प्रकाशित - 17 Aug 2024
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) ने धान की 9 नई किस्में विकसित की हैं। बताया जा रहा है कि यह किस्में किसानों को अधिक उत्पादन देने के साथ ही विभिन्न जलवायु में उगाई जा सकती हैं। इस तरह यह किस्में भारतीय किसानों के लिए कृषि उत्पादन में एक नई क्रांति लाने में बड़ी भूमिका निभा सकती है। इन किस्मों में खास बात यह है कि यह देश के विभिन्न राज्यों के लिए अनुकूल हैं। इन किस्मों से बेहतर पैदावार, लवणीयता सहनशीलता और विभिन्न जलवायु परिस्थितियों में सफल उत्पादन किया जा सकता है।
बता दें कि पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा खेत और बागवानी फसलों की 109 किस्में जारी की गई थी। इनमें ये 9 धान की किस्में भी शामिल रही।
सीआर 101 (IET 30827) किस्म को केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान करनाल द्वारा प्रायोजित किया गया है। यह किस्म मध्यम ऊंचाई वाली भूमि के लिए विकसित की गई है। इस किस्म को तैयार होने में 125 से 130 दिनों का समय लगता है। धान की इस किस्म से किसान प्रति हैक्टेयर 47.20 क्विंटल की पैदावार प्राप्त कर सकते हैं। इसकी प्रति हैक्टयर पैदावार क्षारीय भूमि, खारी भूमि और सामान्य स्थिति में क्रमश: 35.15, 39.33 और 55.88 क्विंटल मिल सकती है। यह किस्म हरियाणा, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक राज्यों में खेती के लिए उपयुक्त मानी गई है।
धान की सीआर 416 (IET 30201) किस्म को कटाई के लिए तैयार होने में 125 से 130 दिनों का समय लगता है। यह किस्म ब्राउन स्पॉट, नेक ब्लास्ट, शीथ सड़न, चावल टुंग्रो रोग, ग्लूमे डिस्कलरेशन के लिए मध्यम प्रतिरोधी है। जबकि यह किस्म भूरे पौधे हॉपर, टिड्डी और तना छेदक रोग की प्रतिरोधी है। धान की इस किस्म को महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल व गुजरात के तटीय लवणीय क्षेत्रों के लिए उपयुक्त पाया गया है। धान की इस किस्म से प्रति हैक्टेयर 48.97 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त हो सकता है।
धान की यह किस्म सूखे में सीधी बुवाई वाली एरोबिक स्थिति के लिए उपयुक्त पाई गई है। इसमें उच्च मात्रा में जिंक (25.5 पीपीएम) और आयरन (13.1 पीपीएम) पाया जाता है। यह किस्म 110 से 115 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। धान की यह किस्म गर्दन ब्लास्ट और तना सड़न रोग के लिए प्रतिरोधी है। जबकि पत्ती ब्लास्ट, भूरा धब्बा और सीथ सड़न के लिए मध्यम प्रतिरोधी किस्म है। इसके अलावा यह किस्म तना छेदक (मृत दिल और सफेद कान सिर), पित्त मिज, पत्ती फोल्डर, चावल का थ्रिप जैस प्रमुख कीटों के लिए सहनशील है। खरीफ के दौरान वर्षा आधारित और पानी की कमी वाले क्षेत्र के लिए प्रति हेक्टेयर उपज सामान्य स्थिति में 43.69 क्विंटल/हेक्टेयर और मध्यम सूखे की स्थिति में 29.02 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक प्राप्त की जा सकती है।
सीआर धान 810 (IET 30409) किस्म 150 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। यह किस्म प्रारंभिक चरण में 14 दिनों तक जलमग्नता सहनशील, भूरा धब्बा रोग के लिए मध्यम प्रतिरोधी, पत्ती मोड़क और तना छेदक (मृत हृदय) के लिए मध्यम प्रतिरोधी किस्म है। यह किस्म ओडिशा, पश्चिम बंगाल और असम के लिए अनुमोदित की गई है। इस किस्म से 42.38 क्विंटल प्रति हैक्टेयर उपज प्राप्त की जा सकती है।
