प्रकाशित - 09 May 2024
भारत में गन्ने की खेती (sugar cane field) कई राज्यों में की जाती है। इसमें मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक गन्ने का उत्पादन होता है। इसके बाद दूसरे नंबर पर महाराष्ट्र में गन्ने का उत्पादन होता है। यह दोनों ही राज्य ऐसे हैं जहां गन्ने का सबसे अधिक उत्पादन होता है और यहीं पर सबसे अधिक चीनी मिलें भी हैं। इसके बाद नंबर आता है कर्नाटक का जहां गन्ने का बेहतर उत्पादन होता है। इसके अलावा हरियाणा, बिहार, तमिलनाडु, गुजरात, पंजाब, आंध्रप्रदेश और उत्तराखंड में भी गन्ने की खेती की जाती है। इनमें सबसे अधिक यूपी में गन्ना किसान है। ऐसे में गन्ना उत्पादक राज्यों के लिए गन्ने की खेती को सुरक्षित तरीके से करने की ओर ध्यान देना जरूरी है।
गन्ने की फसल को बहुत से कीटों व रोगों का प्रकोप होता है। यदि समय पर इसकी रोकथाम नहीं की जाए तो पूरी की पूरी फसल ही चौपट हो जाती है और किसान को बहुत अधिक नुकसान उठाना पड़ता है। गन्ने में लाल सड़न रोग (Red rot disease) के बाद जो कीट या बीमारी गन्ने के लिए नुकसानदेह है, वह है चोटी बेधक कीट (braid borer insect) का प्रकोप। हाल ही में गन्ना उत्पादक कुछ क्षेत्रों में चोटी बेधक कीट (braid borer insect) का प्रकोप देखने को मिला है जिससे किसान बहुत चिंतित है। यह कीट गन्ने की फसल (sugarcane crop) के लिए बेहद हानिकारक होता है। यह कीट गन्ने के कल्ले को ही नष्ट कर देता है जिससे गन्ने की पूरी फसल खराब हो जाती है और किसान को बहुत हानि होती है। ऐसे में इस कीट की शुरुआती अवस्था में रोकथाम करना उचित रहता है। यदि शुरुआती अवस्था में ही इसकी रोकथाम कर दी जाए तो फसल को नुकसान से बचाया जा सकता है।
चोटी बेधक कीट (braid borer insect) को आमतौर पर कंसुवा, कन्फ्ररहा, गोफ का सूखना, सुंडी का लगना आदि नामों से जाना जाता है। इस कीट का प्रकोप सबसे पहले गन्ने की फसल की पत्तियों पर होता है। प्रारंभिक अवस्था में इस रोग से प्रभावित गन्ने की फसल की पत्तियों पर छर्रे जैसे कई चित्र दिखाई देते हैं, इससे पत्तियों का विकास अवरूद्ध हो जाता है। प्रभावित पौधे की अंतिम अवस्था में गन्ने की बढ़वार रूक जाती है जिससे फसल को नुकसान होता है। इस कीट को पहली पीढ़ी पर खत्म कर देना चाहिए नहीं तो यह दूसरी पीढ़ी में जाने पर कीट का लार्वा प्यूपा के रूप में बदल जाता है जिस पर कीटनाशकों का भी असर नहीं होता है। वहीं कुछ दिनों बाद यही प्यूपा परिपक्व होने पर इसमें से तितलियां बाहर निकलने लग जाती है जो गन्ने की पत्तियों पर अंडे देती है और अंडे से फिर लार्वा निकलकर गन्ने की फसल को नुकसान पहुंचाना शुरू कर देते हैं और यह क्रम चलता रहता है और फसल को भारी नुकसान होता है।
सबसे पहले किसान स्वयं अपने खेत का निरीक्षण करें। वहीं इसकी पहचान के लिए क्षेत्रीय कर्मचारियों की सहायता ले सकते हैं। इन्हें खेत में ले जाकर आसानी से इसकी पहचान की जा सकती है। यदि प्रारंभिक अवस्था में कीट है तो एक सप्ताह के अंदर कोराजन दवा का इस्तेमाल करें। इसके लिए प्रति एकड़ 150 मिली यानी एक शीशी कोराजन का प्रयोग कर सकते हैं। दवा का घोल बनाने के लिए प्रति एकड़ 400 लीटर साफ पानी लें और इसमें इसे मिला दें। अब स्प्रे टंकी को साफ पानी से आधा भर लें और दवा का घोल बनाएं। अब इस तैयार दवा के घोल को पौधे की जड़ों के आसपास छिड़काव करें। ध्यान रहे दवा का छिड़काव सुबह व शाम को जड़ों के आसपास करें। दवा का छिड़काव कभी पत्तियों पर नहीं करना चाहिए। दवा छिड़काव के बाद अगले 24 घंटे के अंदर खेत की सिंचाई कर देनी चाहिए ताकि दवा जड़ों तक पहुंचकर पूरे पौधों में फैल जाए जिससे कीट की रोकथाम में सहायता मिल सके।
चोटी बेधक कीट से प्रभावित गन्ने के कल्लों को जमीन के बराबर या थोड़ा नीचे से काटकर इसे खेत से बाहर कहीं फेंक देना चाहिए जिससे कीट अन्य पौधों तक न फैल पाए। आप चाहे तो गन्ने के इन किल्लों को जानवरों को भी खिला सकते हैं।
चोटी बेधक कीट के नियंत्रण के लिए कोराजन के अलावा फेरटेरा दवा का भी प्रयोग किया जा सकता है। लेकिन इस दवा का प्रयोग करते समय खेत में नमी होनी जरूरी है। खेत में नमी कम से कम 45 दिनों तक होनी चाहिए। यदि खेत में नमी नहीं है तो इसके लिए किसान खेत में हल्की सिंचाई करके नमी बनाए रख सकते हैं। इस दवा का प्रयोग भी जड़ों पर ही करना है पत्तियों पर नहीं।
नोट: किसानों को सलाह दी जाती है कि फसल पर किसी भी दवा का छिड़काव करने से पहले अपने नजदीकी कृषि विभाग के अधिकारियों से सलाह अवश्य लें। कृषि विशेषज्ञों की सलाह के बाद ही फसल पर कीटनाशक का छिड़काव करना चाहिए।
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