Published - 17 Jan 2022 by Tractor Junction
तिलहन फसलों में तिल का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है। तिल का उत्पादन साल में तीन बार लिया जा सकता है। तिल किसानों के लिए नकदी फसल है जिसकी बाजार मांग हर समय बनी रहती है। सर्दियों में तो इसकी मांग सबसे अधिक रहती है। तिल से कई प्रकार के मिठाई, गजक, लड्डू आदि बनाया जाता है। इसके अलावा तिल से तेल निकाला जाता है जिसकी बाजार मांग सबसे अधिक है। इसे देखते हुए किसानों के लिए तिल की खेती काफी लाभकारी है। यदि कुछ बातों का ध्यान रखा जाए तो किसान तिल का बेहतर उत्पादन प्राप्त कर ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं। आइए आज हम ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से किसानों को तिल की खेती की जानकारी दे रहे हैं। तो आइए जानते हैं तिल की खेती की उन्नत तकनीक के बारे में।
देश में तिल की खेती महाराष्ट्र, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, गुजरात, तमिलनाडू, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश व तेलांगाना में होती है। इनमें सबसे अधिक तिल का उत्पादन उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में किया जाता है।
तिल की खेती के लिए कई उन्नत किस्में हैं जिनसे अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। ये उन्नत किस्में इस प्रकार से हैं-
इस किस्म का विमोचन वर्ष 2008 में किया गया था। यह किस्म 80-85 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म से 600-700 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। इस किस्म में 48-50 प्रतिशत तेल की मात्रा पाई जाती है। तिल की ये किस्म तना एवं जड़ सडऩ रोग के प्रति सहनशील है।
तिल की किस्म जे.टी-11 (पी.के.डी.एस.-11) को भी वर्ष 2008 में विमोचित किया गया था। ये किस्म 82-85 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इससे 650-700 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। इसमें तेल की मात्रा 46-50 प्रतिशत होती है। इसका दाना हल्के भूरे रंग का होता है। तिल की ये किस्म मैक्रोफोमिना रोग के लिए सहनशील है। ये किस्म गीष्म कालीन खेती के लिए उपयुक्त मानी गई है।
तिल की इस किस्म को 2008 में विमोचित किया गया। यह किस्म 82-85 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म से 650-700 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। इस किस्म में तेल की मात्रा 50-53 तक पाई जाती है। तिल की से किस्म मैक्रोफोमिना रोग के लिए प्रति सहनशील सहनशील है। तिल की ये किस्म गीष्म कालीन खेती के लिए उपयुक्त मानी गई है।
तिल की जवाहर 306 किस्म का विमोचन 2004 में किया गया। यह किस्म 86-90 दिन में तैयार हो जाती है। इस किस्म से 700-900 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। इसमें तेल की मात्रा 52 प्रतिशत होती है। यह किस्म पौध गलन, सरकोस्पोरा पत्ती घब्बा, भभूतिया एवं फाइलोड़ी रोग के लिए सहनशील है।
तिल की इस किस्म का विमोचन वर्ष 2000 में किया गया। ये किस्म 86 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म से 600-700 किलोग्राम प्रति हैैक्टेयर उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। इसमें तेल की मात्रा 52 प्रतिशत पाई जाती है। तिल की ये किस्म फाइटोफ्थोरा अंगमारी, आल्टरनेरिया पत्ती धब्बा तथा जीवाणु अंगमारी रोग के प्रति सहनशील है।
