जानें, क्या होती है सघन खेती और इससे किसानों को लाभ
सघन खेती जिसे गहन खेती भी कहते हैं। इस तकनीक से खेती करने पर किसान कम भूमि पर कई फसलों की पैदावार कर सकता है। सघन खेती की तकनीक उन जगहों पर अधिक कारगार है जहां खेती योग्य भूमि कम है और खाद्यान्न की मांग अधिक है। सघन खेती के अंतर्गत कई फसलें एक साथ ली जा सकती है। इससे किसानों की आय बढ़ सकती है। सघन खेती में यदि एक फसल में नुकसान भी होता है तो दूसरी फसल ये उसकी भरपाई आसानी से की जा सकती है। इस खेती की सबसे बड़ी बात यह है कि इसमें खरपतवार का प्रकोप अन्य कृषि तकनीक की तुलना में न के बराबर होता है। आज हम ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से आपको सघन खेती की जानकारी दे रहे हैं।
क्या है सघन खेती (Saghan Kheti)
सघन कृषि या गहन खेती जिसे जंगल खेती भी कहा जाता है, कृषि उत्पादन की वह तकनीक है जिसमें कम जमीन में अधिक परिश्रम, पूंजी, उर्वरक या कीटनाशक आदि डालकर अधिक उत्पादन लिया जाता है। इसमें एक ही भूमि पर वर्ष में कई फसलें बोई जाती हैं। इससे किसानों को लाभ होता है।
सघन खेती की विशेषताएं
- सघन खेती की सबसे बड़ी विशेषता ये हैं कि इस विधि से कम भूमि पर अधिक उत्पादन लिया जा सकता है।
- इस विधि में खेती करने के लिए बहुउद्देशीय फसलें एक ही खेत में उगाई जाती है।
- इस विधि में खेत के छोटे से टुकड़े में कई फसलें एक साथ बोई जाती है। सघन खेती में उपलब्ध भूमि पर अच्छी खाद, उन्नत बीज आदि का प्रयोग किया जाता है।
- सघन खेती के अंतर्गत फसलें बदल-बदल कर फसलें बोई जाती हैं तथा आधुनिक कृषि यंत्रों का प्रयोग किया जाता है।
- इसमें विधि में 4-5 फसलें एक ही खेत में उगाई जा सकती हैं, जैसे आम, अमरूद, केला, पपीता, फिर उसके बीच में सब्जियां उगाई जा सकती है।
- सीधी धूप में मौसमी सब्जियां व कम धूप में बेमौसमी सब्जियां जो सर्दियों में उगाई जाती है, उनकी फसल ली जा सकती है जैसे- पालक, धनिया, गाजर, चना साग आदि। इसके अलावा आप अदरक हल्दी जो की छांव में ही हो जाती है को उगा सकते हैं।
- सघन खेती की विधि उन विकसित देशों के लिए उपयुक्त है, क्योंकि इसमें वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग किया जाता है, जैसे- फसलों का हेरफेर करके बोना, आधुनिक कृषि यंत्रों का प्रयोग करना आदि।
सघन खेती से किसानों को होने वाले लाभ (Intensive Farming)
सघन खेती विधि अपनाने से किसानों को अधिक लाभ हो सकता है। क्योंकि इसमें एक छोटे से भूमि के टुकड़े का उपयोग अधिकतम उत्पादन के लिए किया जाता है। सघन खेती से होने वाले कुछ लाभ इस प्रकार से हैं।
- इस खेती के अंतर्गत खेत की कोई भी जगह खाली न छोड़ी जाती है। इसका ये लाभ होता है कि इसमें खरपतवार होने की गुजांइश बहुत कम रहती है।
- इस विधि से खेती करने में सबसे बड़ा लाभ ये हैं कि इसमें सिंचाई के लिए कम पानी की आवश्यकता पड़ती है।
- इसके विधि के अंतर्गत बोई गई कुछ फसलें आपस में एक-दूसरे को लाभ भी प्रदान करती हैं जैसे- दलहन नोइट्रोजन उत्पन्न करती है जो दूसरी फसलों के लिए लाभकारी साबित होता है।
- सघन खेती विधि में पौधे का आकार छोटा होता है जिससे प्राकृतिक संसाधनों जैसे- धूप, जमीन और पानी आदि का अधिकतम इस्तेमाल होता है।
