जिसका मूल निवास चीन है। यह सामान्यत: मैडागास्कर, नेपाल, भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान, दक्षिण ताइवान, उत्तरी वियतनाम, इंडोनेशिया, थाईलैंड, फिलीपींस और दक्षिण अफ्रीका में पाया जाता है। बता दें कि लीची की खोज दक्षिणी चीन में की गई थी। चीन के बाद विश्व स्तर पर भारत इसकी पैदावार में दूसरे स्थान पर आता है। आज हम ट्रैक्टर जंक्शन केे माध्यम से किसानों को लीची की खेती की जानकारी दे रहे हैं। आशा करते हैं कि ये जानकारी किसान भाइयों के लिए लाभदायक होगी।

भारत में कहां-कहां होती है लीची की खेती

भारत में लीची खेती पहले जम्मू कश्मीर, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में होती है। लेकिन इसकी बढ़ती मांग को देखते हुए इसकी खेती अन्य राज्यों में भी की जाने लगी है। अब बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, पंजाब, हरियाणा, उत्तरांचल, आसाम और त्रिपुरा और पश्चिमी बंगाल आदि राज्यों में इसकी खेती होने लगी है।

लीची में पोषक तत्व और विटामिन

लीची को पानी का अच्छा स्त्रोत माना जाता है। लीची में विटामिन सी, विटामिन बी6, नियासिन, राइबोफ्लेविन, फोलेट, तांबा, पोटेशियम, फॉस्फोरस, मैग्निशियम और मैग्नीज जैसे खनिज पाए जाते हैं, जो हमारे शरीर और पेट को ठंडक देते है। लीची के सेवन से लीची में पाए जाने वाले पोषक तत्व इम्यूनिटी को मजबूत बनाने में मददगार माने जाते हैं।

लीची खाने से होने वाले फायदे / लीची खाने के फायदे (litchi benefits)

लीची के सेवन से डिहाइड्रेशन से बचा जा सकता है। लीची में काफी अच्छी मात्रा में पानी पाया जाता है जो शरीर में पानी की कमी को दूर करने में मदद कर सकता है। लीची में विटामिन सी, बीटा कैरोटीन, नियासिन, राइबोफ्लेविन और फोलेट भरपूर होता है जो इम्यूनिटी को मजबूत बनाने में मदद कर सकते हैं। लीची खाने से पाचन तंत्र को दुरुस्त रखा जा सकता है। इसमें फाइबर अच्छी मात्रा में पाया जाता है जो पाचन को बेहतर बनाने में मदद कर सकता है। गर्मी में इसके सेवन से उल्टी, दस्त की समस्या से भी बचा जा सकता है।

लीची के अधिक सेवन से होने वाले नुकसान

लीची में चीनी बेहद अधिक मात्रा में होती है, जिससे मोटापा बढ़ सकता है। लीची का अधिक मात्रा में सेवन करने से अर्थराइटिस की समस्या भी हो सकती है। गठिया के मरीजों को लीची का अधिक सेवन नुकसानदायक हो सकता है। लीची की तासिर गर्म होती है। इसका अधिक मात्रा में सेवन करने से गले में खराश और दर्द की समस्या हो सकती है।

कैसा होता है लीची का पेड़ / लीची का पौधा

लीची मध्यम ऊंचाई का सदाबहार पेड़ होता है, जो कि 15-20 मीटर तक होता है, ऑल्टर्नेट पाइनेट पत्तियां, लगभग 15-25 सें.मी. लंबी होती हैं। नव पल्लव उजले ताम्रवर्णी होते हैं और पूरे आकार तक आते हुए हरे होते जाते हैं। पुष्प छोटे हरित-श्वेत या पीत-श्वेत वर्ण के होते हैं, जो कि 30 सें.मी. लंबी पैनिकल पर लगते हैं। इसका फल 3-4 से.मी. और 3 से.मी व्यास का इसका छिलका गुलाबी-लाल से मैरून तक दानेदार होता है, जो कि अखाद्य और सरलता से हट जाता है। इसके अंदर एक मीठे, दूधिया श्वेत गूदे वाली, विटामिन- सी बहुल, कुछ-कुछ छिले अंगूर सी, मोटी पर्त इसके एकल, भूरे, चिकने मेवा जैसे बीज को ढंके होती है। यह बीज 2-1.5 नाप का ओवल आकार का होता है और अखाद्य होता है। इसके फल जुलाई से अक्टूबर में फूल के करीब तीन मास बाद पकते हैं।