तिल की इस किस्म को वर्ष 1998 विमोचित किया गया। ये किस्म 76-78 दिन में तैयार हो जाती है। इस किस्म से 630 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। इसमें 53 प्रतिशत तेल की मात्रा पाई जाती है। तिल की ये किस्म फाइटोफ्थोरा अंगमारी, मेक्रोफोमिना तना एवं जड़ सडऩ रोग के प्रति सहनशील है।
तिल की खेती साल में तीन बार की जा सकती है। खरीफ में इसकी बुवाई जुलाई माह में होती है। अद्र्ध रबी में इसकी बुवाई अगस्त माह के अंतिम सप्ताह से लेकर सितंबर माह के प्रथम सप्ताह तक कर देनी चाहिए। ग्रीष्मकालीन फसल के लिए इसकी बुवाई जनवरी के दूसरे सप्ताह से फरवरी के दूसरे सप्ताह तक की जा सकती है।
तिल के लिए शीतोषण जलवायु अच्छी रहती है। ज्यादा बरसात या सूखा पडऩे पर इसकी फसल अच्छी नहीं होती है। वहीं बात करें भूमि की तो इसके लिए हल्की भूमि तथा दोमट भूमि अच्छी होती है। यह फसल पी एच 5.5 से 8.2 तक की भूमि में उगाई जा सकती है। इसके अलावा इसे बलुई दोमट से काली मिट्टी में भी उगाई जाती है।
तिल की खेती के लिए खेत की तैयारी करते समय इस बात का ध्यान रखें कि खेत में खरपतवार बिलकुल भी नहीं हो। खेत से खरपतवार पूरी तरह से निकालने के बाद खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें। इसके बाद दो-तीन जुताई कल्टीवेटर या देशी हल से करके खेत में पाटा लगाकर मिट्टी को भुरभुरा बना लें। वहीं 80 से 100 कुंतल सड़ी गोबर की खाद को आखिरी जुताई में मिला दें।
छिडक़वा विधि से तिल की बुवाई के लिए 1.6-3.80 प्रति एकड़ बीज की मात्रा रखनी चाहिए। वहीं कतारों में बुवाई के लिए सीड ड्रील का प्रयोग करना चाहिए जिसके लिए बीज दर घटाकर 1-1.20 किग्रा प्रति एकड़ बीज दर पर्याप्त है। मिश्रित पद्धति में तिल की बीजदर एक किग्रा प्रति एकड़ से अधिक नहीं होनी चाहिए। रोगों से बचाव के लिए 2.5 ग्राम थीरम या कैप्टान प्रति किलोग्राम बीज की दर से शोधन करना चाहिए।
आमतौर पर तिल की बुवाई छिटकवां विधि से की जाती है। छिटकवां विधि से तिल की बुवाई करने पर निराई-गुड़ाई में समस्या आती है। इसलिए सबसे अच्छा ये हैं कि इसकी बुवाई कतारों में की जाए। इससे एक ओर निराई-गुड़ार्ई का काम आसान हो जाता है तो दूसरी ओर उपज भी ज्यादा प्राप्त होती है। बीजों का समान रुप से वितरण हो इसके लिए बीज को रेत (बालू), सूखी मिट्टी या अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद के साथ 1: 20 के अनुपात में मिलाकर बोना चाहिए। कतार से कतार और पौधे से पौधे के बीच की दूरी 30x10 सेमी रखते हुए लगभग 3 सेमी की गहराई पर बीजों की बुवाई करनी चाहिए।
खेत की तैयारी के समय 80 से 100 कुंतल सड़ी हुई गोबर की खाद अंतिम जुताई के समय मिला देना चाहिए। इसके साथ ही साथ 30 किलोग्राम नत्रजन, 15 किलोग्राम फास्फोरस तथा 25 किलोग्राम गंधक प्रति हेक्टेयर प्रयोग करना चाहिए। नत्रजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस,पोटाश एवम गंधक की पूरी मात्रा बुवाई के समय आधार खाद के रूप में तथा नत्रजन की आधी मात्रा प्रथम निराई-गुडाई के समय खड़ी फसल में देना चाहिए।
वर्षा ऋतु में तिल की फसल को सिंचाई की कम आवश्यकता पड़ती है। यदि बारिश नहीं हो तो आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी चाहिए। जब तिल की फसल 50 से 60 प्रतिशत तैयार हो जाए तब एक सिंचाई अवश्य करनी चाहिए। यदि बारिश न तो आवश्यतानुसार सिंचाई करनी चाहिए।
तिल की फसल में खरपतवारों का प्रकोप बना रहता है। इसके लिए फसल की प्रथम निराई-गुड़ाई का काम बुवाई के 15 से 20 दिन के बाद करना चाहिए। दूसरी बार 30 से 35 दिन के बाद निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। इस समय निराई-गुडाई करते समय थिनिंग या विरलीकरण करके पौधों के आपस की दूरी 10 से 12 सेंटीमीटर कर देनी चाहिए। वहीं खरपतवार नियंत्रण के लिए एलाक्लोर 50 ई.सी. 1.25 लीटर प्रति हेक्टेयर बुवाई के बाद दो-तीन दिन के अंदर प्रयोग करना चाहिए।