सीआर धान 108 (IET 29052) की किस्म प्रारंभिक सीधी बुवाई वाली वर्षा आधारित स्थिति के लिए उपयुक्त है। यह किस्म 110 से 114 दिनों में तैयार हो जाती है। यह किस्म भूरा धब्बा रोग, पत्ती मोड़क, तना छेदक रोग की प्रतिरोधी है। वहीं यह प्लांट हॉपर के प्रति मध्यम प्रतिरोधी और सूखे के प्रति मध्यम सहनशील किस्म है। धान की इस किस्म से प्रति हैक्टेयर 34.46 क्विंटल तक उपज प्राप्त की जा सकती है। यह किस्म बिहार, ओडिशा राज्य के लिए अनुमोदित की गई है।
डीआरआर धान 73 (आईईटी 30242) किस्म को भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान राजेंद्र नगर हैदराबाद की ओर से छठी किस्म के रूप में प्रायोजित किया गया है। यह किस्म 120 से 125 दिन में पककर तैयार हो जाती है। यह किस्म खरीफ और रबी दोनों के लिए कम मृदा फास्फोरस वाले सिंचित और वर्षा आधारित उथले निचले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। इसकी उपज 60 क्विंटल प्रति हैक्टेयर (सामान्य परिस्थितियों में; 60 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर फास्फोरस की अनुशंसित मात्रा डाले), 40 क्विंटल प्रति हैक्टेयर (कम फास्फोरस के तहत; 40 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर) प्राप्त की जा सकती है। यह किस्म लीफ ब्लास्ट के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है। इस किस्म को ओडिशा, कर्नाटक और तेलंगाना के लिए अनुमोदित किया गया है।
डीआरआर धान 74 (आईईटी30252) किस्म खरीफ और रबी दोनों के लिए कम मृदा फास्फोरस वाले सिंचित और वर्षा आधारित उथले निचले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। यह किस्म 130 से 135 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। यह किस्म पत्ती प्रध्वंस, गर्दन प्रध्वंस, आवरण सड़न, पादप फुदक रोगों के प्रति मध्यम सहनशील है। इस किस्म से 70 क्विंटल प्रति हैक्टेयर (सामान्य परिस्थितियों में; 60 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर फास्फोरस) और 44 क्विंटल प्रति हैक्टेयर (कम फास्फोरस के तहत; 40 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर फास्फोरस) पैदावार प्राप्त की जा सकती है। यह किस्म पत्ती प्रध्वंस, गर्दन प्रध्वंस, आवरण सड़न, पादप फुदक रोगों के प्रति मध्यम सहनशील है। यह किस्म महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना, झारखंड और भारत में फॉस्फोरस की कमी वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त पाई गई है।
डीआरआर धान 78 (आईईटी 30240) किस्म 120 से 125 दिन की अवधि में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म से 58 क्विंटल प्रति हैक्टेयर (सामान्य परिस्थितियों में; 60 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर फास्फोरस), 46 क्विंटल प्रति हैक्टेयर (कम फास्फोरस के तहत; 40 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर फास्फोरस) पैदावार मिलती है। यह किस्म पत्ती प्रध्वंस और पौध फुदका के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है। इस किस्म को कर्नाटक और तेलंगाना के लिए उपयुक्त माना गया है।
धान की इस किस्म को पंडित जवाहरलाल नेहरू कृषि महाविद्यालय और अनुसंधान संस्थान कराईकल, पुडुचेरी द्वारा प्रायोजित किया गया है जो जलमग्न जैसी स्थितियों के लिए उपयुक्त है। यह किस्म 120 से 125 दिनों में तैयार हो जाती है। इस किस्म से तनाव स्थितियों में 38 क्विंटल प्रति हैक्टेयर और 56 क्विंटल प्रति हैक्टेयर सामान्य स्थितियों में प्राप्त की जा सकती है। इस किस्म को तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और पुडुचेरी के लिए अनुमोदित किया गया है।
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