प्रकाशित - 17 Jun 2022 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
यह एक सदाबहार जड़ी-बूटी वाला पौधा है जो उष्ण और उप-उष्ण क्षेत्रों में उगाया जाता है। अरबी का वानस्पतिक नाम कोलोकेसिया एस्कुलेन्टा है, और यह ऐरेसी कुल का है। दुनियाभर में अरबी को कई नामों से बुलाया जाता है, जो अरुई, घुइयां, कच्चु, अरवी, घूय्या इत्यादि हैं। अरबी को मुख्यतः इसकी जड़ में लगी अरबी नामक फल एवं इसके बड़े-बड़े पत्तों के लिए उगाया जाता है। अरबी के कन्द, और पत्तों का उपयोग सब्जी के लिए होता है। यह बहुत प्राचीन काल से उगाई जाने वाली एक प्रकार की सब्जी है। कच्चे रूप में यह सब्जी जहरीला हो सकता है। ऐसा इसमें मौजूद कैल्शियम ऑक्जेलेट के कारण होता है। हालांकि ये लवण पकने पर नष्ट हो जाता है। या इनको रात भर ठण्डे पानी में रखने पर भी नष्ट हो जाता है। अरबी अत्यन्त प्रसिद्ध और सभी की परिचित वनस्पति है। अरबी प्रकृति ठण्डी और तर होती है। अरबी गर्मी के मौसम की फसल है। यह गर्मी और वर्षा की ऋतु में होती है। सब्जी के अलावा अरबी का उपयोग औषधीय रूप में भी करते हैं। इसका सेवन करने से कई तरह की बीमारियों से छुटकारा पाया जा सकता है, किन्तु अधिक मात्रा में अरबी का उपयोग हानिकारक होता है। इसके पौधों में निकलने वाले पत्तो का आकार काफी चौड़ा होता है, जिन्हें सुखाने के बाद इन पत्तों से सब्जी और पकोडे बनाकर खा सकते है, इसके सूखे कंदों से आटा प्राप्त किया जाता है। किसान भाई अरबी की खेती अकेले करने के बजाय अंतवर्ती तरीके से करें तो ज्यादा फायदा हो सकता है। इसे मक्का के साथ, आलू के साथ भी किया जा सकता हैं। इससे कई तरह के फायदे किसान भाई उठा सकते हैं। यदि आप भी अरबी की खेती करने का मन बना रहे है, तो ट्रैक्टरजंक्शन की आज यह पोस्ट आपके लिए काफी महत्वपूर्ण है। इस पोस्ट में आपको अरबी की खेती कैसे करें तथा अरबी की खेती कब होती है, इसके बारे में जानकारी दी जा रही हैं।
आसानी से मिल जाने के बावजूद अरबी बहुत अधिक लोकप्रिय सब्जी नहीं है। पर अरबी का कंद कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन का अच्छा स्त्रोत हैं। इसके कंदो में स्टार्च की मात्रा आलू तथा शकरकंद से अधिक होती हैं। इसमें फाइबर, प्रोटीन, पोटैशियम, विटामिन ए, विटामिन सी, कैल्शियम और आयरन से भरपूर मात्रा में होती हैं। इसके अलावा इसमें भरपूर मात्रा में एंटी-ऑक्सीडेंट भी पाए जाते हैं। यहां तक इसकी पत्तियों में भी विटामिन ए खनिज लवण जैसे फास्फोरस, कैल्शियम व आयरन और बीटा कैरोटिन भरपूर मात्रा में पाया जाता हैं। इसके प्रति 100 ग्राम में 112 किलो कैलोरी ऊर्जा, 26.46 ग्राम कार्बोहाइड्रेट्स, 43 मिली ग्राम कैल्शियम, 591 मिली ग्राम पोटेशियम पाया जाता है।
अरबी का पौधा 1 से 2 मीटर लम्बा होता है। इसके पत्तों का रंग हल्का हरा और लम्बे और दिल के आकार के होते हैं। अरबी (घुइयाँ) का मुख्यतः सब्जी के उपयोग में करते हैं। इसकी नर्म पत्तियों से साग तथा पकोड़े बनाये जाते हैं। इसके कन्दों को साबुत उबालकर छिलकर उतारने के बाद तेल या घी में भूनकर स्वादिष्ट व्यंजन के रुप में प्रयोग किया जाता हैं। इसकी हरी पत्तियों को बेसन और मसाले के साथ रोल के रुप में भाप से पकाकर खाया जाता हैं। पत्तियों के डंठल को टुकड़ों में काट तथा सुखाकर सब्जी के रुप में प्रयोग किया जाता हैं। यह सेहत के लिए लाभदायक होती है, क्योंकि इसमें औषधीय गुण पाये जाते है। जिससे इसका उपयोग औषधि बनाने में भी होता है। इससे कैंसर, ब्लड प्रेशर, दिल की बीमारियां, शुगर, पाचन क्रिया, त्वचा और तेज नजर करने के लिए दवाईयां तैयार की जाती हैं। भारत में अरबी की खेती मुख्यतः पंजाब, मणिपुर, हिमाचल प्रदेश, असम, गुजरात, महाराष्ट्र, केरल, आंध्रप्रदेश, उत्तराखंड, उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल, कर्नाटक और तेलंगाना आदि राज्यों में विस्तारित रूप से की जाती है।
