Published - 10 Feb 2020
ट्रैक्टर जंक्शन पर देश के किसान भाइयों का एक बार फिर स्वागत है। आज हम बात करते हैं वर्टिकल/खड़ी खेती के बारे में। सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश में कृषि योग्य भूमि लगातार कम हो रही है। वर्ष 2016 में सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार कृषि योग्य भूमि में करीब 50 प्रतिशत तक की कमी आई है जो भविष्य में और बढ़ सकती है। ऐसे में अब कम जमीन पर ज्यादा पैदावार देने वाली खेती तकनीकों की जरूरत है। इसी को देखते हुए अब वर्टिकल खेती की ओर रूझान बढ़ रहा है। वर्टिकल खेती को भविष्य की शहरी खेती भी कह सकते हैं।
वर्टिकल खेती को सामान्य भाषा में खड़ी खेती भी कह सकते हैं। यह खुले में हो सकती है और इमारतों व अपार्टमेंट की दीवारों का उपयोग भी छोटी-मोटी फसल उगाने के लिए किया जा सकता है। वर्टिकल फार्मिंग एक मल्टी लेवल प्रणाली है। इसके तहत कमरों में बहु-सतही ढांचा खड़ा किया जाता है, जो कमरे की ऊंचाई के बराबर भी हो सकता है। वर्टिकल ढांचे के सबसे निचले खाने में पानी से भरा टैंक रख दिया जाता है। टैंक के ऊपरी खानों में पौधों के छोटे-छोटे गमले रखे जाते हैं। पंप के जरिए इन तक काफी कम मात्रा में पानी पहुंचाया जाता है। इस पानी में पोषक तत्व पहले ही मिला दिए जाते हैं। इससे पौधे जल्दी-जल्दी बढ़ते हैं। एलइडी बल्बों से कमरे में बनावटी प्रकाश उत्पन्न किया जाता है। इस प्रणाली में मिट्टी की जरूरत नहीं होती। इस तरह उगाई गई सब्जियां और फल खेतों की तुलना में ज्यादा पोषक और ताजे होते हैं। अगर ये खेती छत पर की जाती है तो इसके लिए तापमान को नियंत्रित करना होगा। वर्टिकल तकनीक में मिट्टी के बजाय एरोपोनिक, एक्वापोनिक या हाइड्रोपोनिक बढ़ते माध्यमों का उपयोग किया जाता है। वास्तव में वर्टिकल खेती 95 प्रतिशत कम पानी का उपयोग करती है। छतों, बालकनी और शहरों में बहुमंजिला इमारतों के कुछ हिस्सों में फसली पौधे उगाने को भी वर्टिकल कृषि के ही एक हिस्से के रूप में देखा जाता है।
हाइड्रोपोनिक्स में पौधों को पानी में उगाया जाता है। इस पानी में आवश्यक पादप पोषक मिले होते हैं। केवल पानी में या बालू अथवा कंकड़ों के बीच नियंत्रित जलवायु में बिना मिट्टे के पौधे उगाने की तकनीक को हाइड्रोपोनिक्स कहते हैं। हाइड्रोपोनिक्स शब्द की उत्पत्ति दो ग्रीक शब्दों हाइड्रो तथा पोनोस से मिलकर हुई है। हाइड्रो का मतलब पानी जबकि पोनोस का मतलब कार्य है। हाइड्रोपोनिक्स में पौधों और चारे वाली फसलों को नियंत्रित परिस्थितियों में 15 से 30 डिग्री सेल्सियस ताप पर लगभग 80 से 85 प्रतिशत आर्द्रता में उगाया जाता है।
एयरोपोनिक्स में पौधों की जड़ों पर केवल मिश्रित पोषक तत्त्वों का छिडक़ाव किया जाता है। गमले में लगे पौधों के मामले में आम तौर पर मिट्टी की जगह पर्लाइट, नारियल के रेशे, कोको पीट, फसलों का फूस या बजरी का इस्तेमाल किया जाता है।
