Published - 17 Nov 2021 by Tractor Junction
पुदीने को मैंथा या मिंट के नाम से भी जाना जाता है। ये एक खुशबूदार जड़ी-बूटी के रूप में जाना जाता है। साधारणत: इसका प्रयोग जलजीरा बनाने, चटनी बनाने और कई व्यंजन बनाने में किया जाता है। पुदीने से पीपरमेंट बनाया जाता है। इसका प्रयोग तेल, टूथ पेस्ट, माउथ वॉश आदि में किया जाता है। इसके अलावा पुदीने सूखाकर स्टोर भी किया जा सकता है जिसका प्रयोग गर्मियों में छाछ, दही आदि में डालकर प्रयोग किया जा सकता है। यदि इसकी सही तरीके से खेती की जाए और बाजार की मांग के अनुरूप उत्पादन किया जाए तो इससे लाखों रुपए की कमाई की जा सकती है। आज हम ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से हमारे किसान भाइयों को पुदीने की खेती का सही तरीका और इसके उत्पादन काल में रखने वाली सावधानियों के बारे में बताएंंगे जिससे अधिक उत्पादन के साथ ही अधिक लाभ प्राप्त हो सके।
पुदीने के पौधे की औसतन ऊंचाई 1-2 फीट के करीब होती है। इसमें फैलने वाली जड़े होती हैं। इसके पत्ते 3.7-10 से.मी. लंबे होते हैं। इसके फूल छोटे और जामुनी रंग के होते हैं। पुदीने के पौधे का मूल मैडिटेरेनियन बेसिन है। यह ज्यादा अंगोला, थाइलैंड, चीन, अर्जेंनटीना, ब्राजील, जापान, भारत और पारागुए में पाया जाता है। भारत में उत्तर प्रदेश और पंजाब भारत के पुदीना उत्पादक राज्य हैं।
पुदीना मैंथा के नाम से जानी जाने वाली एक क्रियाशील जड़ी बूटी है। पुदीना को तेल, टूथ पेस्ट, माउथ वॉश और कई व्यंजनों में स्वाद के लिए प्रयोग में लाया जाता है। इसके पत्ते कई तरह की दवाइयां बनाने के लिए प्रयोग में लाए जाते हैं। पुदीने से तैयार दवाइयों को नाक, गठिया, नाडियां, पेट में गैस और सोजिश आदि के इलाज के लिए प्रयोग में लाया जाता है। इसे व्यापक श्रेणी की दवाइयां बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है।
पुदीने की खेती समशीतोष्ण जलवायु के साथ उष्ण एवं उपोषण जलवायु में भी की जा सकती है। अत्यधिक ठंड वाले महीनों को छोडक़र इसकी खेती साल भर की जा सकती है। पुदीने की खेती के लिए गहरी उपजाऊ मिट्टी जिसकी जल धारण क्षमता अच्छी हो, उसमें उगाया जाता है। इसके अलावा इसे जल जमाव वाली मिट्टी में उगाया जा सकता है। इसकी खेती के लिए मिट्टी में नमी होना जरूरी है। मिट्टी का पीएच मान 6 से 7.5 होना चाहिए।
पुदीने की उन्नत किस्मों में एमएएस-1, कोसी, कुशाल, सक्ष्म, गौमती (एच. वाई. 77), शिवालिक, हिमालय, एल-11813, संकर 77, ई.सी. 41911 आदि प्रमुख किस्में है। जो अधिकतर उगाई जाती है।
पुदीने की बुवाई का समय 15 जनवरी से 15 फरवरी का होता है। देर से बुवाई करने पर तेल की मात्रा कम प्राप्त होती है। वैसे रबी की फसल के साथ भी इसे उगाया जा सकता है। यानि दिसंबर माह में भी इसे उगाया जा सकता है।
खेत की पहली गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें, इसके बाद दो जुताइयां हैरो से करें। अंतिम जुताई से पहले 20-25 टन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से अच्छी प्रकार से सड़ी हुई गोबर की खाद खेत में मिलाएं तथा पाटा लगाकर खेत को समतल कर लें। ध्यान रहे कि गोबर की खाद अच्छी प्रकार से सड़ी हो, अन्यथा दीमक लगने का भय रहेगा। अब पुदीने की बिजाई के लिए सुविधाजनक आकार के बैड तैयार कर करें।
सबसे पहले इसके बीजों की नर्सरी में बुवाई करें। नर्सरी में जल निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। बीज को 2-3 से.मी. की गहराई में बोना चाहिए। जब पौधों में 3-4 पत्तियां आने लगे उसके बाद पौधे की मुख्य खेत में रोपाई करें। बिजाई से पहले पौधे की बारीक जड़ 10-14 से.मी. काटें। पुदीने की जड़ को आकार और जड़ के हिसाब से बोएं। पौधे की बारीक जड़ की रोपाई 40 से. मी. के फासले पर और कतार से कतार का फासला 60 से.मी होना चाहिए। बिजाई के बाद मिट्टी को नमी देने के लिए सिंचाई करें।