- सघन खेती में पेड़ों का आकार छोटा होने के कारण उनका उत्पादित समय घट जाता है जिससे वे जल्दी फल देना शुरू कर देते हैं।
- सघन खेती में पौधों का आकार छोटा होने से इसमें कटाई, छंटाई और स्प्रे करना आसान हो जाता है।
- पौधे का आकार छोटा होने के कारण इसकी जड़ें अधिक गहराई तक जाती है जिससे प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया अधिकतम होती है। इससे फलों की गुणवत्ता में बढ़ोतरी होती है।
भारत में गहन कृषि की आवश्यकता
भारत में निरंतर बढ़ती जनसंख्या के लिए खाद्यान्न की समस्या को हल करना एक बड़ी चुनौती बनाता जा रहा है। आज खेती योग्य भूमि कम हो होती जा रही है और खाद्यान्न की मांग अधिक है। ऐसे में भारत जैसे देश में सघन खेती को अपनाकर बढ़ती जनसंख्या के लिए खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाकर उसकी पूर्ति की जा सकती है। वहीं इस विधि से खेती करके किसान अपनी आमदनी भी बढ़ा सकते हैं।
भारत में सघन खेती को अपनाने में क्या है बाधाएं
भारत में सघन खेती को अपनाने में कई बाधाएं हैं। इनमें से कुछ बाधाएं या समस्याएं इस प्रकार से हैं-
- पूंजी की समस्या- भारत में सघन खेती को अपनाने में सबसे बड़ी बाधा पूंजी की है। यहां का अधिकांश किसान लघु व सीमांत किसान है। जिनके पास फसल उत्पादन लागत लगाने के लिए पूंजी की समस्या रहती है। जबकि सघन खेती में अधिक पूंजी की आवश्यकता होती है।
- सिंचाई के साधनों का अभाव- भारतीय कृषि वर्षा पर निर्भर है। यहां सिंचाई के साधनों का अभाव है जिसके कारण यहां इस सघन खेती को अपनाना संभव नहीं है। हालांकि केंद्र और राज्य सरकारें अपने स्तर पर सिंचाई के साधन को विकसित करने का प्रयास कर रही है। देश की नदियों को जोडऩे का काम जारी है जो एक लंबा कार्यक्रम है।
- किसानों को नई तकनीक की जानकारी न होना- भारत में आज भी ग्रामीण इलाकों में शिक्षा का ठीक से प्रसार नहीं हो पाया है। आज भी गांव के कई किसान अशिक्षित है। उन्हें खेती की उन्नत तकनीक और विधियों का ज्ञान नहींं है। ऐसे में सघन खेती को अपनाना उनके लिए एक बड़ी चुनौतीपूर्ण कार्य होगा।
- खेतों का दूर-दूर फैले होना- भारत के ग्रामीण इलाकों में खेत दूर-दूर फैले हुए है और आकार में भी छोटे है। इसलिए भारतीय कृषि का यंत्रीकरण करना आसान नहीं है।
सघन खेती में ध्यान रखने योग्य बातें
- सघन खेती की विधि के तहत छोटी किस्म के फल वृक्षों को लगाना चाहिए ताकि कम जगह पर ज्यादा पौधे लगाए जा सकें। जिससे भूमि का अधिक से अधिक उपयोग हो सके।
- फल वृक्षों में कम वृद्धि होनी चाहिए ताकि दूसरे फल वृक्ष को फैलने की जगह मिल सके।
- मूलवृंत ऐसा होना चाहिए जो छोटा पौधा दे सके ताकि इसे कम जगह पर आसानी से लगाया जा सके।
- वृक्षों की वृद्धि रोकने के लिए वृद्धि रोधक हारमोन का प्रयोग करना चाहिए।
- समय- समय पर टहनियों की कटाई-छंटाई का काम करते रहना चाहिए ताकि पेड़ों का आकार ज्यादा न बढ़ सके।
- दस से बाहर वर्ष बाद यदि सघन खेती में एक-दूसरे पेड़ों की टहनियां तथा जड़ आपस में उलझने लगे तो बीच में एक लाइन पेड़ों की काटी जा सकती है।
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