Published - 14 Feb 2022 by Tractor Junction
आपने चंदन के बारे में तो सुना ही होगा। चंदन का उपयोग भगवान के पूजन से लेकर शर्बत बनाने सहित इत्र निर्माण तक में किया जाता है। इसकी बाजार में बहुत मांग रहती है। यदि सही तरीके से इसकी खेती की जाए तो इससे किसान लाखों रुपए कमा सकते हैं। बता दें कि भारत में दो प्रकार के चंदन की खेती की जाती है एक सफेद चंदन और दूसरा लाल चंदन। आज हम आपको ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से लाल चंदन की खेती की जानकारी दे रहे हैं। आशा करते हैं कि ये जानकारी आपके लिए लाभकारी साबित होगी। हां तो जैसा कि लाल चंदन का उपयोग भगवान की पूजा से लेकर मूर्तियां बनाने, फर्नीचर निर्माण सहित अनेक प्रकार के कार्यों में किया जाता है। इससे मार्केट में लाल चंदन की डिमांड बहुत रहती है और इस कारण इसको बेचने पर काफी अच्छे भाव मिलते हैं। इस लिहाज से लाल चंदन की खेती करना लाभ का सौंदा बनता जा रहा है।
लाल चंदन को जंगली पेड़ माना जाता है। लाल चंदन को कई नामों से जाना जाता है। इसे अल्मुग, सौंडरवुड, रेड सैंडर्स, रेड सैंडर्सवुड, रेड सॉन्डर्स, रक्त चंदन, लाल चंदन, रागत चंदन, रुखतो चंदन आदि नामों से पहचाना जाता हैं। लाल चंदन के पेड़ का वैज्ञानिक नाम पटरोकार्पस सैंटालिनस है। यह भारत के पूर्वी घाट के दक्षिणी भागों में पाया जा सकता है। इसके पेड़ को कम देखभाल की जरूरत होती है। यदि किसान इसकी खेती करें तो काफी मुनाफा कमा सकता है। माना जाता है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में एक टन लकड़ी की कीमत 20 से 40 लाख रुपए के बीच होती है। लाल चंदन और इसकी लकड़ी से बने उत्पादों की विशेष रूप से चीन और जापान जैसे देशों में भारी मांग है। वहीं इसकी घरेलू मांग भी बहुत है। लाल चंदन का प्रत्येक पेड़ 500 किलोग्राम 10 साल की उपज देता है। बता दें कि लाल चंदन के पेड़ की प्रजाति का विकास बेहद धीमी गति से होता है और सही मोटाई हासिल करने में कुछ दशक लग जाते हैं।
लाल चंदन एक छोटा पेड़ है, जो 5-8 मीटर ऊंचाई तक बढ़ता है और यह गहरे लाल रंग का होता है। लाल चंदन की लकड़ी का उपयोग मुख्य रूप से नक्काशी, फर्नीचर, डंडे और घर के लिए किया जाता है। इसका उपयोग संगीत वाद्ययंत्र बनाने के लिए भी किया जाता है। इसके अलावा लाल चंदन की लकड़ी का उपयोग सैंटालिन, दवा और सौंदर्य प्रसाधन के निष्कर्षण के लिए किया जाता है। मंदिरों और घर पर लोग पूजा में भी लाल चंदन का उपयोग करते हैं।
लाल चंदन की खेती के लिए शुष्क गर्म जलवायु में अच्छी रहती है। इसकी खेती के लिए अच्छे जल निकास वाली दोमद मिट्टी अच्छी रहती है। मिट्टी का पीएच मान 4.5 से 6.5 पीएच होना चाहिए। बता दें कि लाल चंदन की खेती रेतीले और बर्फीले इलाकों में संभव नहीं है।
जैसा कि लाल चंदन की खेती के लिए शुष्क गर्म जलवायु अच्छी मानी जाती है। इस लिहाज से देखें तो भारत में इसकी खेती के लिए सबसे उचित समय मई से जून तक का माना जाता है।
