Published - 03 Nov 2020 by Tractor Junction
गोभी वर्गीय फसल में लाल पत्ता गोभी की लोकप्रियता बढ़ती ही जा रही है। इसके लाल रंग के कारण ही ये सामान्य पत्ता गोभी की तुलना में अधिक पसंद की जाती है। बड़े-बडे शहरों में शादी-पार्टी व अन्य अवसरों में इसे सलाद के रूप में सजा हुआ देखा जा सकता है। इसे गोभी को बड़े मॉल में आधुनिक बाजार व उच्च स्तर की सब्जी मंडियों में विक्रय किया जाता है।
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अब तो यह लाल पत्ता गोभी सब्जी मंडियों में भी देखने को मिलने लगी है। यदि इसके गुणों की बात करें तो इसमें खनिज लवण, कैल्सियम, लोहा, प्रोटीन, कैलोरीज आदि प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इसका कच्चा सेवन करना ब्लड प्रेशर के रोगियों के लिए लाभकारी बताया गया है। इसके गुण व रंग के कारण ही इसकी बाजार में मांग बनी हुई है और इसके दाम भी अच्छे मिलते हैं। आइए आज हम आपको लालपत्ता गोभी कि किस्मों और उसके उत्पादन की उन्नत तकनीक की जानकारी देंगे जिससे आप इसका बेहतर उत्पादन कर अच्छी आमदनीकर सकेंगे।
रेड-राक किस्म : यह किस्म आसानी से उगाई जाती है। इसके हैड 250-300 ग्राम वजन के होते हैं जो लाल रंग के होते हैं।
रेड-ड्रम हैड : इस किस्म आकार में बड़ी, अंदर से गहरी लाल और ठोस होती है। जिसका वजन 500 ग्राम से 1.5 किलो तक का होता है।
लाल पत्ता गोभी की खेती के खेत तैयार करने के लिए खेत की मिट्टी पलटने वाले हल या हैरो से दो से तीन बार जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा बना लेना चाहिए और प्रत्येक जुताई के बाद पाटा चलाना चाहिए। ताकि मिट्टी समान रूप से एक जैसी हो जाए ताकि बुवाई करने में आसानी रहे। खेत में 8-10 दिन के अंतराल से जुताई करनी चाहिए ताकि खेत में पिछली बाई हुई फसल के अवशेष, घासफूस व कीट पूर्ण रूप से नष्ट हो जाए। इसके बाद समान आकार की क्यारियां बनानी चाहिए।
लाल पत्ता गोभी की खेती के लिए 400-500 ग्राम प्रति हैक्टेयर तथा 200-250 ग्राम प्रति एकड़ बीज की आवश्यकता होती है। लाल पत्ता गोभी के बीज की बुवाई के लिए ऊंची पौधशाला में क्यारी तैयार करें तथा इस क्यारी में छोटी-छोटी 2-4 सेमी. दूरी की पंक्ति बनाकर 2-3 सेमी. की गहराई रखकर बीज 1-4 मि.मी. की दूरी पर बुवाई करें। इसके बाद इन पंक्तियों में पत्ती की सड़ी खाद या कम्पोस्ट बारीक करके हल्की परत देकर ढंक दें तथा हल्की सिंचाई करें। इस प्रकार से 20-25 दिन में पौध तैयार हो जाती है। बीज को बोने के बाद जब पौधे 10-12 सेमीमीटर ऊंची हो जाए तो इसे क्यारियों लगाएं। क्यारियों में लगाते समय इनके बीच उचित दूरी का ध्यान अवश्य रखना चाहिए ताकि पौधों को विकसित और फैलने के लिए पर्याप्त स्थान मिल सके। इसके लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 सेमी. एवं पौधे से पौधे की दूरी 30 सेमी. रखनी चाहिए।
सड़ी हुई गोबर की खाद 10-12 टन प्रति हैक्टर खेत तैयारी पर जुताई के समय मिला दें। इसके बाद 60 किलो नत्रजन, 40 किलो फास्फोरस तथा 40 किलो पोटाश प्रति हैक्टर के हिसाब से दें। आधी नत्रजन, फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा को खेत तैयारी के समय दें तथा आधी शेष नत्रजन पौध रोपाई के 30 दिन व 60 दिन बाद दो बार में खड़ी फसल में छिडक़र देने से स्वस्थ हैड प्राप्त होते हैं ।
लाल पत्तागोभी की प्रथम हल्की सिंचाई पौध की रोपाई तुरंत बाद करनी चाहिए। इसके बाद 12-15 दिन के अंतराल में सिंचाई करते रहना चाहिए। इसके अलावा आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी चाहिए।
पौध की रोपाई के 15-20 दिन बाद छोटे-छोटे खरपतवार व घास उग आती है। इन्हें निकालना बहुत आवश्यक है। अन्यथा खाद्य-प्रतियोगिता से मुख्य फसल के पौधे कमजोर पड़ जाएंगे। खरपतवार निकालते समय खुरपी का इस्तेमाल करना चाहिए। हाथ से खरपतवार नहीं निकालना चाहिए क्योंकि इससे हाथ में एलर्जी होने की समस्या हो सकती है। यदि संभव को तो प्लास्टिक के दस्ताने पहन कर ही खरपतवार निकालने का काम करना चाहिए।
एक या दो सिंचाई के बाद निराई-गुडाई का कार्य किया जा सकता है। इसके लिए खुरपी की सहायता से मिट्टी को पौधे की जड़ के पास चढ़ा देना चाहिए जिससे पौधा गिरता नहीं है। पौधे पर 10-12 सेमी मिट्टी चढ़ा दें। इस प्रकार लाल पत्ता गोभी के पौधे की दो से तीन बार निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। निराई-गुडाई के दौरान यदि आवश्यकता हो तो हल्की सिंचाई कर सकते हैं।
लाल पत्ता गोभी की फसल को कैटरपिलर व एडिस कीट से काफी नुकसान पहुंचाता है। इसके नियंत्रण के लिए मोनोक्रोटोफास तथा मेटासीड के 1-2 प्रतिशत घोल का छिडक़ाव करना चाहिए। वहीं सडऩ रोग व पत्तियों पर धब्बे होने पर फफूंदीनाशक बेवस्टीन या डाइथेन, एम- 45 को 2 ग्राम प्रति लीटर के घोल का छिडक़ाव करना चाहिए ।
शीषों को पूर्ण विकसित होने पर ही इसकी कटाई करनी चाहिए। इसके लिए आवश्यक हैं कि जब शीर्ष कठोर हो जाए तथा रंग लाल, आकार बड़ा हो जाए। तब पत्तियों सहित इसकी कटाई करें। इस दौरान एक-दो पत्तियों को कम किया जा सकता है। इससे लाल पत्ता गोभी ताजी बनी रहती है। बात करें इसकी पैदावार की तो इसकी 150-200 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक उपज प्राप्त होती है।
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