Published - 18 Feb 2020
ट्रैक्टर जंक्शन पर सभी किसान भाइयों का स्वागत है। आज हम बात करतें हैं गन्ने की बसंतकालीन खेती की। गन्ना एक प्रमुख व्यावसायिक फसल है। भारत में गन्ने की खेती वैदिक काल से की जा रही है। गन्ने की खेती से देश में करीब एक लाख लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिलता है। विषम परिस्थितियां भी गन्ना की फसल को बहुत अधिक प्रभावित नहीं कर पाती है। इन्हीं विशेष कारणों से गन्ना की खेती अपने-आप में सुरक्षित व लाभ की खेती मानी जाती है।
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देश में शरदकालीन एवं बसंतकालीन गन्ने की फसल बोई जाती है। अब बसंत कालीन गन्ने की फसल बोने का समय शुरू हो चुका है। बसंत कालीन गन्ने की फसल 15 फरवरी से 15 मार्च तक करनी चाहिए। यह समय सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। बसंत कालीन गन्ने की बुवाई देर से काटे गए धान वाले खेत व तोरिया, मटर व आलू की फसल से खाली हुए खेत में की जा सकती है। जबकि शरद कालीन गन्ने की बुवाई 15 अक्टूबर तक करनी चाहिए।
बसंत कालीन गन्ने की खेती की प्रक्रिया
गन्ने के लिए दोमट मिट्टी का खेत सबसे बढिय़ा होता है। किंतु भारी टोमट मिट्टी होने पर भी गन्ने की अच्छी फसल हो सकती है। क्षारीय/अमली भूमि व जिस भूमि पर पानी का जमाव होता हो वहां पर गन्ने की खेती नहीं करनी चाहिए। खेत को तैयार करने के लिए एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से जोतकर तीन बार हैरो चलाना चाहिए। देसी हल की 5-6 जुताइयां करनी जरूरी होती है। बुवाई के समय खेत में नमी होना आवश्यक है। जिस खेत में गन्ना उगाना हो उसमें पिछले वर्ष की गन्ने की रोगी फसल नहीं बोनी चाहिए।
जिस खेत से गन्ने का बीज लेना हो उस खेत में अच्छी तरह खाद डाली जानी चाहिए। गन्ना निरोगी होना चाहिए। यदि गन्ने का केवल ऊपरी भाग बीज के काम लाया जाए तो अधिक अंकुरित होता है। गन्ने के तीन आंख वाले टुकड़ों को काट देना चाहिए। इस तरह 40 हजार टुकड़े प्रति हेक्टेयर के लिए काफी होंगे। इसका वजन करीब 70-75 क्विंटल होगा। बोने से पहले बीज को कार्बनिक कवकनाशी से उपचारित कर लें।
उन्नत गन्ने की खेती में बुवाई : गन्ना बोने की खाई विधि
बसंत ऋतु में 75 से.मी. की दूर पर तथा शरद ऋतु में 90 से.मी. की दूरी पर रिजन से 20 से.मी. गहरी नालियां खोदनी चाहिए। इसके बाद उर्वरक को नाली में डालकर मिट्टी मिला देनी चाहिए। बुवाई के 5 दिन बाद गाम बीएचसी (लिंडेन) का 1200-1300 लीटर पानी में घोलकर बोए गए टुकड़े पर छिडक़ाव से दीमक व जड़ और तने में भेदक कीड़े नहीं लगते हैं। इस दवा को 50 लीटर पानी में घोलकर नालियों पर छिडक़कर उन्हें मिट्टी से बंद कर दें। यदि पायरिला के अंडों की संख्या बढ़ जाती है तो उस समय किसी भी रसायन का प्रयोग न करें। कीट विशेषा से राय लें। यदि खड़ी फसल में दीमक का प्रकोप हो गया है तो 5 लीटर गामा बी.एच.सी. 20 ई.सी. का प्रति हैक्टेयर की दर से खेत में सिंचाई करते समय प्रयोग करना चाहिए।
गन्ना बोने की मशीन
किसान भाई गन्ना बोने की मशीन सीडर कटर प्लांटर का प्रयोग कर सकते हैं।
बसंतकालीन गन्ने की खेती में 6 सिंचाई की आवश्यकता होती है। 4 सिंचाई बारिश से पहले व दो सिंचाई बारिश के बाद करनी चाहिए। तराई क्षेत्रों में बरसात के पहले 2-3 सिंचाई पर्याप्त होती है और बरसात में सिर्फ 1 सिंचाई पर्याप्त होती है।
