प्रकाशित - 20 Apr 2024
तरबूज का नाम सुनते ही हमारे दिमाग में एक ही चित्र उभरता है वह यह कि तरबूज बाहर से हरा और अंदर से लाल रंग का होता है। लेकिन अब ऐसे तरबूज की खेती (Watermelon Cultivation) की ओर किसान आकर्षित हो रहे हैं जिसका रंग बाहर से तो हरा ही है लेकिन काटने के बाद अंदर से यह लाल नहीं बल्कि पीले रंग का होता है। बताया जाता है कि यह तरबूज लाल तरबूज से ज्यादा मीठा और स्वादिष्ट होता है। खास बात यह है कि इसका बाजार भाव लाल तरबूज से दुगुना मिलता है। ऐसे में किसान इस तरह के तरबूज की खेती करके अपनी आमदनी बढ़ा रहे हैं। भारत में इसकी खेती महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में की जा रही है। हालांकि सबसे पहले इसकी खेती अफ्रीका में की गई थी। इसके बाद अब भारत में भी इसकी खेती की जाने लगी है।
बता दें कि लाल तरबूज से पहले पीले तरबूजों की खेती ही होती थी, इसे डेजर्ड किंग के नाम से जाना जाता था। इसके बाद लाल तरबूज की प्रजाति तैयार करने के लिए क्रॉस-ब्रीडिंग की गई जिसके बाद पीले तरबूज की खेती कम हो गई। अब लाल तरबूज की खेती ही की जाती है। लेकिन अब किसान दुबारा से पीले तरबूज की खेती की ओर आकर्षित हो रहे हैं।
भारत में दो तरह के ताइवानी तरबूजों की खेती की जा रही है जिसमें पहला तरबूज बाहर से हरा और अंदर से पीला होता है। जबकि दूसरा बाहर से पीला और अंदर से लाल होता है। इस समय जो किसान खेती कर रहे हैं वह पीले ताइवानी तरबूज है जो बाहर से पीला और अंदर से लाल है। यहां हम आपको इसी प्रकार के तरबूज की खेती के बारे में जानकारी दे रहे हैं। इसकी फसल जल्द ही तैयार हो जाती है।
ताईवान के विशाला बीज से पीले तरबूज की खेती की जा सकती है। इसके लिए दिसंबर माह में एक एकड़ में 6 हजार पौधे लगाए जा सकते हैं। इस खेती में करीब 1.10 लाख रुपए की लागत आती है। इसमें प्रति पौधे की लागत करीब 25 रुपए आती है। इसके साथ ही मलीचिंग सीट लगाने में 16,000 रुपए, लोटनल में 80,000 रुपए की लागत आती है। इसकी आर्गेनिक खेती करके सभी खर्च निकालने के बाद भी किसान एक लाख रुपए की कमाई कर सकते हैं।
लाल तरबूज के मुकाबले पीले तरबूज में कई तरह के पोषक तत्व पाए जाते हैं। इसमें विटामिन बी, सी, ए, आयरन, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस, बीटा कैरोटान आदि पोषक तत्व होते हैं। यह तरबूज शरीर को लंबे समय तक हाइड्रेटेड रखता है। इसके सेवन से इम्यूनिटी सिस्टम मजबूत होता है। इसमें कैलोरी की मात्रा कम होती है। ऐसे में वजन घटाने वाले लोग भी इसका सेवन कर सकते हैं।
सामान्य तरबूज की कीमत 30 रुपए किलोग्राम होती है। वहीं अंदर से लाल और बाहर से पीला दिखने वाले तरबूज की कीमत 50 रुपए प्रति किलोग्राम मिलती है। इसी तरह अंदर से पीला और बाहर से हरा दिखने वाले तरबूज की कीमत भी 50 रुपए किलोग्राम होती है।
पीले तरबूज (Yellow Watermelon Cultivation) का बीज आपको उद्यान विभाग की नर्सरी से मिल सकता है। इसके अलावा एमाज़ॉन.कॉम जैसी ऑनलाइन साइटें भी पीले तरबूज के बीज बेचती है। आप वहां से इसका बीज प्राप्त कर सकते हैं।
पीले तरबूज की खेती भी लाल तरबूज की तरह ही की जाती है। इसमें अधिक खाद या रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता नहीं होती है। इसकी खेती पूर्ण रूप से आर्गेनिक तरीके से की जाती है। तरबूज की खेती के लिए उपजाऊ व अच्छे निकास वाली भूमि की आवश्यकता होती है। लाल रेतीली और दरमियानी भूमि में इसकी पैदावार बढ़िया होती है। मिट्टी का पीएच मान 6-7 होना चाहिए। खेत की गहरी जुताई के बाद खेत को समतल कर लें। तरबूज की बिजाई सीधी भी की जा सकती है और पनीरी लगाकर भी की जा सकती है। उत्तर भारत में इसकी बिजाई का समय जनवरी से मार्च और नवंबर-दिसंबर होता है। इसकी बिजाई कई तरीके से की जा सकती है, जैसे क्यारियों पर लगाना, गड्ढा खोद के लगाना, मेड में मौसम और ऋतु के अनुसार लगाना आदि।
यदि आप गड्ढा खोदकर इसकी बिजाई कर रहे हैं तो आपको 60X60X60 सेमी के आकार का गड्ढा खोदना होगा। इसमें दो कतारों का फासला 2 से 3.5 मीटर और पौधे से पौधे की दूरी 0.6 से 1.2 मीटर रखनी चाहिए। वहीं पौधे के बीज की गहराई 2-3 सेमी होनी चाहिए। अब गड्ढों को अच्छी तरह रूडी और मिट्टी से भर दें और जमाव के बाद एक बूटा एक गड्ढे में रखें।
यदि आप तरबूज के बीजों की बिजाई क्यारियों में कर रहे है तो बीज को क्यारी के एक ओर लगाएं। एक समय पर 3-4 बीज बोएं और जमाव के बाद एक सेहतमंद बूटा रखें। पौधों का एक-दूसरे के बीच फासला 60-90 सेमी होना चाहिए।
यदि आप मेड़ पर इसे उगाना चाहते हैं तो आपको इसमें 30X30X30 सेमी के गड्ढे एक से 1.5 मीटर के फासले पर लगाने चाहिए। दो बीज एक मेड पर लगाने चाहिए।
एक एकड़ में बिजाई के लिए इसके 1.5 से 2 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बीज की बुवाई करने से पहले इसे 2 ग्राम कार्बेनडाजिम प्रति किलोग्राम से उपचारित कर लेना चाहिए। इसके बाद बीज को 4 ग्राम ट्राइकोडर्मा विराइड से उपचार करना चाहिए। बीज को छाया में सुखाने के बाद इसकी बुवाई करनी चाहिए।
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