Published - 29 Jan 2022
साल 2021 में सरसों के भावों में रिकॉर्ड तेजी से किसानों का भरपूर मुनाफा हुआ था। सरसों के दामों में तेजी ने किसानों का रूझान सरसों की खेती की ओर बढ़ा दिया है। इस बार रबी सीजन के दौरान तिलहनी फसलों में सबसे ज्यादा बुवाई सरसों की हुई है। सरसों का रकबा 91.44 लाख हेक्टेयर हो गया है। पिछले साल यह रकबा 73.12 लाख हेक्टेयर था। अभी खेतों में सरसों की फसल लहलहा रही है। सरसों उत्पादक प्रमुख राज्य राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश व हरियाणा में कुछ जगहों पर बारिश के कारण सरसों की फसल को मामूली नुकसान हुआ है। लेकिन किसानों को इस बार सरसों की बंपर पैदावार की उम्मीद है। लेकिन किसानों के मन में एक प्रश्न है कि क्या बंपर पैदावार के बाद भी उनको पिछले साल की तरह सरसों के भाव मिल पाएंगे। आपको बता दें कि पिछले साल सरसों न्यूनतम समर्थन मूल्य से ज्यादा भाव पर बाजार में बिकी थी, जिन किसानों ने सरसों का स्टॉक रखा उनकी सरसों तो 9-10 हजार रुपए प्रति क्विंटल तक बिक गई थी। ट्रैक्टर जंक्शन की इस पोस्ट में आपको रबी सीजन सरसों भाव के बारे में जानकारी दी जा रही है।
एक तरफ सरसों के लिए इस समय मौसम खुलना बहुत जरूरी है। मौसम खुलने के साथ ही खेतों में परिपक्व अवस्था में खड़ी सरसों की फसल दो-पांच दिन में ही कटाई लायक हो जाती है। जहां सरसों की फसल तैयार हो गई है वहां किसान सरसों को मंडी ला रहे हैं। इधर पिछले कई दिनों से शीतलहर और बादलों के बने रहने से किसान सरसों की निकासी करने से कतरा रहे हैं। वहीं सरसों के व्यापारियों का मानना है कि मौसम खुलने पर सरसों की आवक बढऩे लगती है और भाव पहले से कम हो जाते हैं। राजस्थान की प्रमुख सरसों मंडी अलवर में शुक्रवार 28 जनवरी को सरसों के भाव 7200 रुपये प्रति क्विंटल रहे जबकि दो दिन पहले सरसों के भाव 7800 रुपये प्रति क्विंटल थे। वहीं सरसों के व्यापार में यह उतार-चढाव का दौर इस बार अप्रैल तक चलने की संभावना है। मई में
सरसों के भाव स्थिर होने का अनुमान है।
बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि 2020-21 से पहले सरसों के तेल में ब्लेंडिंग यानि अन्य तेलों का मिश्रण करने की छूट थी। मोदी सरकार ने 2021 में सरसों तेल में ब्लेंडिंग पर रोक लगा दी है। इसके बाद से अब देश में सरसों का शुद्ध तेल ही बिकता है और इसका लाभ किसानों को मिल रहा है। साल भर सरसों के भावों में तेजी बनी रही। केंद्र सरकार ने विपणन मौसम 2022-23 के लिए सरसों का समर्थन मूल्य भी 400 रुपए बढ़ाकर 5050 रुपए प्रति क्विंटल कर दिया है। इस बार भी सरसों के न्यूनतम समर्थन मूल्य से ज्यादा पर बिकने की पूरी उम्मीद है।
बाजार विशेषज्ञों के अनुसार सरसों की आवक के पीक सीजन में सरसों का भाव किसी भी कीमत में 5500 रुपए प्रति क्विंटल से नीचे नहीं जाना चाहिए। इस साल भी सरसों के अधिकतम भाव 8-9 हजार प्रति क्विंटल देखे जा सकते हैं। लेकिन यह वैश्विक परिदृश्य पर निर्भर करेगा कि अन्य तिलहनी फसलों की कितनी पैदावार होती है। अप्रैल 2022 तक सरसों के भाव में उतार-चढ़ाव जारी रहेगा। इसमें मौसम भी एक महत्वपूर्ण कारक होगा। अगर मौसम अनुकूल रहा तो सरसों की पैदावार किसानों को मालामाल कर सकती है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार वर्तमान में सरसों की 80 हजार बोरियों की आवक मंडियों में बनी हुई है जबकि मांग दो-ढाई लाख बोरियों की प्रतिदिन है। वहीं किसानों के पास 80-90 हजार टन का स्टॉक रह गया है। सरसों का भाव मई के महीने में कुछ स्थायी होंगे। अगर सरकार की नीतियां किसानों के अनुकूल रही तो इस साल भी सरसों के भाव किसानों के वारे-न्यारे करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा।
