प्रकाशित - 19 Nov 2022 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
हमारे देश के किसान पारंपरिक खेती के साथ-साथ अपनी आय बढ़ाने के लिए व्यावसायिक खेती की तरफ रुख कर रहे हैं। इसी कड़ी में किसान अखरोट की खेती करके अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। अखरोट में प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, पोटैशियम अधिक मात्रा में पाया जाता है। अपने गुणों के कारण बाजार में अखरोट की मांग काफी रहती है। अखरोट की खेती मुख्य रुप से पहाड़ी क्षेत्रों में की जाती है लेकिन अब इसकी खेती देश के अन्य राज्यों में भी होने लगी है। यदि सही तरीके और उन्नत किस्मों का चयन करके अखरोट की खेती की जाए तो इससे काफी अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। अखरोट की खेती करके किसान लाखों रुपये की कमाई कर सकते हैं। किसान भाईयों आज हम ट्रैक्टर जंक्शन की इस पोस्ट के माध्यम से आपके साथ अखरोट की खेती से जुड़ी सभी जानकारी साझा करेंगे।
भारत में अखरोट की खेती या बागवानी मुख्य रूप से पहाड़ी क्षेत्रों में की जाती है। वर्तमान समय में अखरोट की खेती जम्मू-कश्मीर, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड़ और अरुणाचल प्रदेश में होती है। अखरोट का सबसे अधिक उत्पादन करने वाला राज्य जम्मू और कश्मीर है। अखरोट मुख्य रूप से उत्तर-पश्चिमी हिमालय क्षेत्र का फल है और इसके पौधे समुद्रतल से 1200 से 2150 मीटर की ऊंचाई तक में उगते हैं।
अखरोट के फल में 14.8 ग्राम प्रोटीन, 64 ग्राम वसा, 15.80 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 2.1 ग्राम रेशा, 1.9 ग्राम राख, 99 मिलीग्राम कैल्शियम, 380 मिलीग्राम फासफोरस, 450 मिलीग्राम पोटैशियम प्रति 100 ग्राम अखरोट में पाया जाता है। 50 ग्राम अखरोट में 392 कैलोरी ऊर्जा होती हैं, 9 ग्राम प्रोटीन होता है, 39 ग्राम वसा होती है और 8 ग्राम कार्बोहाइड्रेट होता है। इसमें विटामिन ई और बी 6, कैल्शियम और मिनरल भी पर्याप्त मात्रा में होते हैं।
अखरोट की खेती में अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए उन्नत किस्मों का ही चुनाव करें। अखरोट की उन्नत किस्मों में पूसा अखरोट, पूसा खोड़, प्लेसैन्टिया, विलसन, फ्रेन्क्वेट, प्रताप, गोबिंद, काश्मीर बडिड, यूरेका, सोलडिंग सलैक्शन व कोटखाई सलैक्शन आदि शामिल हैं। किसान अखरोट की इन किस्मों की बुवाई करके अच्छा उत्पादन व अधिक मुनाफा कमा सकते हैं।
अखरोट की खेती करते समय अखरोट का सही उत्पादन व लाभ पाने के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना आवश्यक होता हैं-
अखरोट की खेती करने के लिए न तो ज्यादा गर्म जलवायु वाले क्षेत्र अच्छे होते हैं, न ज्यादा ठंडी जलवायु वाले क्षेत्र। जिन इलाकों में ज्यादा गर्मी पड़ती है वहां इसके फल और पौधे खराब हो जाते हैं, ज्यादा ठंड होने पर व पाला पड़ने पर अखरोट के पौधों का विकास रुक जाता है। अखरोट की खेती करने के लिए 20 से 25 डिग्री तक का तापमान उपयुक्त होता है। जब अखरोट के फल बढ़ रहे हो तो ठंडी जलवायु उपयुक्त होती है।
अखरोट की खेती करने के लिए उचित जल निकासी वाली भुरभुरी दोमट मिट्टी अच्छी होती है। इसकी खेती के लिए रेतीली व सख्त मिट्टी उपयुक्त नहीं होती है। मिट्टी बंजर व क्षारीय नहीं होना चाहिए।
अखरोट की खेती करने के लिए दिसंबर से मार्च का महीना उपयुक्त होता हैं। कुछ जगहों पर अखरोट की खेती बारिश के मौसम में भी की जाती हैं। लेकिन दिसंबर में इसकी खेती करना सबसे उपयुक्त माना जाता हैं। क्योंकि दिसंबर में इसका पौधा लगाने के बाद पौधों को काफी ज्यादा वक्त तक उचित मौसम मिलता हैं। जिससे पौधा अच्छे तरीके से विकास करता हैं।