अरबी की खेती (Arabic Farming) खरीफ और रबी दोनों मौसम में की जाती हैं। खरीफ की फसल की बुवाई जुलाई माह में की जाती हैं। जो दिसंबर और जनवरी महीने तक तैयार हो जाती है। वहीं रबी सीजन की फसल अक्टूबर महीने में लगाई जाती हैं, जो अप्रैल और मई माह में तैयार हो जाती हैं।
अरबी की खेती किसी भी तरह की जीवांश युक्त उपजाऊ मिट्टी में की जा सकती हैं। किन्तु अरबी के लिए पर्याप्त जीवांश एवं उचित जल निकास युक्त रेतीली दोमट भूमि उपयुक्त रहती है। पर्याप्त जानकारी के अनुसार इसकी खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी वाली भूमि को सबसे उपयुक्त पाया गया है। इसकी खेती में भूमि का पी.एच मान 5.5 से 7 के मध्य होना चाहिए। उष्ण और समशीतोष्ण जलवायु को अरबी की खेती के लिए उपयुक्त माना जाता हैं।
यह गर्म मौसम की फसल है, जिसे गर्मी और बरसात दोनों मौसम में उगा सकते हैं। इसके पौधे बारिश और गर्मियों के मौसम में अच्छे से विकास करते है, किन्तु अधिक गर्म और सर्द जलवायु इसके पौधों के लिए हानिकारक होता हैं। सर्दियों के मौसम में गिरने वाला पाला पौधों की वृद्धि रोक देता हैं। अरबी के कंद अधिकतम 35 डिग्री तथा न्यूनतम 20 डिग्री तापमान में ही अच्छे से वृद्धि करते हैं। इससे अधिक तापमान पौधों के लिए हानिकारक होता हैं।
अधिक पैदावार के लिए इसकी खेती के लिए गहरी उपजाऊ व अच्छे जलनिकास वाली दोमट भूमि उपयुक्त हैं। यह गर्म मौसम की फसल है, इसे गर्मी और बरसात दोनों मौसम में उगा सकते हैं। इसकी खेती करने से पहले इसके लिए खेत को अच्छे से तैयार करना होता है। खेत तैयार करने के लिए पहले एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से 2 से 3 बार गहरी जुताई करनी चाहिए। खेती के लिए भूमि तैयार करते समय 200 से 250 क्विंटल गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर की दर से अरबी की बुवाई के 15 से 20 दिन पहले खेत में मिला देनी चाहिए। अरबी की बुवाई समतल या मेड़ पर की जाती है। इसके लिए तैयार खेत में पहले मेड़ को तैयार करना होता है। पहले से तैयार खेत में एक से ड़ेढ फीट की ऊंचाई रखते हुए मेड़ को तैयार करें। क्यारियों का पहले से तैयार खेत में तैयार करना होता है।
अरबी की बुवाई साल में दो बार की जाती है। इसकी बुवाई बारिश और गर्मियों के दोनों मौसम में कि जाती है। गर्मी के मौसम में इसकी बुवाई फरवरी से मार्च एवं बारिश के मौसम में जून से जुलाई के महीने में की जाती है। इसकी बुवाई दो प्रकार से की जाती है।
खेत में मेड़ बनाकर : इसके लिए पहले से तैयार खेत में 45 सें.मी की दूरी पर मेड़ बनाकर दोनों किनारों पर 30 सें.मी की दूरी पर इसके कंदों की बुवाई करें। बुवाई के बाद कंद को मिट्टी से अच्छी तरह से ढंक देना चाहिए।
क्यारियों में बुवाई : क्यारियों में बुवाई के लिए तैयार समतल खेत में पंक्ति से पंक्ति की आपसी दूर 45 सें.मी रखते हुए क्यारियों को तैयार करें। तथा पौधें की दूरी 30 सें.मी और कंदों की 05 सें.मी की गहराई पर बुवाई करें।
अरबी की किस्मों में पंचमुखी, सफेद गौरिया, सहस्रमुखी, सी-9, सलेक्शन प्रमुख हैं। इसके अलावा इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के द्वारा विकसित इंदिरा अरबी - 1 किस्म छत्तीसगढ़ के लिए अनुमोदित है, इसके अतिरिक्त नरेंद्र अरबी-1 अच्छे उत्पादन वाली किस्मे है।
