प्रकाशित - 12 Oct 2022 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
भारत में नींबू प्रजाति के फलों में संतरे का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है संतरे को मेंडेरीन भी कहते हैं। संतरा अपनी सुगंध, स्वाद व स्वास्थवर्धक गुणों के लिए प्रसिद्ध है। सतरें में विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, इसके साथ-साथ इसमें विटामिन ’ए’ और ’बी’ भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध रहते हैं। भारत में केला और आम के बाद संतरे को सबसे ज्यादा उगाया जाता है। संतरे के फल का इस्तेमाल खाने के साथ-साथ जूस निकालकर पीने में भी किया जाता है। संतरे का जूस पीने के कई गुणकारी फायदें हैं।
ये हमारे शरीर को कई तरह की बीमारियों से बचाता है। इसका रस शरीर को शीतलता प्रदान कर थकान और तनाव को दूर करता है। संतरे के जूस से जैम और जेली भी बनाई जाती है। देश में संतरे का कुल क्षेत्रफल 4.28 लाख हेक्टेयर है जिससे 51.01 लाख टन उत्पादन प्राप्त होता हैं। संतरे को वानस्पतिक रूप से सिट्रस रिटीकुलेटा के नाम से जाना जाता है। किसान भाईयों आज हम ट्रैक्टर जंक्शन की इस पोस्ट के माध्यम से जानते हैं संतरे की खेती/ संतरे की बागवानी के बारे में।
भारत में नागपुर संतरे की खेती के लिए मशहूर है। महाराष्ट्र में लगभग 80 प्रतिशत संतरे का उत्पादन होता है। लेकिन इसके कई ऐसी उन्नत किस्में विकसित की जा चुकी है जिसकी संतरे की खेती दूसरे राज्यों में भी संभव है। भारत में संतरे की खेती मुख्य रूप से महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में की जाती है।
भारत में संतरे की बागवानी में काम आने वाले ट्रैक्टरों ये चार ट्रैक्टर सबसे बेहतरीन माने जाते हैं। इन ट्रैक्टरों को किसान काफी पसंद करते हैं, ये ट्रैक्टर इस प्रकार से हैं
भारत में संतरे की उगाई जाने वाली किस्मों में नागपुरी संतरा, खासी संतरा, कुर्ग संतरा, पंजाब देसी, दार्जिलिंग संतरा व लाहौर लोकल आदि प्रमुख हैं। नागपुर का संतरा भारत एवं विश्व के सर्वोत्तम संतरा में इसका प्रमुख स्थान हैं।
संतरे की खेती के लिए जलवायु की बात करें, तो संतरे की खेती करने के लिए शुष्क जलवायु की जरूरत पड़ती है। संतरे के पौधों को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं पड़ती है। संतरे के फलों को पकने के लिए गर्मीं की जरुरत होती है। इसके पौधे खेत में लगाने के तीन से चार साल बाद फल देना शुरू कर देते हैं। सर्दियों में पड़ने वाला पाला संतरे की खेती में नुकसानदायक होता है। इसकी खेती के लिए शुरुआत में पौधों लगाने के समय करीब 20 से 25 डिग्री के बीच तापमान रहना चाहिए। उसके बाद पौधों का सही रुप से विकास करने के लिए करीब 30 डिग्री के आसपास के तापमान की जरुरत होती है।
संतरे की खेती लगभग सभी प्रकार की अच्छे जल निकास वाली जीवांश युक्त मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन गहरी दोमट मिट्टी इसके लिए सर्वोत्तम मानी जाती है। खेत में मिट्टी की गहराई 2 मीटर तक की होनी चाहिए। मिट्टी का पीएच मान 4.5 से 7.5 तक का होना चाहिए।
सभी फसलों व फलों की खेती का अपना समय होता है अगर उसे उस समय से पहले या बाद में करते हैं तो फसल बर्बाद होने का ख़तरा बढ़ जाता है व सही उपज भी नहीं प्राप्त होती है। अगर संतरे की खेती/ बागवानी की बात करें तो इसके पौधे रोपित करने का सबसे उपयुक्त समय गर्मी में जून व जुलाई तथा ठंड के समय में फरवरी से लेकर मार्च तक का महीना सबसे सर्वोत्तम होता है।
संतरे के पौधे लगाने से करीब एक महीने पहले खेत में गढ्डे खोद लेना चाहिए है। एक गढ्डे से दूसरे की दूरी 8 मीटर की होना चाहिए तथा उन गढ्डों में सड़े हुए गोबर की खाद डालकर सिंचाई कर देने से मिट्टी नीचे बैठ जाती है, जिससे संतरे में रस की मात्रा बढ़ जाती है।
