Published - 25 Mar 2022
भारत के सभी हिस्सों में अलग-अलग प्रकार की खेती की जाती है क्योंकि देश के विभिन्न भागों की जलवायु, भूमि की उर्वरक क्षमता और भूमि का आकार भिन्न भिन्न है। भारत की लगभग 50 प्रतिशत जनसंख्या खेती पर निर्भर है। कृषि को बढ़ावा देने के लिए सरकार हर संभव प्रयास कर रही है। देश के किसानों को कृषि के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए विभिन्न प्रकार की योजनाओं से लाभान्वित भी कर रही है। ऐसे में किसानों का रुझान खेती के प्रति बढ़ने लगा है। अब किसान पारंपरिक खेती को छोड़ नगदी फसल की खेती पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। आज हम आपको एक ऐसी ही नकदी फसल की खेती के बारें में बताने जा रहे है। जिसकी एक बार खेती कर कई सालों तक पैदावार ले सकतें है। यह है लौंग की खेती। लौंग की खेती कर आप 2 से 2.5 लाख रूपये सालाना प्रति एकड़ कमा सकते है। लौंग एक मसाला वर्गीय फसल है। बाजार में इसकी मांग सदैव बनी रहती है। इसका उपयोग औषधि के रूप में भी होता है। स्वाद में कड़वा होने के कारण इसका उपयोग कीटाणुनाशक और दर्दनाशक दवाओं में होता है। लौंग की खेती कर किसान लाखों रुपए का टर्नओवर हासिल कर सकते हैं। तो इसलिए आज हम ट्रैक्टर जंक्शन की इस पोस्ट के जरिये लौंग की खेती से जुड़ी हर छोटी-बड़ी जानकारी आपके लिए लेकर आए हैं।
लौंग की खेती मसाला फसल के रूप में की जाती है। इसके फलों का मसाले में बहुत ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है। इसके अतिरिक्त इसे आयुर्वेदिक दवाइयों में भी इस्तेमाल करते है। लौंग की तासीर अधिक गर्म होती है, जिस वजह से सर्दियों के मौसम में सर्दी जुकाम हो जाने पर लौंग का काढ़ा बनाकर पीने से आराम मिल जाता है। लौंग के तेल का उपयोग खाद्य पदार्थों के स्वाद के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के औद्योगिक उत्पादों में किया जाता है। लौंग के तेल का उपयोग टूथपेस्ट, दांत दर्द की दवा, पेट की बीमारियों की दवा के उपयोग में किया जाता है। हिन्दू धर्म में लौंग को हवन और पूजा में भी इस्तेमाल करते है। लौंग एक सदाबहार पौधा होता है, जिसका पूर्ण विकसित पौधा कई वर्षो तक पैदावार देता है तथा इसका पौधा 150 वर्षो तक जीवित रहता है। किसान भाई लौंग की खेती कर अधिक समय तक पैदावार प्राप्त कर सकते है।
लौंग का पौधा एक सदाबहार पौधा है। इसके पौधों को बारिश की अधिक जरुरत पड़ती है। साथ ही इसका पौधा तेज धूप और सर्दी को सहन नहीं कर सकतें है। इसके पौधों को उचित विकास के लिए अनुकूल मौसम की आवश्यकता होती है। देश के विभिन्न भागों की जलवायु, भूमि की उर्वरक क्षमता भिन्न भिन्न है। देश में अनुकूल मौसम की स्थिति के कारण, लौंग की खेती महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में की जाती है। लौंग की खेती कोंकण कृषि विश्वविद्यालय के अंतर्गत विभिन्न अनुसंधान केंद्रों पर की जाती है।
भारत के उन क्षेत्रों में लौंग की खेती उपयुक्त है जहां की जलवायु उष्ण कटिबंधीय तथा गर्म होती है। लौंग की खेती करने के लिए बलुई दोमट मिट्टी तथा नम कटिबंधीय जलवायु की आवश्यकता होती है। इसकी खेती को जलभराव वाली भूमि में नहीं करना चाहिए। जलभराव की स्थिति में इसके पौधों के खराब होने की स्थिति बढ़ जाती है। लौंग के पौधों को सामान्य वर्षा की आवश्यकता होती है तथा अधिक तेज धूप और सर्दियों में गिरने वाला पाला इसके पौधों के लिए हानिकारक होता है। इसकी खेती ठंडे और अधिक बारिश वाले स्थानों पर संभव नहीं है। पौधों की अच्छी वृद्धि के लिए छायादार जगह और 30 से 35 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है। इसकी खेती के लिए भूमि का पीएच मान 6.5 से 7.5 के बीच होनी चाहिए।