वर्टिकल खेती के ज्यादा भूमि की कोई आवश्यकता नहीं होती है। इस तकनीक में एक गमले से लेकर एक एकड़ भूमि में फसलों का उत्पादन लिया जा सकता है। वर्टिकल खेती में मुख्य रूप से बेल या छोटे पौधों वाली फसलें ही ज्यादा उगाई जा सकती है। इनमें घीया, लोकी, टमाटर, मिर्च, धनिया, खीरा, पत्तेदार सब्जियां शामिल है। परंपरागत खेती में जहां बेल वाली फसल का उत्पादन कम होता है और बारिश के समय फसल खराब होने का भी अंदेशा बना रहता है। वहीं वर्टिकल खेती में फसल आसमान की दिशा में बांस के सहारे रस्सी की सहायता से बढ़ती है। जिस कारण खेत में पानी देते समय पौधा व फसल खराब नहीं होते हैं। जबकि परंपरागत तरीके से खेत में पानी देते समय बेल पर लगे फल और पौधे कई बार खराब हो जाते हैं। इसकी खास बात यह है कि इसमें रासायनिक खाद व कीटनाशक दवाओं का इस्तेमाल नहीं होता है, यह उत्पादन पूरी तरह से आर्गेनिक होता है।
वर्टिकल खेती करने वाले ज्यादातर उद्यमी लेटिस, ब्रोकली, औषधीय एवं सुगंधित जड़ी-बूटियां, फूल और साज-सज्जा के पौधे, टमाटर, बैगन जैसी मझोली आकार की फसलें और स्ट्रॉबेरी जैसे फल उगाते हैं। संरक्षित पर्यावरण में अलमारियों में ट्रे में मशरूम की वाणिज्यिक खेती वर्टिकल खेती का सबसे आम उदाहरण है। उच्च तकनीक वाली वर्टिकल खेती का एक अन्य सामान्य उदाहरण टिश्यू कल्चर है। इसमें पौधों के बीजों को टेस्ट ट्यूब में सिंथेटिक माध्यम में उगाया जाता है और कृत्रिम प्रकाश और पर्यावरण मुहैया कराया जाता है। वर्टिकल फार्म में उगाए जाने वाले उत्पाद बीमारियों, कीटों और कीटनाशकों से मुक्त होते हैं। आम तौर पर इनकी गुणवत्ता बहुत बेहतर होती है, इससे उनके दाम भी ज्यादा होते हैं।
वर्टिकल खेती या खड़ी खेती का विचार भारत में अभी नया है। कुछ कृषि विश्वविद्यालयों में इन पर शोध चल रहा है। इस समय वर्टिकल कृषि मुख्य रूप से मेट्रो सिटी बेंगलूरु, हैदराबाद ,दिल्ली और कुछ अन्य शहरों में होती है। यहां उद्यमियों ने शौकिया तौर पर वर्टिकल खेती की शुरुआत की थी, लेकिन बाद में व्यावसायिक उद्यम का रूप दे दिया। इन शहरों में बहुत से उद्यमी हाइड्रोपोनिक्स और एयरोपोनिक्स जैसे जानी-मानी प्रणालियों का इस्तेमाल कर रहे हैं। इस तरह की खेती करने के लिए वर्टिकल खेती की तकनीकी ज्ञान का होना जरूरी हैं। अमेरिका, चीन, सिंगापुर और मलेशिया जैसे कई देशों में वर्टिकल फार्मिंग पहले से हो रही है। इसमें एक बहुमंजिला इमारत में नियंत्रित परिस्थितियों में फल-सब्जियां उगाए जाते हैं।
वर्टिकल फॉर्मिंग के कम लोकप्रिय होने की मुख्य वजहों में से एक शोध एवं विकास में मदद का अभाव है। वर्टिकल खेती की तकनीक को बेहतर बनाने और लागत कम करने के लिए मुश्किल से ही कोई संस्थागत शोध चल रहा है। खेती की इस प्रणाली को लोकप्रिय बनाने के लिए ऐसे शोध की तत्काल जरूरत है। सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों को शोध एवं विकास केंद्र स्थापित करने के बारे में विचार करना चाहिए ताकि वर्टिकल खेती को प्रोत्साहित किया जा सके। सरकार को वर्टिकल कृषि को बढ़ावा देने के लिए नीतियां लानी चाहिए। अभी वर्टिकल खेती को बढ़ावा देने के लिए केंद्र व राज्य सरकार की ओर से कोई प्रोत्साहन व सब्सिडी नहीं दी जा रही है।
वर्टिकल फार्मिंग में अभी सरकार की ओर से कोई सहायता नहीं मिल रही है। भारत में यह कृषि की नवीनतम तकनीक है और इसकी प्रारंभिक लागत बहुत ज्यादा है। लेकिन बाजार में कई निजी क्षेत्र की कंपनियां इस दिशा में काम कर रही है। ये प्रोजेक्ट दो लाख रुपए से लेकर ढाई करोड़ रुपए तक के हैं जोकि 5 हजार स्क्वायर फीट से लेकर एक एकड़ यानि 40 हजार स्क्वायर फीट तक हो सकते हैं।
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