प्रकाशित - 05 Jul 2022
मसाला फसलों में हल्दी का एक विशेष स्थान है। हल्दी अपने गुणों के कारण पहचानी जाती है। इसमें रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का गुण पाया जाता है। इसके प्रयोग से शरीर की इम्युनिटी में बढ़ती है। कोरोना काल में इसका प्रयोग औषधी के रूप में काफी किया गया। हल्दी का जितना औषधीय महत्व है, उतना ही इसका धार्मिक महत्व भी है। हिंदू धर्म में हर शुभ कार्य में हल्दी का प्रयोग किया जाता है। हल्दी की बाजार मांग भी काफी रहती है और इससे इसके अच्छे भाव मिलते हैं। किसान खरीफ सीजन में अन्य फसलों के साथ इसकी खेती करके अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। हल्दी को खेत की मेडों में बोया जा सकता है। वहीं अन्य फसलों के साथ बीच में बचे हुए छायादार भाग में इसकी बुवाई की जा सकती है।
औषधीय गुण होने के कारण इसका उपयोग आयुर्वेदिक दवाओं में, पेट दर्द व ऐंटिसेप्टिक व चर्म रोगों के उपचार में किया जाता है। यह रक्त शोधक होती है। कच्ची हल्दी चोट सूजन को ठीक करने का काम भी करती है। जीवाणु नाशक गुण होने के कारण इसके रस का उपयोग सौंदर्य प्रसाधन में किया जाता है। प्राकृतिक एवं खाद्य रंग बनाने में भी हल्दी का उपयोग होता है।
हल्दी दो प्रकार की होती है एक पीली हल्दी और दूसरी काली हल्दी। पीली हल्दी का प्रयोग मसालों के रूप में सब्जी बनाने में किया जाता है। जबकि काली हल्दी का प्रयोग पूजन में किया जाता है। इसका तांत्रिक पूजा में भी महत्व बताया गया है।
हल्दी की कई अधिक उत्पादन देने वाली उन्नत किस्में पाई जाती हैं। उनमें कुछ प्रमुख किस्मों की जानकारी हम दे रहे हैं, जो इस प्रकार से है-
हल्दी की ये किस्म करीब 80 से 100 सेंटीमीटर ऊंचे पौधों वाली होती है। इस किस्म को तैयार होने में करीब 210 से 220 दिन लगते है। इस किस्म से 200 से 220 क्विंटल प्रति एकड़ हल्दी की पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
इस किस्म के पौधों की ऊंचाई 60 से 80 सेंटीमीटर होती है। इसे तैयार होने में 195 से 210 दिन समय लगता है। इस किस्म से करीब 160 से 180 क्विंटल तक प्रति एकड़ के हिसाब से उपज प्राप्त की जा सकती है।
यह हल्दी की अधिक पैदावार देने वाली किस्मों में से एक है। इसके कंद गहरे पीले रंग के होते हैं। इस किस्म से प्राप्त उपज की बात करें तो इस किस्म से 132 क्विंटल/एकड़ तक उपज प्राप्त की जा सकती है।
हल्दी की इस किस्म को तैयार होने में 230 दिन समय लगता है। इस किस्म से प्राप्त होने वाली उपज की बात करें तो इस किस्म से 110 से 115 क्विंटल प्रति एकड़ तक उपज प्राप्त की जा सकती है।
हल्दी की सुगंधम किस्म 210 दिनों में तैयार हो जाती है। इस किस्म की हल्दी के कंद आकर में लंबे और हल्की लाली लिए हुए पीले रंग के होते हैं। इस किस्म से करीब 80 से 90 क्विंटल प्रति एकड़ तक हल्दी का उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।
हल्दी की इस किस्म के कंद अंदर से नारंगी रंग के होते हैं। इस किस्म को खुदाई के लिए तैयार होने में 210 दिन लगता है। इससे प्राप्त होने वाली उपज की बात करें तो इस किस्म से प्रति एकड़ करीब 80 से 90 क्विंटल तक उपज प्राप्त हो सकती है।
इस किस्म की हल्दी के कंद आकर में छोटे और दिखने में खूबसूरत होते हैं। इसे लगाने के करीब 190 दिनों बाद इसकी खुदाई की जा सकती है।
उपरोक्त किस्मों के अलावा भी हल्दी की कई ओर उन्नत किस्में हैं। जिनमें सगुना, रोमा, कोयंबटूर, कृष्णा, आर. एच 9/90, आर.एच- 13/90, पालम लालिमा, एन.डी.आर 18, बी.एस.आर 1, पंत पीतम्भ आदि किस्में शामिल हैं।
हल्दी की बुआई 15 मई से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक की जा सकती है। यदि सिंचाई की समुचित व्यवस्था न हो तो मानसून प्रारंभ होने पर बुआई करें। सिंचाई की पर्याप्त सुविधा उपलब्ध होने पर हल्दी की बुआई अप्रैल, मई माह में की जा सकती है। प्रति हेक्टेयर बुआई के लिए कम से कम 2500 किलोग्राम प्रकंदों की आवश्यकता होती है। किसान बुआई से पहले हल्दी के कंदों को बोरे में लपेट कर रखें जिससे अंकुरण आसानी से होता है। हल्दी की खेती के लिए कंद का चयन बीज की बुआई के लिए मात्र कंद एवं बाजू कंद दोनों प्रकार के प्रकंद का उपयोग किया जा सकता है। जिसमें मात्र कंद लगाने से अधिक पैदावार प्राप्त होती है। यह ध्यान रहे की प्रत्येक प्रकंद पर दो या तीन आंखे अवश्य होनी चाहिए। बोने से पहले कंदों को 0.25 प्रतिशत एगालाल घोल में 30 मिनट तक उपचारित कर लेना चाहिए। हल्दी की बुआई समतल चार बाई तीन मीटर आकार की क्यारियों में मेड़ों पर करना चाहिए। लाइन से लाइन की दूरी 45 से.मी. व पौधों से पौधों की दूरी 25 से.मी. रखें। रेतीली भूमि में इसकी बुआई 7 से 10 से.मी. ऊंची मेड़ों पर करनी चाहिए।
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