Published - 31 Oct 2020
पंजाब व हरियाणा में पराली जलाने की समस्या किसानों के लिए ही नहीं, अपितु सरकार के लिए भी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। इसके लिए दोनों राज्यों की सरकारें किसानों को जागरूक करने के साथ ही पराली प्रबंधन के लिए अनुदान पर मशीनें भी उपलब्ध करा रही है ताकि पराली की समस्या से निबटा जा सके। इसी बीच हरियाणा के एक युवा किसान ने पराली की समस्या को ही उसका समाधान बना दिया। जी हां, ऐसा ही कुछ कर दिखाया है कैथल, हरियाणा के फर्श माजरा गांव के 32 वर्षीय किसान वीरेंद्र यादव ने। उन्होंने पराली को जलाने जगह उससे ही कमाई करना शुरू कर दिया। इनकी कहानी काफी दिलचस्प है और प्रेरणादायी भी।
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आस्ट्रेलिया से भारत आए इस किसान ने खेती करना शुरू किया तो उसके सामने पराली की समस्या सामने आई। जिससे निबटने के लिए इसे जलाने जगह इसे बेचकर कमाई करने का विचार उनके मन में आया और यही से शुरू हुई इस युवा किसान की सफलता की कहानी, इनका मेहनत और प्रयास रंग लाया और इन्होंने पराली बेचकर मात्र एक साल में दो करोड़ की कमाई कर डाली। वे इस सीजन में दो महीने में 50 लाख रुपए की आय प्राप्त कर चुके हैं। वहीं पराली प्रबंधन को कारोबार का रूप देकर इससे दो सौ युवाओं को रोजगार भी दे रहे हैं। बता दें कि किसान वीरेंद्र यादव को आस्ट्रेलिया की नागरिकता मिली हुई हैं। वे अपनी पत्नी व दो बेटियों सहित आस्ट्रेलिया में रह रहे थे। और वहां फल-सब्जियों का थोक का कारोबार किया करते थे जिसमें उन्हेें सालाना 35 लाख रुपए की कमाई होती थी। लेकिन वहां उनका मन नहीं लगा और वे वापिस अपने वतन भारत लौट आए और यहां आकर खेती करना शुरू किया तो उनके सामने पराली प्रबंधन की समस्या आई।
मीडिया में प्रकाशित खबरों के अनुसार वीरेंद्र के मुताबिक जब गांव में खेती के दौरान फसल अवशेष के निपटान की समस्या सामने आई। वहीं, जब पराली को जलाने से उठने वाले प्रदूषण ने दोनों बेटियों की सेहत को आफत में डाल दिया, तो उन्होंने कुछ करने की ठानी। वीरेंद्र की दोनों बेटियों को प्रदूषण के कारण एलर्जी हो गई। वह बताते हैं, तब मैंने गंभीरता से सोचा कि आखिर इस समस्या का बेहतर समाधान कैसे हो सकता है। जब पता चला कि पराली को बेचा जा सकता है, तो इसमें जुट गया। वीरेंद्र ने क्षेत्र में स्थित एग्रो एनर्जी प्लांट और पेपर मिल से संपर्क किया तो वहां से पराली का समुचित मूल्य दिए जाने का आश्वसान मिला। तब उन्होंने इसके लिए योजनाबद्ध तरीके से काम किया। न केवल अपने खेतों से बल्कि अन्य किसानों से भी पराली खरीकर बेचने का काम उन्होंने शुरू किया। इसमें सबसे जरूरी था पराली को दबाकर इसके सघन गट्ठे बनाने वाले उपकरण का इंतजाम करना, ताकि उन्हें ले जाना आसान हो जाए।
वीरेंद्र ने पराली प्रबंधन के लिए कृषि एवं किसान कल्याण विभाग से 50 प्रतिशत अनुदान पर तीन स्ट्रा बेलर खरीदे। अब सप्ताह भर पहले चौथा बेलर भी खरीद लिया है। एक बेलर की कीमत 15 लाख रुपए है। बेलर पराली के आयताकार गट्ठे बनाने के काम आता है।
वीरेंद्र बताते हैं कि दो माह के धान के सीजन में उन्होंने तीन हजार एकड़ से 70 हजार क्विंटल पराली के गट्ठे बनाए। 135 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से 50 हजार क्विंटल पराली गांव कांगथली के सुखबीर एग्रो एनर्जी प्लांट को बेची। 10 हजार क्विंटल पराली पिहोवा के सैंसन पेपर मिल को भेज चुके हैं और 10 हजार क्विंटल पराली के लिए इसी पेपर मिल से दिसंबर और जनवरी में भेजने का करार हो चुका है। इस तरह इस सीजन में अब तक उन्होंने 94 लाख 50 हजार रुपए का कारोबार किया है। इसमें से खर्च निकालकर उनका शुद्ध मुनाफा 50 लाख रुपए बनता है। अगले वर्ष जनवरी माह तक और भी कमाई होने की उम्मीद है।
पंजाब के कंगन गांव के किसान मनदीप सिंह ने बताया कि वह नकोदर के गांव बीड़ में स्थापित बिजली उत्पादन यूनिट को करीब 20,000 क्विंटल धान की पराली बेच रहा है और पराली की गांठें बनाने के बाद 135 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब के साथ बेच रहे हैं। उन्होंने कहा कि धान की पराली उनकी कमाई का स्थायी साधन बन गई है।
पराली को जलाने के वजाह किसान इसे बिजली संयत्रों को बेचकर अच्छी कमाई कर सकता है। पंजाब के किसान ऐसा करके अच्छा पैसा कमा रहे हैं इससे एक ओर तो आमदनी हो रही है तो वहीं दूसरी ओर पर्यावरण की सुरक्षा भी। मीडिया में प्रकाशित खबरों के अनुसार पंजाब राज्य के जालंधर के जिला उपायुक्त घनश्याम थोरी ने बताया कि जिला प्रशासन के प्रयास से किसान पराली प्रबंधन के प्रति जागरूक हुआ है।
पिछले साल जिले में रेक्स समेत सिर्फ 20 बेलर मशीनें थी और इस साल सरकार की 50 प्रतिशत सब्सिडी स्कीम अधीन किसानों को 12 अन्य बेलर मशीनें दीं गई हैं। उन्होंने बताया कि यह मशीन एक दिन में 20 से 25 एकड़ धान की पराली को बेल देती है और एक एकड़ में 25 से 30 क्विंटल पराली निकलती है। पराली की यह गांठें बिजली उत्पादन प्लांट की तरफ से 135 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से खरीदी जा रही है। थोरी ने बताया कि नकोदर के गांव बीड़ में स्थापित छह मेगावाट की क्षमता वाला बिजली उत्पादन यूनिट 30 हजार एकड़ में पराली का प्रबंधन कर रहा है और यह प्लांट 24 घंटे काम कर रहा है।
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