Published - 27 Nov 2021 by Tractor Junction
दलहनी सब्जियों में मटर का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है। मटर की खेती से जहां एक ओर कम समय में पैदावार प्राप्त की जा सकती है वहीं ये भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने में भी सहायक है। फसल चक्र के अनुसार यदि इसकी खेती की जाए तो इससे भूमि उपजाऊ बनती है। मटर में मौजूद राइजोबियम जीवाणु भूमि को उपजाऊ बनाने में सहायत है। यदि अक्टूर व नबंवर माह के मध्य इसकी अगेती किस्मों की खेती की जाए तो अधिक पैदावार के साथ ही भूरपूर मुनाफा कमाया जा सकता है। आजकल तो बाजार में साल भर मटर को संरक्षित कर बेचा जाता है। वहीं इसको सूखाकर मटर दाल के रूप में भी इसका प्रयोग किया जाता है। तो आइए जानते हैं कि इस उपयोगी मटर की अगेती फसल की खेती कर किस प्रकार अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है।
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यह व्यापक रूप से उगाई जाने वाली यह प्रजाति फ्रांस से आई विदेशी प्रजाति है। इसका दाना निकलने का प्रतिशत अधिक (40 प्रतिशत) है। यह ताजा बाजार में बेचने और निर्जलीकरण दोनों के लिए उपयुक्त है। पहली चुनाई बोआई के बाद 60-65 दिन लेती है। हरी फली के उपज 8-10 टन प्रति हेक्टेयर है।
अगेती मटर - 7 (वी एल - 7)- विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान अल्मोड़ा में विकसित प्रजाति है। इसका छिलका उतारने पर 42 प्रतिशत दाना के साथ 10 टन / हेक्टेयर की औसत उपज प्राप्त होती है।
यह प्रजाति जबलपुर में टी 19 व अर्ली बैजर के संकरण के बाद वरणों द्वारा विकसित की गई है। इस प्रजाति में दाना प्राप्ति प्रतिशत अधिक (45 प्रतिशत) होता है। बुवाई के 50-50 दिनों के बाद पहली तुड़ाई प्रारंभ होती है। औसत उपज 4 टन/हैक्टेयर है।
यह प्रजाति जबलपुर में संकर टी 19 और लिटिल मार्वल से उन्नत पीड़ी वरणों द्वारा विकसित की गई थी। इसकी 70 दिनों के बाद पहली तुड़ाई शुरू की जा सकती है। इसके 40 प्रतिशत निकाले गए दानों से युक्त औसत फल उपज 7 टन/ हैक्टेयर होती है।
यह प्रजाति विदेशी आनुवंशिक सामग्री से वरण द्वारा जबलपुर में विकसित की गई है। यह अधिक अगेती प्रजाति है और इसकी पहली चुनाई बोआई के 45 दिनों के बाद की जा सकती है। इससे औसत फली उपज 3 टन/हैक्टेयर प्राप्त की जा सकती है।
यह पंतनगर में संकर अर्ली बैजर व आई पी, 3 (पंत उपहार) से वंशावली वरण द्वारा विकसित हैं। इसकी बुवाई के 60- 65 दिन बाद पहली चुनाई की जा सकती है। यह भी चूर्णिल फफूंदी के प्रति अधिक ग्रहणशील है। इसकी औसत उपज 7 - 8 टन प्रति हैक्टेयर प्राप्त की जा सकती हैं।
यह संकर मैसी जेम व हरे बोना से वंशावली वरण द्वारा लुधियाना पर विकसित बौनी, अधिक उपज देने वाली प्रजाति है। इसकी पहली चुनाई बोआई के बाद 50-55 दिनों के भीतर शुरू की जा सकती है। यह उच्च तापमान सहिष्णु है। 44 प्रतिश दाना से युक्त औसत फली उपज 6 टन/हेक्टेयर प्राप्त की जा सकती है।
यह जबलपुर में प्रजाति छोटी पहाडिय़ों के लिए विकसित चूर्णिल फफूंदी प्रतिरोधी और म्लानि सहिष्णु प्रजाति है। इसकी पहली चुनाई छोटी पहाडिय़ों में 60 दिन के बाद और मैदानों में 70 दिन के बाद शुरू होती है। छोटी पहाडिय़ों में औसत फली उपज 3-4 टन/हेक्टेयर और मैदानों में 9 टन/हेक्टेयर प्राप्त की जा सकती है।
यह जल्दी तैयार होने वाली प्रजाति है। इसकी फलियां लंबी और 8-10 बीजों से युक्त होती हैं। इसकी हरी फली उपज 9-10 टन प्रति हेक्टेयर प्राप्त की जा सकती है।
यह जल्दी तैयार होने वाली प्रजाति है। यह प्रजाति चूर्णिल फफूंदी रोग प्रतिरोधी होती है। इसकी पहली हरी फली चुनाई 60 से 65 दिनों के भीतर की जा सकती है और बीज परिपक्वता बोआई के 100 से लेकर 110 दिनों में होती है। इसकी हरी फली उपज 90-100 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है। यह प्रजाति कुमाऊं की पहाडिय़ों और उत्तराखंड के मैदानों में खेती के लिए उपयुक्त है।
काशी नंदिनी, काशी मुक्ति, काशी उदय और काशी अगेती किस्में है जो 50 से 60 दिन में तैयार हो जाती हैं।