खेत में एक बार लगाए गए पौधे से हम कई सालों तक फल प्राप्त करते हैं। पौधे को लगाने से पहले हमें खेत को अच्छी तरह तैयार करना बहुत आवश्यक होता है। संतरे की खेती करते समय खेत की मिट्टी को भुरभुरी बनाने के लिए खेत में दो से तीन बार कल्टीवेटर से जुताई कर लेना चाहिए। जुताई करने के बाद खेत में पाटा लगाकर खेत को समतल बना लेना चाहिए ताकि पौधरोपण व सिंचाई में आसानी हो। पौधा लगाने के एक महीने पहले खेतों में गढ्डे खोद कर उसमें खाद-पानी डालने से मिट्टी की उर्वरक क्षमता बढ़ जाती हैं।
संतरे के पौधे को खेत में लगाने से पहले संतरे के पौधे को नर्सरी में तैयार किया जाता है। इसके लिए संतरे के बीजों को राख में मिलकर सूखने के लिए छोड़ दें। फिर बीज को नर्सरी में मिट्टी भरकर तैयार किये गए पॉलीथिन बैंग में लगाया जाता है। ध्यान रहे कि हर बैग में दो से तीन बीज ही उगाने चाहिए। संतरे के बीजों को अंकुरित होने में दो से तीन सप्ताह तक का समय लग जाता हैं।
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संतरे की पौध नर्सरी में तैयार करने के बाद उन्हें खेत में तैयार किये गए गड्डों में लगाया जाता है। सबसे पहले गड्डों में खुरपी की सहायता से एक छोटा गड्डा तैयार कर लें। अब छोटे वाले गड्डे में पौधे की पॉलीथिन को हटाकर उसमें लगा देते हैं और पौधे को चारों तरफ से अच्छे से मिट्टी से भर देते है। पौधा लगाने से पहले प्रत्येक गढ्ढे में 20 किलोग्राम गोबर की खाद और 1 किलोग्राम सुपर फास्फेट मिला ले। संतरे के पौधे में दीमक नियंत्रण के लिए मिथाइल पेराथियान 50-100 ग्राम हर गढ्ढे में मिलाएं।
किसी भी फसल या बागवानी के लिए खाद एवं उर्वरक का सही मात्रा में उपयोग बहुत आवश्यक होता है। संतरे की खेती में 500 ग्राम पोटाश और फॉस्फोरस सभी पेड़ को देना चाहिए। साथ में 800 ग्राम नाइट्रोजन प्रतिवर्ष देना आवश्यक होता है। जिंक तथा सल्फ़ेट का उपयोग अप्रैल और जून के महीने में करना चाहिए जिससे पेड़ों के सूखने का खतरा ना के बराबर रहता है।
संतरे की खेती में सिंचाई मौसम के हिसाब से किया जाता है, पौधरोपण के तुरंत बाद अच्छी तरह से पूरे खेत में सिंचाई करनी चाहिए जिससे पौधा मुरझाये ना। ठंड के दिनों में 25 से 30 दिन के अंतराल में एक बार सिंचाई करना चाहिए वहीं गर्मी के मौसम में 10 से 12 दिन के अंदर सिंचाई अवश्य कर देनी चाहिए।
संतरे के फलों की तुड़ाई जनवरी से मार्च के बीच की जाती है। संतरे के फलों का रंग पीला और आकर्षक दिखाई दें, तब उन्हें डंठल सहित काटकर अलग कर लेना चाहिए। डंठल सहित काटने से फल ज्यादा वक्त तक ताज़ा बना रहता है। संतरों को तोड़ने के बाद साफ गिले कपड़े से पोछ लें और छायादार स्थान पर रख दें। इसके बाद फलों को किसी हवादार बॉक्स में सूखी घास डाल के रख दे। अब बॉक्स को बंद कर संतरे के फल को बाज़ार में बेचने के लिए भेज सकते है।
संतरे की खेती में उत्पादन पौधे की देखरेख पर निर्भर करता है। जितनी अच्छी पौधों की देखरेख होगी, उतना अधिक संतरे का उत्पादन प्राप्त होता है। संतरे के एक पूर्ण विकसित पौधे से करीब 100 से 150 किलोग्राम तक पैदावार मिल सकती है। एक एकड़ खेत में लगभग 100 पौधे लगाकर 10000 से 15000 किलो तक कि उपज प्राप्त किया जा सकता है।
संतरे का बाज़ार में थोक भाव करीब 20 से 40 रूपये प्रति किलो तक का होता है। यानी आप एक एकड़ में संतरे की खेती से 1 लाख 50 हज़ार रुपये से लेकर 4 लाख रुपये तक की कमाई कर सकते हैं। संतरे का भण्डारण 5 से 7 डिग्री सेल्सियस तापमान पर 85 से 90 प्रतिशत आद्रता के साथ 3 से 5 सप्ताह तक आराम से किया जा सकता है।
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