प्रजनन क्रिया जड़ के भाग या टहनियों द्वारा की जाती है। अच्छी पैदावार के लिए 160 किलो भागों को प्रति एकड़ में प्रयोग करें। जड़े पिछले पौधों से दिसंबर और जनवरी के महीने में प्राप्त की जाती है।
फसल को जड़ गलने से बचाने के लिए बिजाई से पहले बीजे जाने वाले उपचार कप्तान 0.25 प्रतिशत या आगालोल 0.3 प्रतिशत या बैनलेट 0.1 प्रतिशत से 2-3 मिनट के लिए किया जाना चाहिए। रोपाई के बाद नदीनों की रोकथाम के लिए सिनबार 400 ग्राम की प्रति एकड़ में स्प्रे करें। खरपतवारों से बचाव के लिए एट्राजीन और सिमाजीन 400 ग्राम, पैंडीमैथालीन 800 मि.ली. और ऑक्सीफ्लूरोफेन 200 ग्राम की बूटीनाशक स्प्रे प्रति एकड़ में करें।
खेत की तैयारी के समय रूड़ी की खाद 80-120 क्विंटल प्रति एकड़ में डालें और अच्छी तरह मिला दें। नाइट्रोजन 58 किलो (यूरिया 130 किलो), फासफोरस 32-40 किलो (सिंगल सुपर फासफेट 80-100 किलो), पोटाशियम 20 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश 33 किलो) प्रति एकड़ के हिसाब से डालें।
हाथों से लगातार गोडाई करें और पहली कटाई के बाद खेत को नदीन मुक्त करें। नदीनों की रोकथाम के लिए सिनबार 400 ग्राम प्रति एकड़ में प्रयोग करें। नदीनों को नियंत्रित करने के लिए जैविक मल्च के साथ ऑक्सीफलोरफिन 200 ग्राम या पैंडीमैथालीन बूटीनाशक 800 मि.ली को प्रति एकड़ में प्रयोग करें। यदि नदीन ज्यादा हो तो डालापोन 1.6 किलोग्राम प्रति एकड़ या ग्रामाक्जोन 1 लीटर और डयूरॉन 800 ग्राम या टेरबेसिल 800 ग्राम की प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
गर्मियों में मॉनसून से पहले जलवायु और मिट्टी के आधार पर 6-9 सिंचाइयां अवश्य की जानी चाहिए। मॉनसून के बाद 3 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई सितंबर महीने में, दूसरी अक्टूबर में और तीसरी नवंबर महीने में की जानी चाहिए। सर्दियों में ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन यदि सर्दियों में बारिश न हो तो एक सिंचाई जरूर देनी चाहिए।
पौधे 100-120 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। जब निचले पत्ते पीले रंग के होने शुरू हो जाएं, तब कटाई करें। कटाई दराती से और बूटियों को मिट्टी की सतह के 2-3 से.मी. ऊपर से निकालें। अगली कटाई पहली कटाई के बाद 80 दिनों के अंतराल पर करें। ताजी पत्तियों को उत्पाद बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है।
कटाई करने के बाद तेल निकालने के लिए उसके नर्म तनों का प्रयोग किया जाता है। फिर पुदीने के तेल को पैक करके बड़े स्टील के या एल्यूमीनियम के बक्सों में रखा जाता है। इसके अलावा पुदीने की पत्तियों को सूखा कर इसका पाउडर तैयार कर साल भर के लिए स्टोर कर सकते हैं। इसका उपयोग छाछ, दही में डालने के अलावा कई प्रकार से किया जा सकता है।
जड़ की बुवाई होने के बाद फसल 60 से 70 दिन में बाजार में पहुंच जाती है। बाजार में इसका भाव 100 से 150 रुपए पसेरी (पांच किलो) बिकता है। एक हेक्टेयर में एक किसान एक लाख रुपए से सवा लाख रुपए का मुनाफा उठा लेते हैं।
अगर आप अपनी कृषि भूमि, अन्य संपत्ति, पुराने ट्रैक्टर, कृषि उपकरण, दुधारू मवेशी व पशुधन बेचने के इच्छुक हैं और चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा खरीददार आपसे संपर्क करें और आपको अपनी वस्तु का अधिकतम मूल्य मिले तो अपनी बिकाऊ वस्तु की पोस्ट ट्रैक्टर जंक्शन पर नि:शुल्क करें और ट्रैक्टर जंक्शन के खास ऑफर का जमकर फायदा उठाएं।