प्रकाशित - 17 Aug 2022 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
ककोड़ा की खेती से किसान अच्छी खासी कमाई कर सकते हैं। इसकी खेती कम लागत में अधिक कमाई देने वाली होती है। यूपी में कई किसान इसकी खेती करके अतिरिक्त आय प्राप्त कर रहे हैं। बता दें कि ककोड़ा की खेती देश के कुछ ही राज्यों में की जाती है। यदि इसकी सही तरीके से खेती की जाए तो इससे अच्छा-खासा मुनाफा कमाया जा सकता है। ककोड़ा की सब्जी स्वादिष्ट होने के साथ ही सेहत के लिहाज से भी काफी फायदेमंद होती है। इसके कारण इसका बाजार भाव भी अच्छा मिलता है। बारिश के मौसम में जंगली इलाकों में ये स्वत: ही उग जाते हैं। वहीं यदि इसकी खेती की जाए तो इससे किसान अच्छा लाभ कमा सकते हैं। आज हम ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से आपको ककोड़ा की खेती की जानकारी दे रहे हैं।
यह एक बहुवर्षीय कद्दूवर्गीय सब्जी है। इसका उपयोग सब्जी बनाकर खाने के उपयोग में किया जाता है। ककोड़ा के बीज को एक बार बोने के बाद इसके मादा पौधे से करीब 8-10 वर्षों तक फल प्राप्त होते रहते हैं। फलों का उपयोग अचार बनाने के लिए भी किया जाता है। इसमें औषधीय गुण भी पाये जाते हैं। ककोड़ा के सेवन से कफ, खांसी, अरूचि, वात, पित्तनाशक और हृदय में होन वाले दर्द से राहत मिलती है। इसकी जड़ों का उपयोग बवासीर में रक्त बहाव रोकने के लिए किया जाता है। मधुमेह रोग में भी इसका उपयोग काफी राहत प्रदान करता है। ये मधुमह रोगी के शरीर में शर्करा की मात्रा पर नियंत्रण करने में मदद करता है।
वर्तमान समय में जब ककोड़ा का फल बाजार में आता है तो उसका मूल्य भाव 90 से 100 रुपए तक प्रति किग्रा तक होता है। किसान इसकी खेती करके अतिरिक्त आय प्राप्त कर सकते हैं। इसका उपयोग सब्जी के रूप में तो किया ही जाता है। इसके अलावा इसका अचार भी बनाया जाता है।
ककोड़ा की खेती के लिए नर्म और गर्म जलवायु में की जा सकती है। इसके लिए औसतन 1500-2500 मिली. बारिश की आवश्यकता होती है। इसके पौधों के लिए 20 से 30 डिग्री तापमान उपयुक्त रहता है। वहीं बात करे इसकी खेती के लिए भूमि की तो इसकी खेती सभी प्रकार की भूमियों में की जा सकती है। लेकिन इसकी खेती के लिए जैविक पदार्थों से युक्त रेतीली भूमि काफी उपयुक्त रहती है। इसकी खेती में इस बात कर विशेष ध्यान रखें जल भराव वाली भूमि में इसकी खेती कभी नहीं करनी चाहिए। इसकी भूमि का पीएच मान 6 से 7 के बीच होना चाहिए।
ककोड़ा की खेती के लिए कुछ उन्नत किस्में भी विकसित की गई हैं। इन किस्मों से किसान अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। ये किस्में इस प्रकार से हैं-
ककोड़ा की खेती करने से पहले खेत की जुताई कर पुराने फसल अवशेषों को नष्ट कर दें। इसके बाद खेत में पानी छोड़ दें। पानी सूख जानेप र दो से तीन तिरछी जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा बना लें। इसे बाद पाटा लगाकर खेत को समतल कर दें। समतल खेत में पौध रोपाई के लिए गड्डे तैयार किए जाते हैं।
ककोड़ा की फसल से अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए खेत में पौधों की संख्या पर्याप्त होना आवश्यक है। इस फसल की बुवाई अच्छी प्रकार तैयार खेत में क्यारी बनाकर अथवा गड्ढ़ों में की जाती है। गड्ढों की आपस में दूरी 2&2 मीटर रखनी चाहिए। तथा प्रत्येक गड्ढे में 2-3 बीज की बुवाई करते हैं। और इस प्रकार 4&4 मीटर के प्लाट में कुल 9 गड्ढे बनते हैं। जिसमें बीच वाले गड्ढे में नर पौधा रखते हैं तथा बाकी 8 गड्ढों में मादा पौधों को रखते हैं। यह भी ध्यान रखना चाहिए कि एक गड्ढे में एक ही पौधा रखा जाता है।
ककोड़ा का अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए खाद व उर्वरक की मात्रा का ध्यान भी रखना आवश्यक है। सामान्यत: खेत की अंतिम जुताई के समय 200 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद मिट्टी में मिला देनी चाहिए। इसके अलावा 65 किग्रा. यूरिया, 375 किग्रा. एसएसपी तथा 67 किग्रा. एमओपी प्रति हेक्टेयर देना चाहिए।
ककोड़ा की फसल में बुवाई के तुरंत बाद खेत में हल्की सिंचाइ्र करनी चाहिए। यदि बरसात हो रही हैं तो सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। खेत में आवयकता से अधिक पानी जमा नहीं होने देना चाहिए। इसके लिए खेत में जल निकास की उचित व्यवस्था करनी चाहिए।
हांलाकि ककोड़ा की फसल में बहुत कम कीट व व्याधियों का प्रकोप होता है। लेकिन इसमें फल मक्खी इसके फलों को अधिक नुकसान पहुंचाती हैं। इसकी रोकथाम के लिए इमिडाक्लोप्रिड या क्विनालफॉस 25 ई.सी. की 2-3 मिली मात्रा प्रति लीटर पानी की दर से छिडक़ाव करना चाहिए।
ककोड़ा से अधिक उपज प्राप्त करने के लिए पौधों को सहारा देना बेहद है। स्टेकिंग करने से पौधों की बढ़वार अच्छी होती है तथा गुणवत्ता युक्त फल प्राप्त होते हैं। इसकी स्टेकिंग करने के लिए बांस या सूखी लकडिय़ों की टहनी आदि से सहारा देना होता है। इसके पौधों को सहारा देने के लिए लोहे के एंगल पर जालीनुमा तार 5-6 फीट ऊंची, 4 फीट गोलाकार संरचना का उपयोग भी किया जाा सकता है। स्टेकिंग करने से अधिक फल प्राप्त किए जा सकते हैं।
यदि सब्जी के लिए ककोड़ा की कटाई करना चाहते हैं तो इसकी पहली कटाई दो से तीन माह बाद की जा सकती है। इस दौरान आपको ताजे स्वस्थ और छोटे आकार के ककोड़ा की फसल मिल जाती है। इसके आलावा फसल की कटाई एक वर्ष बाद भी की जा सकती है, इस दौरान फसल की गुणवत्ता काफी अच्छी पाई जाती है।
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