प्रकाशित - 18 Jun 2022
अगर आप किसान हैं और खेती में कुछ नया करना चाहते हैं तो इस बार आने वाले बारिश के मौसम में शलजम की फसल उगाएं। यह फसल आपको डबल फायदा देगी। वैश्विक महामारी कोविड के बाद शलजम की दुनिया भर में जबर्दस्त डिमांड होने लगी है। इसमें खनिज और विटामिन की भरपूर मात्रा होने के कारण इम्युनिटी पावर बढ़ाने की क्षमता है। वहीं इसका सेवन हृदय रोग, रक्तचाप एवं सूजन आदि बीमारियों में रामबाण का काम करता है। एकल जड़ वाली यह फसल सब्जी श्रेणी में आती है। इसे सलाद में भी खूब उपयोग करते हैं। यह सर्दी के मौसम की फसल है लेकिन इसकी रोपाई आने वाले जुलाई माह के अंत या अगस्त में कर सकते हैं। आइए, ट्रैक्टर जंक्शन की इस पोस्ट में किसान भाइयों को बताते हैं कैसे की जाए शलजम की उन्नत खेती जिससे फसल हो भरपूर और आमदनी हो ज्यादा से ज्यादा।
आपको शलजम की खेती करनी है तो इसके लिए सर्वप्रथम जमीन का चयन करना होगा। इसका मतलब यह है कि जिस खेत में बलुई या दोमट अथवा रेतीली मिट्टी हो वहां शलजम की खेती करना फायदेमंद रहेगा। शलजम की जड़ें भूमि के अंदर होती हैं, इसलिए इसे नर्म जमीन की जरूरत होती है। यह ठंडी जलवायु वाली फसल है। इसके लिए 20 से 25 सेंटीग्रेड तापमान चाहिए।
किसान भाइयों को बता दें कि शलजम की खेती के लिए जिस जमीन का आपने चयन किया है उसे अब पूरी तरह से तैयार करना होगा। शलजम की खेती में भुरभुरी मिट्टी की जरूरत होती है, इसके लिए सबसे पहले खेत की गहरी जुताई कर दें। इससे खेत में मौजूद पुरानी फसल के अवशेष पूरी तरह से नष्ट हो जाएंगे। जुते हुए खेत की मिट्टी में धूप लगने के लिए खेत को कुछ समय के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दें। इसके बाद खेत में 250 से 300 क्विंटल गोबर की पुरानी खाद या वर्मी कंपोस्ट की मात्रा दें। इसके बाद अच्छी तरह से जुताइ कर मिट्टी में पानी लगा कर वापस जुताई करें जिससे मिट्टी भुरभुरी हो जाए। इसके बाद पाटा लगा कर खेत को समतल कर दें। रासायनिक उर्वरक में 50 किलोग्राम फास्फोरस,100 किलोग्राम नाइट्रोजन एवं 50 किलोग्राम पोटाश की मात्रा को खेत मे आखिरी जुताई के समय दें।
यहां आपको बता दें कि शलजम की बुआई पंक्तिबद्ध तरीके से की जानी चाहिए। बीज उथले वाले हल की सहायता से 20 से 25 सेमी की दूरी पर बनाए गए कूढों में बोया जाए। पौधे से पौधे की दूरी 8 से 10 सेमी की होनी चाहिए। जब पौधे बढ़ जाएं और तीन पत्तियों के हो जाएं तो फालतू के पौधों को निकाल कर उनकी आपस की दूरी 10 सेमी की कर देनी चाहिए। कहीं-कहीं पर शलजम को मेड़ों पर भी बोया जाता है।
शलजम की खेती करने के लिए आपको खेत तैयार होने के बाद इसके बीज की जरूरत होती है। इसके लिए आपको उन्नत किस्मों का ही चयन करना चाहिए। यहां आपको शलजम की कुछ उन्नत किस्मों की जानकारी दी जा रही है जो इस प्रकार है-:
शलजम की यह किस्म शरद ऋतु की है। इसके तैयार होने में 60 से 70 दिन का समय लगता है। इसकी खासियत यह है कि इनमें निकलने वाली जड़ों का आकार सामान्य और गोल होता है।
इस किस्म को वर्षा काल में लगाया जाता है। इसे तैयार होने में 50 से 55 दिन का समय लगता है। इसकी उपज 200 क्विंटल प्रति हैक्टेयर होती है।
शलजम की यह किस्म आकार मेंं सामान्य से बड़ी होती है जिसका ऊपरी आवरण बैंगनी और गूदा सफेद होता है। इसे तैयार होने में 60 से 65 दिन का समय लगता है। इसका उत्पादन 150 से 180 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होता है।
यह किस्म मध्यम आकार वाली होती है। इसका रंग हल्का पीला और इसमें चिकनापन अधिक होता है। जड़ें मध्यम आकार की होती हैं।
शलजम की यह किस्म लाल कलर की होती है। इसका गूदा पीले रंग वाला होता है।
यह एक अगेती किस्म है जिसकी बुआई अगस्त से सितंबर माह के मध्य की जाती है। इसकी जड़ें सबसे कम टाइम में पकती हैं। इनके तैयार होने में महज 45 दिन का समय लगता है।
यह किस्म सफेद रंग लिए होती है। इसका आकार गोल होता है। गूदा नरम और मीठा होने के कारण इसे सलाद में खूब उपयोग किया जाता है। इसे तैयार होने में 55 से 60 दिन का समय लगता है।
बता दें कि शलजम की फसल सब्जी वाली फसल है लेकिन इसमें कई औषधीय गुण होने के कारण यह स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद है। हालांकि इससे किसी बीमारी का उपचार नहीं होता, इसका सेवन काफी हद तक लाभकारी होता है। इसके सेवन के लाभ इस प्रकार हैं-:
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