Published - 25 Feb 2021
देश के ग्रामीण इलाकों में कृषि के साथ पशुपालन एक मुख्य व्यवसाय बनता जा रहा है। आम तौर गाय, भैंस, बकरी आदि दुधारू पशुओं पालन किया जाता है। पशुपालन का मुख्य उद्देश्य दुधारू पशुओं का पालन कर उसका दूध बेचकर आमदनी प्राप्त करना है। यदि ये आमदनी अच्छी हो कहना ही क्या? पशुपालन से बेहतर आमदनी प्राप्त करने के लिए जरूरी है पशु की ज्यादा दूध देने वाली नस्ल का चुनाव करना। आज हम गाय की अधिक दूध देने वाली नस्ल के बारें में बात करेंगे। आज बात करते हैं मेवाती नस्ल की गाय के बारें में। यह नस्ल अधिक दूध देने वाली गाय की नस्लों में से एक है।
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यह गाय मेवात क्षेत्र में पाई जाती है। राजस्थान के भरपुर जिले, पश्चिम उत्तर प्रदेश के मथुरा और हरियाणा के फरीदाबाद और गुरुग्राम जिलों में अधिक पाई जाती है। गाय पालन में यह नस्ल काफी लाभकारी मानी जाती है। इस नस्ल की गाय को कोसी के नाम से भी जाना जाता है। मेवाती नस्ल लगभग हरियाणा नस्ल के समान होती है।
मेवाती नस्ल की गाय की गर्दन सामान्यत: सफेद होती है और कंधे से लेकर दाया भाग गहरे रंग का होता है। इसका चेहरा लंबा व पतला होता है। आंखें उभरी और काले रंग की होती हैं। इसका थूथन चौड़ा और नुकीला होता है। इसके साथ ही ऊपरी होंठ मोटा व लटका होता है तो वहीं नाक का ऊपरी भाग सिकुड़ा होता है। कान लटके हुए होते हैं, लेकिन लंबे नहीं होते हैं। गले के नीचे लटकी हुई झालर ज्यादा ढीली नहीं होती है। शरीर की खाल ढीली होती है, लेकिन लटकी हुई नहीं होती है। पूंछ लंबी, सख्त व लगभग ऐड़ी तक होती है। गाय के थन पूरी तरह विकसित होते हैं। मेवाती बैल शक्तिशाली, खेती में जोतने और परिवहन के लिए उपयोगी होते हैं।
यह नस्ल एक ब्यांत में औसतन 958 किलो दूध देती है और एक दिन में दूध की पैदावार 5 किलो होती है।
इस नस्ल की गायों को जरूरत के अनुसार ही खुराक दें। फलीदार चारे को खिलाने से पहले उनमें तूड़ी या अन्य चारा मिला लें। ताकि अफारा या बदहजमी ना हो। आवश्यकतानुसार खुराक का प्रबंध नीचे लिखे अनुसार भी किया जा सकता है।
खुराक प्रबंध: जानवरों के लिए आवश्यक खुराकी तत्व- उर्जा, प्रोटीन, खनिज पदार्थ और विटामिन होते हैं। गाय खुराक की वस्तुओं का चयन करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उसे दिया जा रहा खाद्य पदार्थ पोष्टिता से भरपूर हो। इसके लिए पशुपालक खुराक का प्रबंध इस प्रकार बताएं अनुसार कर सकते हैं जिससे पोष्टिकता के साथ ही दूध की मात्रा को भी बढ़ाया जा सके।
अनाज और इसके अन्य पदार्थ: मक्की, जौं, ज्वार, बाजरा, छोले, गेहूं, जई, चोकर, चावलों की पॉलिश, मक्की का छिलका, चूनी, बड़वे, बरीवर शुष्क दाने, मूंगफली, सरसों, बड़वे, तिल, अलसी, मक्की से तैयार खुराक, गुआरे का चूरा, तोरिये से तैयार खुराक, टैपिओका, टरीटीकेल आदि। हरे चारे : बरसीम (पहली, दूसरी, तीसरी, और चौथी कटाई), लूसर्न (औसतन), लोबिया (लंबी ओर छोटी किस्म), गुआरा, सेंजी, ज्वार (छोटी, पकने वाली, पकी हुई), मक्की (छोटी और पकने वाली), जई, बाजरा, हाथी घास, नेपियर बाजरा, सुडान घास आदि।
सूखे चारे और आचार : बरसीम की सूखी घास, लूसर्न की सूखी घास, जई की सूखी घास, पराली, मक्की के टिंडे, ज्वार और बाजरे की कड़बी, गन्ने की आग, दूर्वा की सूखी घास, मक्की का आचार, जई का आचार आदि।
अन्य रोजाना खुराक भत्ता: मक्की/ गेहूं/ चावलों की कणी, चावलों की पॉलिश, छाणबुरा/ चोकर, सोयाबीन/ मूंगफली की खल, छिल्का रहित बड़वे की खल/सरसों की खल, तेल रहित चावलों की पॉलिश, शीरा, धातुओं का मिश्रण, नमक, नाइसीन आदि।
शैड की आवश्यकता: अच्छे प्रदर्शन के लिए, पशुओं को अनुकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों की आवश्यकता होती है। पशुओं को भारी बारिश, तेज धूप, बर्फबारी, ठंड और परजीवी से बचाने के लिए शैड की आवश्यकता होती है। सुनिश्चित करें कि चुने हुए शैड में साफ हवा और पानी की सुविधा होनी चाहिए। पशुओं की संख्या के अनुसान भोजन के लिए जगह बड़ी और खुली होनी चाहिए, ताकि वे आसानी से भोजन खा सकें। पशुओं के व्यर्थ पदार्थ की निकास पाइप 30-40 सैं.मी. चौड़ी और 5-7 सैं.मी. गहरी होनी चाहिए।
मेवाती गाय के अलावा और भी ऐसी नस्ल हैं जिनसे अधिक दूध उत्पादन लिया जा सकता है। इनमें गिर, साहीवाल, राठी, हल्लीकर, हरियाणवी, कांकरेज, लाल सिंधी, कृष्णा वैली, नागोरी, खिल्लारी आदि नस्ल की गाय प्रमुख रूप से शामिल हैं।
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