गन्ना बोने के 25-30 दिनों के अंतरपर तीन गुड़ाइयां करके खरपतवार नियंत्रण किया जा सकता है। रसायनों से खरपतवार को नष्ट नहीं किया जा सकता है। गन्ना बोने के तुरंत बाद एट्राजिन तथा सेंकर का एक किग्रा सक्रिय पदार्थ एक हजार लीटर पानी में खरपतवार होने की दशा में छिडक़ाव करें।
गन्ने में रोग मुख्यत: बीज द्वारा लगते हैं। रोगों की रोकथाम के लिए निम्न तरीके अपनाए जा सकते हैं।
फसल के पकने की अवधि लंबी होने कारण खाद एवं उर्वरक की आवश्यकता भी अधिक होती है अत: खेत की अंतिम जुताई से पूर्व 20 टन सड़ा गोबर/कम्पोस्ट खाद खेत में समान रूप से मिलाना चाहिए। इसके अतिरिक्त 300 किलो नत्रजन (650 कि.ग्रा. यूरिया ), 85 कि.ग्रा. स्फुर, ( 500 कि.ग्रा. सिंगल सुपर फास्फेट) एवं 60 कि. पोटाश (100 कि.ग्रा. म्यूरेटआपपोटाश) प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए। स्फुर एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय प्रयोग करें एवं नत्रजन की मात्रा को निम्नानुसार प्रयोग करें। बसंतकालीन गन्ने में नत्रजन की कुल मात्रा को तीन समान भागों में विभक्त कर बोनी क्रमश: 30, 90 एवं 120 दिन में प्रयोग करें। नत्रजन उर्वरक के साथ नीमखली के चूर्ण में मिलाकर प्रयोग करने में नत्रजन उर्वरक की उपयोगिता बढ़ती है। साथ ही दीमक से भी सुरक्षा मिलती है। 25 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट व 50 कि.ग्रा. फेरस सल्फेट 3 वर्ष के अंतराल में जिंक व आयरन सूक्ष्म तत्व की पूर्ति के लिए आधार खाद के रूप में बुवाई के समय उपयोग करें।
गन्ने के खेत में दूसरी फसल भी बोई जा सकती है जिससे किसान अतिरिक्त आमदनी प्राप्त कर सकते हैं। गन्ने की फसल की बढ़वार शुरू के 2-3 माह तक धीमी गति से होता है। गन्ने के दो कतारों के बीच का स्थान काफी समय तक खाली रह जाता है। इसे ध्यान में रखते हुए यदि कम अवधि की फसलों को अन्तरवर्ती खेती के रूप में उगाया जाए तो निश्चित यप से गन्ने की फसल के साथ-साथ प्रति इकाई अतिरिक्त आमदनी प्राप्त हो सकती है। इसके लिए निम्न फसलें अंतरवर्ती खेती में रूप में उगाई जा सकती है। शरदकालीन खेती में प्याज, मटर, धनिया, चना व गेहूं। बसंत कालीन खेती में मूंग, उड़द, धनिया, मेथी।
जैसे ही हेंड रिप्रेफ्क्टोमीटर (दस्ती आवपन मापी) का बिंदु 18 तक पहुंचे, गन्ने की कटाई शुरू कर देनी चाहिए। यंत्र के अभाव में गन्ने की मिठास से गन्ने के पकने का पता लगता है।
कोशा 88230, कोशा 92254, कोशा ०95255, कोशा 96260, कोशा 96268
कोशा 64, कोशा 88230, कोशा 92254, कोशा 95255, कोशा 96268, कोशा 03234
कोशा 64, कोशा 90265, कोशा 87216, कोशा 96258
कोशा 92255, को. पंत. 90223
को.पंत 84121, कोशा 767, कोशा 90269, कोशा 94270, कोशा 93278, कोशा 92423, कोशा 8432
को. पंत. 84121, कोशा 767, कोशा 8432, कोशा 96269, कोशा 99259, को. पंत. 90233, कोशा 97284, कोशा 07250, कोशा 01434
कोशा 767, कोशा 93218, कोशा 96222, कोशा 92223
कोशा 767, यू. पी. 9529, यू.पी. 9530, कोशा 96269
विश्व में सबसे ज्यादा गन्ने का उत्पादन ब्राज़ील में होता है और भारत का गन्ने की उत्पादकता में संपूर्ण विश्व में दूसरा स्थान है। भारत के लगभग सभी राज्यों में गन्ने की खेती की जाती है। गन्ना उत्पादक प्रमुख राज्यों में उत्तर-प्रदेश, महाराष्ट, तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्रप्रदरेश, पंजाब , हरियाणा व बिहार आदि शामिल है। सबसे ज्यादा गन्ने का उत्पादन उत्तरप्रदेश में होता है जो कि कुल उत्पादन करीब 50 प्रतिशत है। संपूर्ण भारत में गन्ने की औसत उत्पादकता लगभग 720 क्विटल/हेक्टेयर है।
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