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रबी फसलों की अच्छी पैदावार के लिए - जानें, उर्वरक देने का तरीका

प्रकाशित - 18 Nov 2022

जानें, रबी फसलों में खाद व उर्वरक देने का तरीका और इसके लाभ

देश में खरीफ की फसल की कटाई का काम लगभग पूरा हो चुका हैं। किसान रबी सीजन की फसलों की बुवाई का काम शुरू कर चुके हैं व बहुत से क्षेत्रों में रबी फसलों की बुवाई का काम पूरा भी हो चुका हैं। रबी फसलों का अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए किसानों को खाद और उर्वरक के प्रयोग पर विशेष ध्यान देना चाहिए। किसानों को इस बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि कौन सी फसल में कौन सी खाद का उपयोग करना है और कब करना हैं। विभिन्न फसलों के लिए अलग-अलग प्रकार की खाद का उपयोग होता हैं। इसलिए किसानों को फसल का अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए ध्यान रखने की जरुरत है की कब और किस फसल के लिए कौन सी खाद का उपयोग करें। गलत तरीके से खाद का उपयोग करने से कभी-कभी किसानों की फसल खराब हो जाती हैं व खर्च भी बढ़ जाता हैं। आज हम ट्रैक्टर जंक्शन की इस पोस्ट के माध्यम से आपको रबी सीजन की प्रमुख फसलों में खाद के प्रयोग से जुड़ी सभी जानकारी आपके साथ साझा करेंगे।

रबी सीजन में बोई जाने वाली प्रमुख फसलें

रबी सीजन की फसल भारत में अक्टूबर और नवंबर माह के दौरान बोई जाती है और फसल की कटाई फरवरी और मार्च महीने में की जाती है। आलू, मसूर, गेहूं, जौ, तोरिया (लाही), मसूर, चना, मटर व सरसों रबी सीजन की प्रमुख फसलें हैं। वहीं बात करें रबी सीजन की प्रमुख सब्जी फसलों में टमाटर, बैगन, भिन्डी, आलू, तोरई, लौकी, करेला, सेम, बण्डा, फूलगोभी, पत्ता-गोभी, शकरकंद, गाठ-गोभी, मूली, गाजर, शलजम, मटर, चुकंदर, पालक, मेंथी, प्याज, आलू, आदि सब्जियां इस सीजन में उगाई जाती हैं।

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भारत में उपयोग की जाने वाली प्रमुख उर्वरक हमारे देश में प्रमुख रूप से 3 प्रकार की खाद का उपयोग फसलों के अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए किया जाता हैं। वो है डीएपी, एनपीके और यूरिया हैं।

1. डीएपी (DAP)

इस खाद का उपयोग हमारे देश में 1960 से शुरू हुआ। इसका पूरा नाम diammonium phosphate (DAP) है। डीएपी एक रासायनिक खाद है तथा अमोनिया आधारित खाद है। डीएपी खाद में 18 प्रतिशत नाइट्रोजन, 46 प्रतिशत फास्फोरस रहता है। इसमें 18 प्रतिशत नाइट्रोजन में से 15.5 प्रतिशत अमोनियम नाइट्रेट होता है तथा 46 प्रतिशत फास्फोरस में से 39.5 प्रतिशत फास्फोरस होता है। फास्फोरस के उपयोग से पौधों की जड़ें मजबूत होती है इसलिए डीएपी खाद का उपयोग दो तरह के पौधों के लिए किया जाता है। जड़ आधारित पौधों तथा फूल आधारित पौधों के लिए। जैसे– आलू, गाजर, मूली, सकरकंद, प्याज आदि। इसके आलावा फूल या फल वाले पौधों के लिए फास्फोरस का उपयोग करते है। 

2. एनपीके (NPK)