अखरोट की खेती में पौधों को खेत में गड्ढे तैयार करके लगाया जाता हैं। खेत में गड्ढे को तैयार करने से पहले खेत की ट्रैक्टर की सहायता से मिट्टी पलटने वाले हल या कल्टीवेटर की मदद से गहरी जुताई कर कुछ दिनों के लिए खुला छोड़ देना चाहिए। इसके बाद खेत की मिट्टी भुरभुरी करने के लिए खेत में रोटावेटर चला दें। इससे खेत में मौजूद ढ़ीले भुरभुरी मिट्टी में बदल जाते हैं। रोटावेटर से खेत की जुताई करने के बाद पाटा लगाकर भूमि को समतल बना देना चाहिए। भूमि को समतल करने के बाद खेत में उचित दूरी रखते हुए दो फीट चौड़े और एक से डेढ फीट गहरे गड्ढे तैयार कर ले। इस बात का ध्यान रखे की गड्ढे से गड्ढे और पंक्तियों के बीच की दूरी पांच मीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए।
अखरोट की पौध में रोपाई से करीब एक साल पहले मई और जून माह में नर्सरी तैयार की जाती हैं। नर्सरी में अखरोट का पौधा तैयार करने के लिए ग्राफ्टिंग विधि का इस्तेमाल किया जाता है। अखरोट की पौध ग्राफ्टिंग विधि से तैयार करने पर पौधों में मुख्य पौधे वाले सभी गुण पाये जाते हैं। इसके अलावा बीज से तैयार पौधे 20 से 25 साल बाद उपज देना शुरु करते हैं। जबकि ग्राफ्टिंग से तैयार पौधे कुछ साल बाद ही उपज देने लग जाते हैं।
अखरोट की खेती करते समय पौधों की रोपाई से पहले गड्ढों की तैयारी करते समय प्रत्येक गड्ढों में 10 से 12 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद और लगभग 100 से 150 ग्राम रासायनिक उर्वरक की मात्रा को मिट्टी में अच्छे से मिलाकर गड्ढों में भर देना चाहिए। इसके अलावा खेत की मिट्टी में अगर जिंक की कमी हो तो पौधों को हल्की मात्रा में जिंक देना उपयुक्त होता हैं।
अखरोट की फसल में सर्दियों के मौसम में पौधों को 20 से 30 दिन में सिंचाई करनी चाहिए। वहीं सर्दियों में अधिक पाला पड़ने की स्थिति में पौधों को हल्का पानी देना चाहिए जिससे पाले का प्रभाव कम दिखाई देता है। अखरोट के पौधे पूरी तरह से विकसित होने के बाद इसके पेड़ों को साल भर में 7 से 8 सिंचाई की ही जरूरत होती हैं।
अखरोट के पौधे लगभग 4 साल बाद फल देना शुरू कर देते हैं। जब अखरोट के फलों की ऊपरी छाल फटने लगे तब इसकी तुड़ाई करनी चाहिए। अखरोट के फल पकने के बाद खुद से टूटकर गिरने लगते हैं। जब पौधे से लगभग 25 प्रतिशत फल अपने आप गिर जाएं तब एक लंबा बांस लेकर पौधे से इसके फल को तोड़ लेना चाहिए। अखरोट के नीचे गिरे हुए फलों को एकत्रित करके उन्हें पौधे की पत्तियों से ढक देना चाहिए।
अखरोट का पौधा 4 साल की आयु पूरी करने के बाद से फल देना शुरू करता है, जो अगले 25 से 30 साल तक उत्पादन देता है। एक पौधा सालाना 45 से 55 किलो तक की पैदावार देता है। अखरोट एक महंगा ड्राईफ्रूट है। अखरोट का बाजार मूल्य 500 से 700 रुपये प्रति किलो तक का रहता है। इस हिसाब से देखें तो अखरोट के 20 से 25 पेड़ लगाकर ही किसान 5 से 6 लाख रुपये तक की कमाई आसानी से कर सकते हैं।
ट्रैक्टर जंक्शन हमेशा आपको अपडेट रखता है। इसके लिए ट्रैक्टरों के नये मॉडलों और उनके कृषि उपयोग के बारे में एग्रीकल्चर खबरें प्रकाशित की जाती हैं। प्रमुख ट्रैक्टर कंपनियों प्रीत ट्रैक्टर, वीएसटी ट्रैक्टर आदि की मासिक सेल्स रिपोर्ट भी हम प्रकाशित करते हैं जिसमें ट्रैक्टरों की थोक व खुदरा बिक्री की विस्तृत जानकारी दी जाती है। अगर आप मासिक सदस्यता प्राप्त करना चाहते हैं तो हमसे संपर्क करें।
अगर आप नए ट्रैक्टर, पुराने ट्रैक्टर, कृषि उपकरण बेचने या खरीदने के इच्छुक हैं और चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा खरीददार और विक्रेता आपसे संपर्क करें और आपको अपनी वस्तु का अधिकतम मूल्य मिले तो अपनी बिकाऊ वस्तु को ट्रैक्टर जंक्शन के साथ शेयर करें।