अरबी की खेत की बुवाई इसके कंद के द्वारा की जाती हैं। इसके कंद को खेत में उचित गहराई में बोना चाहिए, ताकि इसके कंदों का समुचित विकास हो सकें। अरबी बुवाई के लिए अंकुरित कंद 7 से 9 किग्रा. प्रति हेक्टेयर में जरूरत पड़ती है एवं कंद बड़े हो तो 10 से 15 किग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से जरूरत पड़ती है। बोने से पहले कंदों को मैंकोजेब 75 प्रतिशत डब्ल्यू. पी. 1 ग्राम/लीटर पानी के घोल में 10 मिनट डुबोकर उपचारित कर बुवाई करना चाहिए। समतल क्यारियों में कतारों की आपसी दूरी 45 सेमी. और पौधों की दूरी 30 सेमी. और कंदों की 05 सेमी. की गहराई पर बुवाई करनी चाहिए। या 45 सेमी. की दूरी पर मेड़ बनाकर दोनों किनारों पर 30 सेमी. की दूरी पर कंदों की बुवाई करें। बुवाई के बाद कंद को मिट्टी से अच्छी तरह ढक देना चाहिए।
खाद और उर्वरक : उचित पैदावार के लिए अरबी के खेत को मृदा परीक्षण के अनुसार खाद और उर्वरक का प्रयोग करें। अरबी के लिए खेत तैयार करते समय 200 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से सडी गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद और आधार उर्वरक को अंतिम जुताई करते समय मिला देना चाहिए। रासायनिक उर्वरक नत्रजन 80 से 100 किलोग्राम, फास्फोरस 50 किलोग्राम और पोटाश 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें। नत्रजन तथा पोटाश की पहली मात्रा आधार के रूप में बुवाई के पहले दें। एवं रोपण के एक माह पश्चात नत्रजन की दूसरी मात्रा का प्रयोग करें।
सिंचाई : अरबी की गर्मी के मौसम वाली फसल को अधिक सिंचाई की जरूरत होती हैं। गर्मी के मौसम के दौरान इसके खेत में नमी को बाना रखने के लिए आरम्भ में 7 से 8 दिन के अंतराल में सिंचाई की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त यदि कंदो की बुवाई बारिश के मौसम में की गई है, तो इसे अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती हैं। यदि बारिश समय पर नहीं होती हैं, तो 15 से 20 दिन के अंतराल में सिंचाई कर लेनी चाहिए। और बारिश होने पर जरूरत के हिसाब से ही सिंचाई करे।
निराई-गुड़ाई : खरपतवार नियंत्रण के लिए अरबी के खेत की समय समय पर प्राकृतिक विधि से निराई-गुड़ाई करें। एंव खेत में ज्यादा खरपतवार हैं, तो रासायनिक विधि का प्रयोग करें। अरबी की पहली निराई-गुड़ाई कार्य खेत की बुवाई के 30 से 35 दिनों के पश्चात करें। व दूसरी निराई-गुड़ाई 60 से 65 दिन पश्चात करें। निराई-गुड़ाई के दौरान इसके पौधों की जड़ों पर मिट्टी चढ़ाएं। यदि इसके पौधें से तने अधिक मात्रा में निकल रहे हो, तो एक या दो तनों को छोड़कर शेष तनों की कटाई करें।
खुदाई एवं पैदावार : अरबी की खुदाई उसकें किस्मों के अनुसार उचित समय पर निर्भर करती हैं। अरबी की फसल 130 से 140 दिन में पककर तैयार हो जाती है। कंदों को संपूर्ण पकने के बाद ही बाजार में भेजने और संग्रहित करने के लिए खोदना चाहिए। अरबी के किस्मों एवं खेती के तकनीक के आधार पर इसकी उपज 150 से 180 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है। अरबी का भांव कभी 20 से 22 रूपए किलो तक होता हैं, तो कभी 8 से 10 रूपए प्रति किलो ही इसके भाव मिल पाते हैं। ऐसे में यदि फसल का अच्छा भाव मिल जाता हैं तो प्रति एकड़ 1.5 से 2 लाख रूपए की कमाई हो जाती हैं।
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