भिंडी की किस्म २०२० - देशभर में भिंडी की भारी मांग

Share Product Published - 08 Apr 2020 by Tractor Junction

भिंडी की किस्म २०२० - देशभर में भिंडी की भारी मांग

किसान भाई भिंडी लगाएं, लाभ कमाएं

ट्रैक्टर जंक्शन पर किसान भाइयों का एक बार फिर स्वागत है। आज हम बात करते हैं भिंडी की फसल के बारे में। गर्मियों के मौसम में भिंडी प्रमुख सब्जी है। देशभर में इसकी भारी मांग रहती है। देश के कई हिस्सों में किसान भाई भिंडी की फसल से एक सीजन में लाखों रुपए कमाते हैं। ट्रैक्टर किसान भाइयों को भिंडी की फसल से जुड़ी सभी प्रमुख जानकारियां साझा कर रहा है।

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भिंडी की उन्नतशील किस्मों का चुनाव

मौसम की दृष्टि से भिंडी दो प्रकार की होती है। एक जायद की भिंडी व दूसरी खरीफ की भिंडी।

  1.  जायद की भिंडी :  इसका पौधा छोटा व शीघ्र फल देता है।
  2.  खरीफ की भिंड़ी : इसका पौधा लंबा व अपेक्षाकृत देर से फसल में आता है। परंतु दोनों मौसमों के बीजों में कोई अंतर नहीं होता है। कुछ किस्मों को दोनों मौसमों में बोया जाता है। भिंडी की बहुत सी किस्में पायी जाती है।
  3. उन्नत किस्में : परभन क्रांति, पूसा सावनी, पंजाब पद्मनी, पूजा ए-4, अर्का भय, अर्का अनामिका, पंजाब-7, पंजाब-13 भिंडी की उन्नत किस्में मानी जाती है।
  4. अन्य किस्में : वर्षा, उपहार, वैशाली, लाल हाइब्रिड, ई.एम.एस.-8 (म्यूटेंट), वर्षा, विजय, विशाल आदि।

 


भिंडी की फसल के लिए भूमि

आमतौर पर भिंडी को सभी प्रकार की भूमि में पैदा किया जा सकता है। परंतु अधिक और सफल उत्पादन की दृष्टि से अच्छे जल निकासी वाली उपजाऊ दोमट, बलुई दोमट तथा मटियार दोमट मृदा उपयुक्त होती है। अच्छी पैदावार के लिए मिट्टी की जलधारण क्षमता अधिक होनी चाहिए। वर्षा ऋतु में लगाई जाने वाली भिंडी के लिए मिट्टी का जल निकास अच्छा होना चाहिए अन्यथा पौध गलन की अधिक संभावना होती है।

 

भिड़ी फसल के लिए बीज उपचार

इसके लिए बीज को को पानी में 24 से 36 घंटे के लिए भिगो दिया जाता है। तत्पश्चात छाया वाले स्थान पर सूखने के लिए रख देते हैं। बुवाई से पूर्व बीज को 2 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से किसी भी फफूंदीनाशक में अच्छी प्रकार से मिला देना चाहिए।

 

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खरीफ सीजन में भिंडी की बुवाई / भिंडी की बुवाई का तरीका

खरीफ के लिए मई से जून तक भिंडी की बुवाई की जाती है। पहाड़ों पर भिंडी की बुवाई मार्च से मई तक की जाती है। खरीफ मौसम में लाइन से लाइन की दूरी 4.5 सेमी तथा बीज से बीज की दूरी 60 सेमी रखी जाती है। बीज उत्पादन की दृष्टि से फसल लेते समय लाइनों तथा बीजों के बीच की दूरी 60&60 सेमी रखी जाती है।

 

भिंडी की खेती में खाद एवं उवर्रक का प्रबंध

साधारणतया भूमि में 8 टन गोबर खाद, 45 किग्रा नाइट्रोजन, 22 किग्रा फॉस्फोरस तथा 22 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है। गोबर खाद का प्रयोग खेत में बुवाई 3-4 सप्ताह पूर्व कर देना चाहिए तथा नाइट्रोजन की आधी एवं फास्फोरस तथा पोटाश की संपूर्ण मात्रा का प्रयोग अंतिम जुताई के साथ कर देना चाहिए। शेष नाइट्रोजन को आधी मात्रा में दो बार देते हैं। प्रथम बुवाई के एक महीने बाद तथा दोबारा दो माह बाद खड़ी फसल में दी जाती है।

 

 

भिंडी की खेती में सिंचाई और निराई - गुड़ाई 

खरीफ की फसल में पहली गुड़ाई वर्षा होने से पूर्व कर देने से अच्छी फसल मिलती है। यह भी देखा गया है कि पर्याप्त नमी न होने पर फल कड़े हो जाते हैं और उनका बाजार मूल्य कम हो जाता है और साथ ही उपज पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

भिंडी फसल की तुड़ाई

फसल में दो-ढाई महीने बाद फल तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं। तुड़ाई के बाद फल 3 से 5 दिन तक खाने योग्य रहते हैं जबकि पूसा सावनी में यह अवधि 7 दिन तक की रहती है।

भिंडी की उपज 

भिंडी की प्रति हैक्टेयर पैदावार 115-125 क्विंटल होती है। किसान भाई खरीफ की भिंडी की फसल खेत में उगाकर लाखों रुपए कमा सकते हैं।

 

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