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ब्रोकली की उन्नत खेती : ब्रोकली की खेती में रखें ये सावधानी होगा भरपूर मुनाफा

Published - 30 Sep 2020

जाने ब्रोकली की उन्नत खेती से  कैसे मिलेगा भरपूर मुनाफा

ब्रोकली दिखने में फूलगोभी की तरह ही दिखाई देती है लेकिन इसमें पोष्टिकता फूलगोभी से ज्यादा होती है। ब्रोकली खाने का चलन पिछले कुछ सालों से बड़े शहरों और महानगरों में काफी बढ़ता जा रहा है। इसके पीछे कारण इसमें पाए जाने पौष्टिक तत्व है जो कई बीमारियों से बचाव करते हैं। अभी कुछ सालों से किसानों का ध्यान इसकी खेती की ओर गया है। शहरों में बड़े-बड़े होटलों में इसकी मांग रहती है। वहीं लोग इसे बड़े-बड़े मॉल्स व बाजारों इसकी खरीदते हैं। इसकी बढ़ती मांग के कारण इसकी खेती मुनाफे का सौदा साबित हो रही है। यदि इसकी व्यावसायिक रूप से खेती की जाए तो इससे अच्छा मुनाफ़ा कमाया जा सकता है। आइए जानते हैं कैसे आप इसकी खेती करके भरपूर मुनाफा कमा सकते हैं।

 

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क्या है ब्रोकली ? और कितने प्रकार की होती है

ब्रोकली गोभीय वर्गीय सब्जियों के अंतर्गत एक प्रमुख सब्जी है। यह एक पौष्टिक इटालियन गोभी है, जिसे मूलत: सलाद, सूप, व सब्जी के रूप में प्रयोग किया जाता है। ब्रोकली दो तरह की होती है- स्प्राउटिंग ब्रोकली एवं हेडिंग ब्रोकली। इसमें से स्प्राउटिंग ब्रोकली का प्रचलन अधिक है। इसमें विटामिन, खनिज लवन ( कैल्शियम, फास्फोरस एवं लौह तत्व ) प्रचुरता में पाए जाते हैं। पौष्टिकता से भरपूर होने के कारण गर्भवती महिलाओं के लिए अधिक फायदेमंद है। इसके अलावा ये अपने रंगों के कारण भी लोगों के बीच काफी लोकप्रिय है। ये मुख्यत: तीन रंगों में पाई जाती है। इसमें सफेद, हरी और बैंगनी रंग की ब्रोकली है।

 


ब्रोकली के फायदे

  • फोलेट की कम मात्रा लेने से डिप्रेशन का खतरा बढ़ जाता है। ब्रोकली में फोलेट की भरपूर मात्रा पाई जाती है। इसे खाने से डिप्रेशन कम हो जाता है।
  • ब्रोकली में विटामिन सी की पर्याप्त मात्रा पाई जाती है। विटामिन सी शरीर में इम्यून सिस्टम को बूस्ट करने और संक्रमण से बचाव में मदद करता है।
  • ब्रोकली के सेवन से कैंसर होने की आशंका भी कम हो जाती है। ब्रोकली में फिटाकेमिकल अधिक मात्रा में पाया जाता है। ब्रोकली में मौजूद तत्व शरीर से विषाक्त पदार्थों को भी बाहर निकालने का काम करते हैं।
  • ब्रोकली में कैरेटेनॉयड्स ल्यूटिन पाया जाता है। ये दिल की धमनियों को स्वस्थ बनाए रखता है। इसके सेवन से दिल का दौरा पडऩे और अन्य बीमारियों के होने की आशंका कम हो जाती है।
  • गर्भवती महिलाओं को नियमित रूप से ब्रोकली का सेवन करना चाहिए। इसमें मौजूद तत्व न केवल बच्चे के स्वास्थ्य और विकास के लिए फायदेमंद होते हैं बल्कि मां को भी कई प्रकार के संक्रमण से दूर रखते हैं।