लीची की खेती के लिए जलवायु / लीची की वैज्ञानिक खेती

लीची की खेती (Litchi Fruit Farming) के लिए समशीतोष्ण जलवायु लीची के उत्पादन के लिए अच्छी मानी जाती है। जनवरी-फरवरी माह में मौसम साफ रहने पर जब तापमान में वृद्धि एवं शुष्क जलवायु में इसकी खेती की जाती है। इससे ज्यादा मंजर लगते हैं जिससे ज्यादा फूल एवं फल आते हैं। अप्रैल-मई में वातावरण में सामान्य आर्द्रता रहने से फलों में गूदे का विकास एवं गुणवत्ता में सुधार होता है। फल पकते समय वर्षा होने से फलों का रंगों पर प्रभाव पड़ता है।

लीची की खेती के लिए भूमि या मिट्टी (litchi ki Kheti)

लीची की खेती (litchi fruit cultivation) के लिए 5-7 पी.एच.मान वाली बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। इसके आलावा हल्की अम्लीय एवं लेटराइट मिट्टी में भी इसकी खेती की जा सकती है। जल भराव वाले क्षेत्र लीची के लिए अच्छे नहीं होते है, इसलिए इसकी खेती जल निकास वाली मिट्टी में करना अच्छा परिणाम देता है।

लीची की उन्नत किस्में

लीची की उन्नत किस्मों में शाही, त्रिकोलिया, अझौली, ग्रीन, देशी, रोज सेंटेड,डी-रोज,अर्ली बेदाना, स्वर्ण, चाइना, पूर्वी, कसबा आदि उन्नत किस्में हैं।

खेत की तैयारी

खेत की दो बार तिरछी जुताई कर लेनी चाहिए और पाटा चलाकर खेत को समतल कर लें। खेत को इस तरह तैयार करें कि उसमें पानी नहीं भर पाएं।

बिजाई का समय

इसकी बिजाई मॉनसून के तुरंत बाद अगस्त सितंबर के महीने में की जाती है। कई बार पंजाब में इसकी बिजाई नवंबर महीने तक की जाती है। इसकी बिजाई के लिए दो साल पुराने पौधे चुने जाते हैं।

पौधों की रोपाई का तरीका / लीची की खेती कैसे करें

लीची के पौधे 10x10 मी. की दूरी पर लगाना चाहिए। लीची के पौध की रोपाई से पहले अप्रैल-मई माह में खेत में 90x 90x 90 सें.मी. आकार के गड्ढे तैयार कर लेने चाहिए। इन गड्ढों को 20-25 किलोग्राम गली सड़ी हुई की खाद के साथ भर दें। 300 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश और 2 किलोग्राम बॉन मील डालें। बारिश शुरू होते ही जून के महीने में ही उचित रसायन मिलाकर इन गड्ढों को भर दें। जब ये मिट्टी बारिश से कुछ दब जाये तो इसमें पौधे रोप देना चाहिए। पौधे के चारों तरफ थाले बना देने चाहिए और इन थालों मे समय-समय पर रसायन और पानी देते रहना चाहिए।

कटाई और छंटाई

शुरुआती समय में पौधे को अच्छा आकार देने के लिए कटाई करनी जरूरी होती है। लीची के पौधों के लिए छंटाई की ज्यादा जरूरत नहीं होती। फलों की कटाई के बाद नई टहनियां लाने के लिए हल्की छंटाई करें।

लीची के साथ लें अंतरवर्ती फसलें

यह धीमी गति से उगने वाली फसल है जो कि 7-10 साल का समय लेती है। शुरुआती 3-4 साल तक अंतर फसलें उगाई जा सकती हैं जिससे आमदन बढ़ती है और मिट्टी की उपजाऊ शक्ति में भी वृद्धि  होती है। इसके इलावा खरपतवार को भी नियंत्रित किया जा सकता है। तेजी से उगने वाले पौधे जैसे कि आडू, आलू बुखारा, किन्नू अंतर फसलों के रूप में उगाए जा सकते हैं। इसके इलावा दालों और सब्जियों को भी अंतर फसलों के तौर पर उगाया जा सकता है। जब मुख्य फसल का बाग पूरी तरह बड़े स्तर पर विकास कर ले तो अंतर फसलों को उखाड़ दें। वहीं लीची का परागण कीड़ों, पतंगों और शहद की मक्खियों द्वारा किया जाता है। 20-25 शहद की मक्खियों के डिब्बे परागण करने के लिए प्रति हैक्टेयर रखे जाते हैं।

