Published - 19 Nov 2021 by Tractor Junction
आजकल औषधीय खेती का चलन तेजी से बढ़ रहा है। जागरूक किसान अपनी आय बढ़ाने के लिए पारंपरिक खेती से मुंह मोड़ रहे हैं और अधिक मुनाफे वाली खेती करने में ज्यादा रुचि ले रहे हैं। जो किसान अभी तक पिछड़े हुए हैं उनको भी पारंपरिक खेती का मोह छोड़ कर औषधीय खेती करनी चाहिए। यहां बात करते हैं ईसबगोल की खेती की। किसानों की जानकारी के लिए बता दें कि कम समय में तैयार होने वाली ईसबगोल की फसल किसानों को मालामाल कर सकती है। ईसबगोल एक औषधीय प्रजाति का पौधा है। देखने में यह पौधा झाड़ी के समान लगता है। फसल के रूप में इसमें गेहूं जैसी बालियां लगती हैं। ईसबगोल की भूसी में अपने वजन की कई गुना पानी सोख लेने की क्षमता होती है।
भारत में ईसबगोल की खेती राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, गुजरात और मध्यप्रदेश में अधिक की जाती है। ईसबगोल का इस्तेमाल कई प्रकार की बीमारियों को दूर करने में किया जाता है वहीं इसकी पत्तियां पशुओं के चारे के रूप में काम ली जाती हैं। इस तरह से किसानों को दोहरा लाभ होता है। पशुओं के चारे का प्रबंध भी अलग से नहीं करना पड़ता और ईसबगोल की फसल तैयार होने पर मंडी मेंं इसके अच्छे दाम मिलते हैं। आइए, जानते हैं ईसबगोल की खेती कैसे की जाती है? इसके लिए कैसी जलवायु उपयुक्त रहती है और कौन-कौन सी इसकी उम्दा किस्में है जो अधिक पैदावार दे सकती हैं?
ईसबगोल की खेती करने के इच्छुक किसान भाइयों को चाहिए कि वे अपने क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति के आधार पर ईसबगोल की किस्मों का चुनाव करें। इससे उनको प्रति हेक्टेयर उत्पादन वृद्धि का लाभ मिल सकेगा। यहां ईसबगोल की उन्नत किस्मों के बारे में उपयोगी जानकारी दी जा रही है जो इस प्रकार है-:
इसके अलावा ईसबगोल की अन्य कई आधुनिक किस्में हैं इनमें निहारिका, इंदौर ईसबगोल, मंदसौर ईसबगोल आदि हैं।
यहां किसानों की जानकारी के लिए बता दें कि इसकी खेती उष्ण जलवायु में भी आसानी से की जा सकती है। इसके पौधों को विकास करने के लिए भूमि का पीएच मान सामान्य होना चाहिए। यदि जमीन नमी वाली हो तो इसके पौधों का सही तरीके से विकास नहीं होता। इसीलिए ईसबगोल की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है जिसमें जीवाश्म की मात्रा अधिक हो।
ईसबगोल की खेती के लिए किसानों को सही समय का ज्ञान होना चाहिए। बता दें कि ईसबगोल की बुआई अक्टूबर से नवंबर माह के बीच होनी चाहिए। इसके बीजों की बुआई कतारों में की जाती है। इनकी कतार से कतार की दूरी 25 से 30 सेंटीमीटर होना जरूरी है। बीज को करीब 3 ग्राम थाईरम प्रति किलोग्राम के हिसाब से उपचारित कर लें और मिट्टी में मिला लें। इसके बाद ही बुआई की जानी चाहिए।
ईसबगोल की खेती करने की वैज्ञानिक तकनीक अपनाई जानी चाहिए। जैसे अच्छी पैदावार के लिए उन्नत किस्म के बीजों की आवश्यकता होती है उसी प्रकार से खेत का तैयार करना, कंपोस्ट खाद आदि का प्रयोग करना। वहीं फसल उगने के बाद समय-समय पर उसकी सही देखभाल जरूरी है। यहां कुछ ऐसी महत्वपूर्ण बातें बताई जा रही है जो ईसबगोल की खेती के दौरान किसानों को इसका उत्पादन बढ़ाने में सहायक होती हैं। ये मुख्य बातें इस प्रकार हैं-:
आपको बता दें कि ईसबगोल कम लागत में अधिक मुनाफे वाली फसल है। यह करीब 115 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। एक हेक्टेयर में यदि बढिया तरीके से प्रबंधन किया जाए तो 10 से 15 क्विंटल तक ईसबगोल की उपज हो जाती है। इसे मंडी में बेचने पर एक क्विंटल के करीब 12,500 रुपये का भाव मिलता है।
यही नहीं ईसबगोल में भूसी भी निकलती है। इस भूसी का भाव 25,000 रुपये प्रति क्विंटल तक मिलता है। एक हेक्टेयर में करीब 5 क्विंटल भूसी निकलती है। इसके बाद भी ईसबगोल की खेती में भूसी निकलने के बाद खली, गोली आदि अन्य उत्पाद बचते हैं। ईसबगोल बहुत की उपयोगी औषधीय फसल है। इसका उपयोग पाचन तंत्र को मजबूत करने, मोटापा दूर करने में किया जाता है। ईसबगोल के बीज के ऊपर सफेद रंग का पदार्थ चिपका रहता है जिसे भूसी कहते हैं। भूसी में म्यूसीलेज होता है जिसमें जाईलेज, ऐरिबिनोज एवं ग्लेकटूरोनिक ऐसिड पाया जाता है। इसके बीजों में 17 से 19 प्रतिशत प्रोटीन होता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ईसबगोल की भूसी में ही सबसे ज्यादा औषधीय गुण पाए जाते हैं लेकिन भूसी रहित बीज का उपयोग पशु और मुर्गियों के आहार के रूप में भी किया जाता है। गौरतलब है कि ईसबगोल का विश्व के कुल उत्पादन का 80 प्रतिशत उत्पादन भारत में ही होता है।
ईसबगोल की खेती से किसानों को बंपर कमाई होती है। यहां एक हेक्टेयर खेती की कुल लागत और इसके बाद शुद्ध कमाई के बारे में पूरा विवरण इस प्रकार है-:
कुल लागत - 10,800 रुपये
शुद्ध मुनाफा - 1,87000- 10,800 = 1,76,600 रुपये
ईसबगोल की खेती करने वाले किसानों को ईसबगोल कृषि कार्यमाला के बारे में भी जानकारी होनी चाहिए। बता दें कि ईसबगोल कृषि कार्यमाला में कृषि विभाग की वे तमाम जानकारियां शामिल होती है जो ईसबगोल की उन्नत खेती के लिए बहुत जरूरी हैं। इसमें उन्नत किस्मे, मिट्टी परीक्षण, कल्टीवेशन, कीट प्रबंधन, उर्वरकों का सही प्रयोग करना, कृषि सहायकों से जानकारी हासिल करना आदि बाते शामिल हैं। अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र या कृषि विश्वविद्यालय से संपर्क किया जा सकता है। इस तरह से ईसबगोल कृषि कार्य माला की सहायता लेकर किसान ईसबगोल की अधिक पैदावार के तरीके जान सकते हैं।
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