तिल की फसल को सबसे अधिक नुकसान फिलोड़ी और फाईटोप्थोरा झुलसा रोग से होता है। फिलोड़ी की रोकथाम के लिए बुवाई के समय कूंड में 10जी. 15 किलोग्राम या मिथायल-ओ-डिमेटान 25 ई.सी 1 लीटर की दर से प्रयोग करना चाहिए तथा फाईटोप्थोरा झुलसा की रोकथाम हेतु 3 किलोग्राम कापर आक्सीक्लोराइड या मैन्कोजेब 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से आवश्यकतानुसार दो-तीन बार छिडक़ाव करना चाहिए।
तिल की फसल में पत्ती लपेटक और फली बेधक कीट का प्रकोप अधिक होता है। इन कीटों की रोकथाम के लिए क्यूनालफास 25 ई.सी. 1.25 लीटर या मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिशत चूर्ण 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के दर से छिडक़ाव करना चाहिए।
तिल की पत्तियां जब पीली होकर गिरने लगे तथा पत्तियां हरा रंग लिए हुए पीली हो जाए तब समझना चाहिए की फसल पक कर तैयार हो गई है। इसके बाद कटाई पेड़ सहित नीचे से करनी चाहिए। कटाई के बाद बंडल बनाकर खेत में ही जगह जगह पर छोटे-छोटे ढेर में खड़े कर देना चाहिए। जब अच्छी तरह से पौधे सूख जाएं तब डंडे अथवा छड़ की सहायता से पौधों को पीटकर या हल्का झाडक़र बीज निकाल लेना चाहिए।
अच्छी तरह से फसल प्रबंध होने पर तिल की सिंचित अवस्था में 400-480 किग्रा. प्रति एकड़ और असिंचित अवस्था में उचित वर्षा होने पर 200-250 किग्रा प्रति एकड़ उपज प्राप्त होती हैं।
जनवरी 2022 में बाजार में तिल का न्यूनतम मूल्य- 9025 रुपए है तथा अधिकतम मूल्य 9700 है जबकि इसका मॉडल रेट 9100 रुपए है।
केंद्र सरकार की ओर से वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए तिल का न्यूनतम समर्थन मूल्य 7307 रुपए तय किया गया है। इस बार सरकार ने तिल के एमएसपी में 452 रुपए की बढ़ोतरी की है। बता दें कि पिछले वित्तीय वर्ष 2020-21 में तिल का न्यूनतम समर्थन मूल्य 6855 था।
प्रश्न 1. तिल की खेती के लिए सबसे उचित समय कौनसा है?
उत्तर - तिल की खेती का सबसे उचित समय वर्षा ऋतु में जुलाई का महीना अच्छा रहता है। हांलाकि इसकी खेती साल में तीन बार की जा सकती है।
प्रश्न 2. तिल की खेती के लिए उन्नत किस्में कौनसी है?
उत्तर - तिल की खेती के लिए टी.के.जी. 308, जे.टी-11 (पी.के.डी.एस.-11), जे.टी-12 (पी.के.डी.एस.-12), जवाहर तिल 306, जे.टी.एस. 8, टी.के.जी. 55 आदि हैं।
प्रश्न 3. तिल की फसल में फली बेधक कीट का प्रकोप हो रहा है। उपाय बताएं?
उत्तर - तिल की फसल में पत्ती लपेटक और फली बेधक कीट का प्रकोप अधिक होता है। इन कीटों की रोकथाम के लिए क्यूनालफास 25 ई.सी. 1.25 लीटर या मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिशत चूर्ण 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के दर से छिडक़ाव करना चाहिए।
प्रश्न 4. तिल की फसल को तैयार होने में कितना समय लगता है?
उत्तर - तिल की फसल 85-90 दिनों (छोटी अवधि) की होती है। इसलिए इसके साथ किसान अन्य फसल भी किसान उगा सकता है।
प्रश्न 5. तिल की फसल की कटाई कब करनी चाहिए?
उत्तर- जब तिल की पत्तियां पीली होकर गिरने लगे तथा पत्तियां हरा रंग लिए हुए पीली हो जाए तब समझना चाहिए की फसल पक कर तैयार हो गई है। तब इसकी कटाई करनी चाहिए। तिल को पेड़ सहित काटना चाहिए।
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