ब्रोकली की उन्नत किस्में

ब्रोकली की कई किस्में पाई जाती है जिनमें प्रमुख रूप से के.टी.एस.- 1, पालक समृद्धि, एन.एस.- 50, ब्रोकोली संकर-1, टी.डी.सी. -6 शामिल है। इसके अलावा इसकी संकर किस्मों में पाईरेट पेक में, प्रिमियम क्राप, क्लीपर, क्रुसेर, स्टिक व ग्रीन सर्फ़ मुख्य है। इसके अलावा टोपर, ग्रीन कोमट, क्राईटेरीयन आदि किस्में है। ब्रोकली की लगभग सभी किस्में विदेशी हैं।
कहां से मिलेंगे ब्रोकली के बीज

कई बीज कम्पनियाँ अब ब्रोकली के संकर बीज भी बेच रहीं हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली ने हाल ही में पूसा ब्रोकली 1 किस्म की खेती के लिए सिफ़ारिश की है तथा इसके बीज थोड़ी मात्रा में पूसा संस्थान क्षेत्रीय केन्द्र, कटराइन कुल्लू घाटी , हिमाचल प्रदेश से प्राप्त किए जा सकते हैं। अभी हाल भारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान क्षेत्रीय केंद्र कटराई द्वारा ब्रोकली की के.टी.एस.9 किस्म विकसित की गई है। इसके अलावा भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली ने हाल ही पूसा ब्रोकली 1 किस्म की खेती के लिए सिफ़ारिश की है तथा इसके बीज थोड़ी मात्रा में पूसा संस्थान क्षेत्रीय केन्द्र, कटराइन कुल्लू घाटी, हिमाचल प्रदेश से प्राप्त किए जा सकते हैं।


ब्रोकोली की उन्नत खेती कैसे करें 

ब्रोकली की खेती फूलगोभी की खेती की तरह ही होती है। इसकी खेती के लिए दुमट अथवा बलुई-दुमट मिट्टी वाली भूमि सर्वोतम होती है। अधिक अम्लीय भूमि इसके लिए अच्छी नहीं होती है। भूरी मिट्टी में भी इसकी खेती की जा सकती है। लेकिन ध्यान रखें इसके लिए जल निकासी का उचित प्रबंध होना चाहिए। नहीं तो जल भराव से इसके पत्ते पीले पड़ कर सडऩे लगते हैं जिससे उत्पादन पर असर पड़ता है।


बुवाई का उचित समय

उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में ब्रोकली उगाने का उपयुक्त समय सर्दी का मौसम होता है। इसके बीज के अंकुरण तथा पौधों को अच्छी वृद्धि के लिए तापमान 20 -25 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए। इसकी नर्सरी तैयार करने का समय अक्टूबर का दूसरा पखवाड़ा होता है। पर्वतीय क्षेत्रों में कम उंचाई वाले क्षेत्रों में सितंबर- अक्टूबर, मध्यम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में अगस्त सितंबर और अधिक उंचाई वाले क्षेत्रों में मार्च- अप्रैल में तैयार की जाती है।


ब्रोकली की नर्सरी तैयार करना

ब्रोकली की नर्सरी में बुवाई के लिए 400-500 ग्राम बीज प्रति हेक्टेयर (8-10 ग्राम प्रति नाली) पर्याप्त होता है। नर्सरी की तैयारी में इस बात का ध्यान रखें की नर्सरी जमीन से 15 सेमी. ऊंची हुई हो। अब नर्सरी की क्यारी में अच्छी सड़़ी हुई गोबर / कम्पोस्ट खाद तथा 50-60 ग्राम प्रति वर्गमीटर की दर से सिंगल सुपर फास्फेट मिलाकर भूमि की तैयारी करनी चाहिए। पौधशाला में कीटों एवं व्याधियों से बचाव के लिए क्यारी में 5 ग्राम थायरम प्रति वर्गमीटर की दर से अच्छी प्रकार मिलाकर 5-7 सेमी. की दूरी पर 1.5-2 सेमी. गहरी कतारें बनाएं।