इसकी खेती के लिए मटियार दोमट और दोमट भूमि सबसे उपयुक्त होती है। जिसका पीएच मान 6-7.5 होना चाहिए। इसकी खेती के लिए अम्लीय भूमि सब्जी वाली मटर की खेती के लिए बिल्कुल उपयुक्त नहीं मानी जाती है। इसकी खेती के लिए अक्टूबर-नवंबर माह का समय उपयुक्त होता है। इस खेती में बीज अंकुरण के लिए औसत 22 डिग्री सेल्सियस की जरूरत होती है, वहीं अच्छे विकास के लिए 10 से 18 डिग्री सेल्सियस तापमान बेहतर होता है।
खरीफ की फसल की कटाई के बाद भूमि की जुताई मिट्टी पलटने वाले हल करके 2-3 बार हैरो चलाकर अथवा जुताई करके पाटा लगाकर भूमि तैयार करनी चाहिए। धान के खेतों में मिट्टी के ढेलों को तोडऩे का प्रयास करना चाहिए। अच्छे अंकुरण के लिए मिट्टी में नमी होना जरुरी है।
अगेती बुवाई के लिए प्रति हेक्टेयर 100 किलोग्राम बीज की आवश्यकता पड़ती है। इसकी बुवाई से पहले रोगों से बचाने के लिए इसे उपचारित कर लेना चाहिए। इसके लिए थीरम 2 ग्राम या मैकोंजेब 3 ग्राम को प्रति किलो बीज शोधन करना चाहिए। इसकी अगेती किस्म की बुवाई करने से 24 घंटे पहले बीज को पानी में भिगोकर रख रखना चाहिए तथा इसके बाद छाया में सुखाकर बुवाई करनी चाहिए। इसकी बुवाई के लिए देशी हल जिसमें पोरा लगा हो या सीड ड्रिल से 30 सेंमी. की दूरी पर बुआई करनी चाहिए। बीज की गहराई 5-7 सेंमी. रखनी चाहिए जो मिट्टी की नमी पर निर्भर करती है।
मटर में सामान्यत: 20 किग्रा, नाइट्रोजन एवं 60 किग्रा. फास्फोरस बुआई के समय देना पर्याप्त होता है। इसके लिए 100-125 किग्रा. डाईअमोनियम फास्फेट (डी, ए,पी) प्रति हेक्टेयर दिया जा सकता है। पोटेशियम की कमी वाले क्षेत्रों में 20 कि.ग्रा. पोटाश (म्यूरेट ऑफ पोटाश के माध्यम से) दिया जा सकता है। जिन क्षेत्रों में गंधक की कमी हो वहां बुआई के समय गंधक भी देना चाहिए। यदि हो सके तो मिट्टी की जांच अवश्य करा ले ताकि पोषक तत्वों की पूर्ति करने में आसानी हो सके।
ट्रैक्टर जंक्शन की इस पोस्ट में हम आपको यहां बता रहे हैं कि मटर के पौधे में कितने दिन में पानी दें। मटर की उन्नत खेती में प्रारंभ में मिट्टी में नमी और शीत ऋतु की वर्षा के आधार पर 1-2 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई फूल आने के समय और दूसरी सिंचाई फलियां बनने के समय करनी चाहिए। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हल्की सिंचाई करें और फसल में पानी ठहरा न रहे।
मटर की फसल के रोग / खरपतवार नियंत्रण
यदि खेत में चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार, जैसे-बथुआ, सेंजी, कृष्णनील, सतपती अधिक हों तो 4-5 लीटर स्टाम्प-30 (पैंडीमिथेलिन) 600-800 लीटर पानी में प्रति हेक्टेयर की दर से घोलकर बुआई के तुरंत बाद छिडक़ाव कर देना चाहिए। इससे काफी हद तक खरपतवारों को नियंत्रित किया जा सकता है।
कटाई और मड़ाई
मटर की फसल सामन्यत: 130-150 दिनों में पकती है। इसकी कटाई दरांती से करनी चाहिए 5-7 दिन धूप में सुखाने के बाद बैलों से मड़ाई करनी चाहिए। साफ दानों को 3-4 दिन धूप में सुखाकर उनको भंडारण पात्रों (बिन) में करना चाहिए। भंडारण के दौरान कीटों से सुरक्षा के लिए एल्युमिनियम फोस्फाइड का उपयोग करना चाहिए।
उत्तम कृषि कार्य प्रबन्धन से लगभग 18-30 किवंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त की सकती है।
बाजार में सामान्यत: मटर के भाव 20-40 रुपए प्रति किलो के हिसाब से होते हैं। यदि औसत भाव 30 रुपए प्रति किलो भी लगाए तो एक हेक्टेयर में 70 हजार रुपए तथा इस प्रकार यदि 5 हेक्टेयर में इसकी बुवाई की जाए तो एक बार में 3 लाख 50 हजार रुपए की कमाई की जा सकती है। बता दें कि मटर, गेहूं और जौ के साथ अंत: फसल के रूप में भी बोई जाती है। हरे चारे के रूप में जई और सरसों के साथ इसे बोया जाता है। इस प्रकार आप अन्य फसलों के साथ इसकी बुवाई कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।
अनुमानित कुल लागत- 20,000 रुपए /हेक्टेयर
मटर की उपज- 30.00 क्विंटल/ हेक्टेयर
प्रचलित बाजार मूल्य- 30.00 रुपए/ किलोग्राम
कुल आमदनी- 90,000 रुपए
शुद्ध आय- 70,000 रुपए
यदि आप 5 हेक्टेयर में मटर खेती करते हैं तो आप इससे एक सीजन में 3,50,000 रुपए कमा सकते हैं।
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