एनपीके खाद में 12 प्रतिशत नाइट्रोजन, 32 प्रतिशत फास्फोरस तथा 16 प्रतिशत पोटैशियम होता है। अगर जिंक कोटेड खाद है तो 0.5 प्रतिशत जिंक की मात्रा रहती है। इस खाद में 12 प्रतिशत नाइट्रोजन रहने के कारण पौधों के विकास के लिए उपयोग कर सकते हैं। एनपीके में 16 प्रतिशत पोटैशियम होने के कारण इस खाद को किसी भी पौधों के लिए उपयोग कर सकते हैं जो की फूल से फल देता है। इस खाद का उपयोग पौधा से फूल आने की अवस्था में करना उपयुक्त होता है। पोटैशियम की कमी से पौधों की नई पत्तियां पीली पढ़ने लग जाती है। 

3. यूरिया

यूरिया खाद में केवल नाइट्रोजन होता है। नाइट्रोजन की कमी होने के कारण पौधे का विकास कम होता है तथा पौधे की पत्तियां पीली पड़ने लगती है। यूरिया पौधे का विकास करने के साथ-साथ पत्तियों को हरा रखती है। जिससे पौधों को प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया करने में आसानी होती है। यूरिया सभी तरह की फसल तथा पौधों के लिए उपयोगी होती  हैं। यूरिया का प्रयोग करते समय ध्यान देने की जरूरत है की यूरिया खाद के ज्यादा प्रयोग से पौधा की पत्तियां भी मुरझा सकती है।

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खाद और उर्वरक का प्रयोग कैसे करें

फसल में अधिक उपज व पौधे के अच्छे विकास के लिए खाद की सही मात्रा और सही समय पर प्रयोग करना आवश्यक होता हैं। खाद का सही तरीके से इस्तेमाल करके किसान अपनी फसल का उत्पादन बढ़ा सकते हैं। फसलों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए उर्वरकों का बहुत ही महत्त्वपूर्ण योगदान है, लेकिन उर्वरक के उपयोग का पूरा लाभ तभी मिल सकता है जब मिट्टी की जाँच करने के बाद खेत के आधार पर संतुलित उर्वरक का प्रयोग किया जाए। नाइट्रोजन युक्त उर्वरकों के अधिक प्रयोग से पैदावार एवं मिट्टी के स्वास्थ्य पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ता है। निर्धारित मात्रा से आधी मात्रा में खाद डालने से फसलों का उत्पादन काफी कम होता है। तय मात्रा से अधिक खाद डालने पर उत्पादकता में वृद्धि नहीं होती साथ-ही-साथ यह खेत की मिट्टी के लिए लाभकारी नहीं होता। जैविक खाद या कम्पोस्ट के साथ-साथ संतुलित उर्वरकों के प्रयोग करने पर ध्यान देने की आवश्यकता है जिससे मिट्टी स्वास्थ्य बनी रहे एवं वर्षों तक फसल की अच्छी उपज भी प्राप्त की जा सके। आप खाद का इस्तेमाल निम्नलिखित तरीके से करके अपनी फसल का सही उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं

  •  खाद का प्रयोग फसल के अनुसार करना चाहिए।
  • जिन क्षेत्रों में सिंचाई की उपयुक्त व्यवस्था हैं, वहां की खाद्य फसलें, तिलहनी-दलहनी फसलों में सही मात्रा में फास्फेट, पोटाश, जस्ता बुआई के समय बीज के साथ ही देना चाहिए।
  • दलहनी फसलों में नाइट्रोजन की पूरी मात्रा बुआई के समय फास्फोरस, पोटाश के साथ देना उपयुक्त होता हैं।
  • तिलहनी फसलों में नाइट्रोजन की आधी मात्रा, सलफर, पोटाश को बीज के साथ देना चाहिए बचे हुए नाईट्रोजन को फसल में फूल आने की अवस्था में देना अधिक लाभकारी होता है।
  • गन्ने में नाइट्रोजन की एक तिहाई मात्रा बुआई के समय एक तिहाई बुआई के 21 दिनों बाद तथा बची हुई मात्रा बुआई के 35-40 दिनों बाद डालना उपयुक्त होता हैं।

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