लाल चंदन के साथ होस्ट का पौधा लगाना अच्छा रहता है। बताया जाता है कि होस्ट की जड़े, लाल चंदन की जड़ों जैसी होती है इसलिए इसका पौधा इसके साथ लगाना चाहिए। इससे लाल चंदन के पौधे का विकास तेजी से होता है। होस्ट के पौधे को चंदन के पौधे से 4 से 5 फुट की दूरी पर लगाना चाहिए।
लालचंदन का पौधा किसानों को सरकारी या प्राइवेट नर्सरी से 120 रुपए से 150 रुपए तक में मिल जाएगा। इसके अलावा इसके साथ लगने वाले होस्ट के पौधे की कीमत करीब 50 से 60 रुपए होती है।
लाल चंदन की खेती के लिए भूमि की बार-बार जुताई की जाती है। सबसे पहले खेत की एक से तीन बार ट्रैक्टर से जुताई करें। इसकेे बाद एक बार कल्टीवेटर से खेत की जुताई कर खेत की मिट्टी को भुरभुरा बना लें। इसके बाद खेत को समान करने के लिए पाटा लगाएं। अब खेत में 45 सेमी x 45 सेमी x 45 सेमी आकार के साथ 4 मीटर & 4 मीटर की दूरी पर गड्ढे खोदे जाते हैं। लाल चंदन के पौधे दो 10 x10 फीट की दूरी में लगाया जा सकता है। यदि आप पेड़ लगा रहे तो कभी भी लगा सकते हैं लेकिन यदि पौधा लगाते हैं तो दो से तीन वर्ष का पौधा लगाना ही बेहतर रहेगा। इससे एक फायदा ये होगा कि आप इसे किसी भी मौसम में लगा सकेंगे और इसकी देखभाल भी कम करनी होगी। इसके पौधों को निचले स्थान पर नहीं लगाना चाहिए। इसलिए इसे खेतों की मेड़ पर लगाया जा सकता है। मेड को ऊंचा रखें ताकि लाल चंदन के पौधे के पास पानी का जमाव नहीं हो सकें।
बारिश के शुरुआती मौसम में 2-3 टोकरी गोबर की सड़ी हुई खाद, 2 किलो नीम की खली, 1 किलो सिंगल सुपर फास्फेट मिट्टी में अच्छी तरह मिलाकर गड्ढा भर देना चाहिए। बरसात के मौसम के बाद थाला बनाकर आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी चाहिए।
चंदन के पौधों को हफ्ते में 2 से 3 लीटर पानी की जरूरत होती है। जानकारों के मुताबिक चंदन के पेड़ को पानी के लगने से ही बीमारी होती है। इसलिए चंदन के पौधों को जल भराव की स्थिति से बचाना चाहिए। इसलिए खेत में ऐसी व्यवस्था करें की लाल चंदन केे पौधे के पास जल का भराव न हो। वहीं बात करें इसकी सिंचाई की तो इसके पौधों की रोपाई के तुरंत बाद सिंचाई करनी चाहिए। इसके बाद मौसम की स्थिति के आधार पर 10-15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई की जा सकती है।
जैसा कि सभी फसलों मेें खरपतवार का प्रकोप होता है। वैसे ही लाल चंदन के पौधों के आसपास भी खरपतवार उग आती है जो पौधे के विकास में बाधक होती है। इसलिए समय-समय पर खरपतवारों को खेत से निकाल कर कहीं दूर फेंक देना चाहिए। लाल चंदन के पौधे को पहले दो साल तक खरपतवार से मुक्त रखना जरूरी है।
लाल चंदन के पेड़ में पत्ती खाने वाली इल्ली का प्रकोप होता है। यह इल्ली अप्रैल से मई तक फसल को नुकसान पहुंचा सकती है। इसलिए साप्ताहिक अंतराल पर दो बार 2 प्रतिशत मोनोक्रोटोफॉस का छिडक़ाव करके इस पर नियंत्रण किया जा सकता है।
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