लौंग की खेती के लिए सबसे पहले खेत को अच्छे से तैयार करना जरूरी है। सबसे पहले खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए ताकि पहले वाली फसल के अवशेष और कीट आदि नष्ट हो जाए। गर्मियों में खेत की गहरी जुताई करने से फसल में कीटों का प्रकोप कम होता है जिससे बेहतर उत्पादन मिलता है। खेत की जुताई के लिए किसान भाई रोटावेटर का उपयोग कर सकते हैं। रोटावेटर की सहायता से खेत की दो से तीन बार गहरी जुताई करनी चाहिए ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए। इसके बाद खेत को पाटा लगाकर समतल कर लेना चाहिए। लौंग की खेती में इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि खेत में जलभराव नहीं होना चाहिए। इसके लिए खेत में जलनिकासी की उचित व्यवस्था करनी चाहिए। खेत की तैयारी के बाद लौंग के पौधे लगाने के लिए 15 से 20 फीट की दूरी पर एक मीटर व्यास के चौड़े और डेढ़ से दो फीट गहरे गड्डे तैयार करने चाहिए। इन गड्ढों को तैयार करते समय खाद और उर्वरक की आवश्यक मात्रा मिट्टी में मिलाकर गड्ढों में भर देनी चाहिए और ऊपर से सिंचाई कर देनी चाहिए ताकि गड्ढों में मिट्टी का जमाव सही तरीके से हो सके।
लौंग के बीज को तैयार करने के लिए लौंग के पेड़ से पके हुए कुछ फलों को इकट्ठा किया जाता है। इसके बाद उनको निकालकर रखा जाता है। जब बीजों की बुआई करनी हो, तब पहले इसको रातभर भिगोकर रखें। इसके बाद बीज फली को बुआई करने से पहले हटा दें। ध्यान रहे बीजों से पौधों को तैयार करने से पहले बीजों को उपचारित कर लेना चाहिए। चूँकि लौंग के बीजों से पौधों को तैयार होने में 2 वर्ष का समय लग जाता है, इसलिए यदि आप चाहे तो इसके पौधों को किसी सरकारी रजिस्टर्ड नर्सरी से भी खरीद सकते है, इससे आपका समय बचेगा और पैदावार भी जल्द प्राप्त होगी। इसके तैयार पौधों को बारिश के मौसम में लगाना काफी उपयुक्त माना जाता है। इस दौरान सिंचाई की कम जरूरत होती है, तथा मौसम में आद्रता बनी रहती है, जो पौधों के अंकुरण के लिए अधिक फायदेमंद होता है। लौंग के पौधों को खेत में तैयार किये गड्ढो में लगाया जाता है, इससे पहले इन गड्ढो में एक छोटा सा गड्ढा बना लिया जाता है। फिर इन छोटे गड्ढो में पौधों को लगाकर मिट्टी से अच्छी तरह से ढक दिया जाता है। लौंग की खेती मिश्रित खेती की तरह की जाती है। इसलिए इसके पौधों को अखरोट या नारियल के बगीचों में भी लगाया जा सकता है। जिससे पौधों को छायादार वातावरण मिल जाता है, और पौधा अच्छे से विकास करता है।
इसके पौधों को अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई को पौध रोपाई के तुरंत बाद कर देना चाहिए। यदि पौधों को बारिश के मौसम में लगाया गया है, तो आवश्यकता पड़ने पर ही सिंचाई करनी चाहिए। इसके अतिरिक्त जिन पौधों की रोपाई गर्मियों के मौसम में की गई है, उन्हें सप्ताह में एक बार पानी जरूर दें। वहीं सर्दियों के मौसम में इसके पौधों को 15 से 20 दिन के अंतराल में सिंचाई करनी चाहिए।
लौंग के पौधे को शुरुआत में कम उर्वरक की जरूरत होती है। इसके लिए गड्ढो को तैयार करते समय प्रत्येक गड्ढो में 15 से 20 किलो पुरानी गोबर की खाद और लगभग 100 ग्राम एन.पी.के. की मात्रा को गड्ढो में पौधों की रोपाई से एक महीने भर दिया जाता है। इसके पौधे की वृद्धि के साथ साथ उर्वरक की मात्रा में भी वृद्धि कर देनी चाहिए। पौधों को खाद देने के तुरंत बाद उनकी सिंचाई कर देनी चाहिए।
लौंग के पौधे रोपाई के तकरीबन 4 से 5 वर्ष जैसे लम्बे समय बाद पैदावार देना आरम्भ करते है। लौंग के फल पौधों में गुच्छे के भांति लगते है, जो देखने में गुलाबी रंग के होते है। इसके फूलो को खिलने से पहले तोड़ लेना चाहिए। ताजी कलियाँ लालिमा लिए हुए हरी होती है। इसका फल अधिकतम 2 सेमी. लम्बा होता है, जो सूखने के बाद लौंग का रूप ले लेता है। लौंग की शुरुआती पैदावार काफी कम होती है, किन्तु एक बार जब पौधा पूर्ण रूप से विकसित हो जाता है, तो इसके एक पौधे में तकरीबन 2 से 3 किलोग्राम लौंग प्राप्त हो जाती है। लौंग का बाजार भाव 800 से 1000 रूपए के मध्य होता है, तथा एक एकड़ के खेत में 100 से अधिक पौधे तैयार हो जाते है। इस हिसाब से किसान लौंग की खेती कर ढाई से तीन लाख रूपए तक की कमाई आसानी से कर सकते है।
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