इसके बाद कवकनाशी 10 ग्राम ड्राईकोडर्मा या एक ग्राम कार्बेन्डाजिम अथवा 2.5 ग्राम थाइरम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से शोधित बीज की बुवाई करें। बीज के जमने तक हल्की सिंचाई फव्वारे से हल्की सिंचाई करें ताकि नमी बनी रहे। अत्यधिक बारिश से बचाव हेतु नर्सरी की क्यारी को घासफूस की छपर अथवा पालीथीन शीट से ढकने का प्रबंध रखना चाहिए। बेमौसमी खेती हेतु पौध पालीहाउस अथवा पालिटनल के अंदर इसकी पौध तैयार करनी चाहिए। इसके लिए पालीहॉउस अथवा पालीटनल के अंदर पौधशाला में सर्दियों में तापमान आवश्यकता से कम होने पर पालीहाउस में तापमान नियंत्रित करने के लिए हीटर का प्रयोग कर सकते हैं। इससे बीजों का जमाव जल्दी हो सकेगा।


खेत की तैयारी

खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल या हैरो से करनी चाहिए। इसके बाद 2 से 3 जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से करनी चाहिए। अंतिम जुताई करने से पहले खेत में 10 से 15 टन प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की सड़ी हुई खाद डाल कर मिट्टी में अच्छी प्रकार मिला देनी चाहिए। इसके बाद पाटा लगाकर खेत को ढेले रहित व समतल बना लेना चाहिए।

 

ब्रोकली की रोपाई

नर्सरी में जब पौधे 10 से 12 सेंटीमीटर या 4 से 5 सप्ताह के हो जाएं तो उनकी खेत में रोपाई कर देनी चाहिए। ब्रोकली की रोपाई पंक्तियों में की जानी चाहिए। किस्मों के अनुसार पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 से 60 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 40 सेंटीमीटर होनी चाहिए। पौध 3 से 4 सेंटीमीटर से अधिक गहरी नहीं लगानी चाहिए। खेत में नमी होनी चाहिए जरूरी है। इसके लिए रोपाई के बाद हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए। पौध की रोपाई दोपहर बाद या शाम के समय ही करनी चाहिए।

 

खरपतवार नियंत्रण एवं सिंचाई

ब्रोकली की रोपाई के शुरू के डेढ़ से दो माह तक खेत से खरपतवार निकलते रहना चाहिए जिससे पौधों की बढ़वार अच्छी होती है। बात करें सिंचाई की तो इसकी पहली हल्की सिंचाई रोपाई के तुरंत बाद करनी चाहिए। इसके बाद में आवश्यकतानुसार 10 से 15 दिन के अंतराल पर हल्की सिंचाई करते रहना चाहिए। इसकी अच्छी पैदावार के लिए 5 से 6 सिंचाइयां की जानी चाहिए।


ब्रोकली की कटाई

फसल में जब हरे रंग की कलियों का मुख्य सिरा (मन हैड) बनकर तैयार हो जाए तो इसे लगभग 12 से 15 सेंटीमीटर लंबे डंठल के साथ तेज चाकू या दराती से कटाई करनी चाहिए। मुख्य सिरा काटने के बाद पौधों के तनों से दूसरी छोटी-छोटी कलियां निकलती हैं तथा ये कलियां उप सिरा (सब हैड) के रूप में तैयार हो जाती हैं। इन उप सिरों को भी 8 से 10 सेंटीमीटर लंबे डंठल सहित उचित समय पर कलियां खिलने से पहले कटाई कर लेनी चाहिए।


कितनी मिलती है उपज

ब्रोकली की उन्नत तरीके से खेती करके अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। ब्रोकली की साधारण किस्मों से 75 से 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा संकर किस्मों से 120 से 180 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है।

 


बाजार भाव / कीमत

पांच सितारा होटल तथा पर्यटक स्थानों पर इस सब्जी की मांग बहुत है तथा जो किसान इसकी खेती करके इसको सही बाजार में बेचते हैं उनको इसकी खेती से बहुत अधिक लाभ मिलता है क्योंकि इसके भाव कई बार 30 से 50 रुपए प्रति कि.ग्रा. तक या इससे भी उपर मिल जाते हैं। यहां ये बताना उचित रहेगा कि ब्रोकली की खेती करने से पहले इसको बेचने का किसान जरूर प्रबंध कर लें क्योंकि यह अभी महानगरों, बड़े होटल तथा पर्यटक स्थानों तक ही सीमित है। साधारण, मध्यम या छोटे बाजारों में अभी तक ब्रोकली की मांग कम ही है।
 

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