नए पौधों की देखभाल

नए पौधों को गर्म और ठंडी हवा से बचाने के लिए लीची के पौधों के आस-पास 4-5 साल के हवा रोधक पेड़ लगाएं। जंतर की फसल लगाने से फरवरी के महीने में इससे बीज भी प्राप्त किया जा सकता है। लीची के पौधों को तेज हवाओं से बचाने के लिए आसपास आम और जामुन जैसे लंबे पेड़ लगाएं।

लीची की खेती के लिए खाद एवं उर्वरक (Organic Farming Litchi)

  • 1 से 3 साल की फसल के लिए 10-20 किलो गली सड़ी हुई खाद के साथ यूरिया 150-500 ग्राम, सिंगल सुपर फासफेट 200-600 ग्राम और म्यूरेट ऑफ पोटाश 60-150 ग्राम प्रति वृक्ष लगाएं।
  • 4-6 साल की फसल के लिए गली सड़ी हुई खाद की मात्रा बढ़ाकर 25-40 किलोग्राम, यूरिया 500-1000 ग्राम, सिंगल सुपर फासफेट 750-1250 ग्राम और म्यूरेट ऑफ पोटाश 200-300 ग्राम प्रति वृक्ष लगाएं।
  • 7-10 साल की फसल के लिए गली सड़ी रूडी की खाद की मात्रा बढ़ाकर 40-50 किलोग्राम, यूरिया 1000-1500 ग्राम, सिंगल सुपर फासफेट 1000 ग्राम और म्यूरेट ऑफ पोटाश 300-500 ग्राम प्रति वृक्ष लगाएं।
  • जब फसल 10 साल की हो जाए तो गली सड़ी रूडी की खाद की मात्रा बढ़ाकर 60 किलोग्राम, यूरिया 1600 ग्राम, सिंगल सुपर फासफेट 2250 ग्राम और म्यूरेट ऑफ पोटाश 600 ग्राम प्रति वृक्ष लगाएं।

लीची में सिंचाई कार्य

विकास के शुरुआती समय में पानी लगाना बहुत जरूरी होता है। गर्मियों में नए पौधों को 1 सप्ताह में 2 बार और पुराने पौधों को सप्ताह में 1 बार पानी देना चाहिए। खादें डालने के बाद एक सिंचाई जरूर करनी चाहिए। फसल को कोहरे से बचाने के लिए नवंबर के अंत और दिसंबर के पहले सप्ताह में पानी दें। फल बनने के समय सिंचाई बहुत जरूरी होती है। इस दौरान सप्ताह में 2 बार सिंचाई करें। इस तरह करने से फल में दरारें नहीं आती और फल का विकास अच्छा होता है।

फसल की कटाई

फल का हरे रंग से गुलाबी रंग का होना और फल की सतह का समतल होना, फल पकने की निशानियां हैं। फल को गुच्छों में तोड़ा जाता है। फल तोडऩे के समय इसके साथ कुछ टहनियां और पत्ते भी तोडऩे चाहिए। इसे ज्यादा लंबे समय तक स्टोर नहीं किया जा सकता। घरेलू बजार में बेचने के लिए इसकी तुड़ाई पूरी तरह से पकने के बाद करनी चाहिए जब कि दूर के क्षेत्रों में भेजने के लिए इसकी तुड़ाई फल के गुलाबी होने के समय करनी चाहिए।

पैकिंग एवं भंडारण

तुड़ाई के बाद फलों को इनके रंग और आकार के अनुसार अलग अलग करना चाहिए। प्रभावित और दरार वाले फलों को अलग कर देना चाहिए। लीची के हरे पत्तों को बिछाकर टोकरियों में इनकी पैकिंग करनी चाहिए। लीची के फलों को 1.6-1.7 डिगरी सैल्सियस तापमान और 85-90 प्रतिशत नमी में स्टोर करना चाहिए। फलों को इस तापमान पर 8-12 सप्ताह के लिए स्टोर किया जा सकता है।

लीची की प्राप्त उपज

प्रारंभिक अवस्था में लीची के पौधों से उपज कम मिलती है। परन्तु जैसे-जैसे पौधों का आकार बढ़ता है फलन एवं उपज में बढ़ोतरी होती है। पूर्ण विकसित 15-20 वर्ष के लीची के पौधों से औसतन 70-100 कि.ग्रा. फल प्रति पेड़ के हिसाब से प्रतिवर्ष प्राप्त किये जा सकते है।

बाजार में लीची की कीमत

इंडिया मार्ट पर ए ग्रेड लीची के 10 किलो पैक की कीमत 1700 रुपए है।

 

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