बता दें कि इस बार भारत के सभी क्षेत्रों में सरसों और अन्य तिलहन फसलों का रकबा बढ़ा है। कुल मिला कर तिलहन के रकबे में 18.30 लाख हेक्टेयर की अधिक बढ़ोतरी हुई। इससे तिलहन का रकबा 101. 16 लाख हेक्टेयर हो गया। इसमें सरसों का रकबा 91 लाख हेक्टेयर है जो सर्वाधिक है। गेहूं का रकबा काफी कम हुआ है। इसकी मुख्य वजह सिंचाई के संसाधनों की कमी और भूमिगत जल स्तर का नीचे जाना है। साथ ही गेहूं के उत्पादन में अधिक लागत का आना है।
राजस्थान के अलावा जिन राज्यों में सरसों की खेती होती है उनमें हरियाणा, मध्यप्रदेश, यूपी और पश्चिमी बंगाल प्रमुख है। बता देें कि अकेले राजस्थान में कुल सरसों उत्पादन का 33 प्रतिशत हिस्सा इस बार शामिल है। हरियाणा में देश की 13.33 प्रतिशत सरसों पैदा होती है जबकि मध्यप्रदेश की हिस्सेदारी 11.76 प्रतिशत है। वहीं उत्तरप्रदेश में 11. 40 और पश्चिमी बंगाल में कुल सरसों उत्पादन का 8.64 प्रतिशत सरसों का उत्पादन होता है।
यहां बता दें कि इस बार सरसों की फसल में कीट व अन्य प्रकार नुकसान बहुत कम है। इससे सरसों की बंपर पैदावार होने की संभावना है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद में सहायक महानिदेशक डॅाक्टर डी.के. यादव का कहना है कि दो कारणों से सरसों की फसल रकबे में वृद्धि रही है। पहला फैक्टर है दाम और दूसरा है मौसम। अब सरसों की फसल लगभग पकने जा रही है। कई जगह सरसों तैयार होकर मंडियों तक पहुंचने लगी है। किसानों को चाहिए कि वे जैसे ही सरसों की फसल तैयार हो तो उसे ज्यादा दिनों तक नमी वाले स्थान में नहीं रखे। अधिकांश किसान आजकल सरसों की फसल को हाथों- हाथ मंडी ले जाते हैं। इससे भाव भी सही मिल जाते हैं।
बता दें कि वर्ष 2020-21 में सरसों के भाव 10,000 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास पहुंच गए थे। सरसों के भावों में तेजी इस बार भी रहने की पूरी संभावना बनी हुई है। सरसों के भाव ज्यादा होने से सरसों तेल के भाव भी गत बार आसमान पर रहे। एक लीटर मस्टर्ड ऑयल के दाम 200 रुपये तक हो गए थे।
यदि आप किसान हैं तो आप अपने घर पर सरसों तेल की मिल या कच्ची घाणी लगा सकते हैं। आजकल सरसों का शुद्ध तेल बाजार में काफी महंगा बिकता है। ऐसे में सरसों का तेल निकाल कर उसे बेच कर अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। तेल मिल के लिए अधिक जगह की भी जरूरत नहीं पड़ती। सरसों तेल निकालने के लिए आप सरसों थोक में खरीद सकते हैं। तेल मिल शुरू करने से पहले आपको इसके मार्केट ढूंढने की भी जरूरत नहीं है। आजकल लोग मिल से ही सीधे खरीदारी कर सकते हैं।
सरसों के तेल की मिल स्थापित करने के लिए अधिक बहुत भारी भरकम उपकरणों की जरूरत नहीं होती। इसके लिए ये उपकरण आवश्यक हैं-:
इनके अलावा बिजनेस के लिए जो कच्चा माल चाहिए उसमें सरसों बीज या दाना, पैकिंग बोतल, पाउच आदि जरूरी होते हैं।
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