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जहरीली खेती के बीच उम्मीद की किरण जैविक खेती

Published - 16 Dec 2019

ट्रैक्टर जंक्शन पर देशभर के किसान भाइयों का स्वागत है। आज हम कीटनाशक के प्रभाव से देशभर में पड़ रहे दुष्प्रभाव के बारे में सार्थक चर्चा करते हैं। देशभर में सब्जियों एवं खाद्यान्नों में बढ़ती कीटनाशक की मात्रा के प्रभाव से हर तबका प्रभावित है। घर-घर में लोग बीमार है। कीटनाशकों का इतना असर है कि पंजाब में गांव-गांव में कैंसर के मरीज बड़ी संख्या में देखे जा सकते हैं। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है। इसी बार कैंसर के भयावह दानव का सामना कर रहे कुछ किसानों परिवारों ने उम्मीद की एक किरण जगाई है। इन किसान परिवारों ने अब जैविक खेती को अपना प्रधान कर्म बनाया है। अब परिवार के साथ गांव व देशभर को जैविक सब्जियां व खाद्यान्न उपलब्ध कराने के लिए संकल्पबद्ध है।

 

आइए जानते हैं किसान क्या कहते है जहरीली खेती के बारे में

पंजाब प्रांत निवासी वीरसिंह पंजाब के संपन्न किसानों में आते हैं। कई एकड़ जमीन, ट्रैक्टर और दर्जनों गाय-भैंसें हैं। अपने पिता के साथ खेती कर चुके वीरसिंह अब बेटे-पोतों के साथ खेती ही करते हैं। उनका कहना है कि कैंसर जैसी बीमारियों से बचाना है तो कीटनाशक का उपयोग कम करना होगा। वीरसिंह ने डीएपी-यूरिया जैसी रासायनिक खादों और कीटनाशकों की मदद से उगाए गए अनाज और सब्जियों से नुकसान को देखते हुए जैविक खेती शुरू कर दी है। हालांकि उनकी आमदनी कम होगी, लेकिन देश व समाज को कुछ अच्छा देने का सुकुन ज्यादा बड़ा है।

हरित क्रांति के दुष्परिणामों का सामना कर रहे पंजाब की आबोहवा तक दूषित हो गई है। कैंसर जैसी बीमारियां हर साल सैकड़ों लोगों की जान ले रही हैं। वीरसिंह मालवा के उस इलाके से हैं, जहां देश में सबसे ज्यादा कीटनाशक का इस्तेमाल किया जाता है। 

पंजाब बठिंडा जिले के हरमिंद्रर प्रीत एक कपड़ा कारोबारी हैं। उन्होंने अपने प्लॉट जमीन पर सब्जियां उगा रखी हैं। उन्होंने बताया कि आजकल हम लोग सारा जहर खा रहे। बच्चे-बड़े सब बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। प्लॉट की जमीन पर बिना कीटनाशक वाली सब्जियां बो रखी हैं। इसमें सिर्फ बीज और पानी का खर्च है। थोड़ी बहुत खाद (गोबर-कंपोस्ट) डाल रखी है, तो सबसे बड़ा फायदा है ये है कि ये मेरी आंखों के सामने उगती हैं, सेहत के लिए फायदेमंद हैं।

हरित क्रांति के बाद पंजाब में सामाजिक और आर्थिक स्तर पर कई बदलाव हुए। साल 2008 में बरनाला और फरीदपुर के कुछ गांवों में कीटनाशक मुक्त खेती की शुरुआत हुई। 2019 में सैकड़ों गांवों में यह मुहिम आगे बढ़ गई है। फिरोजपुर, मुक्तसर, अमृतसर में भी काम जारी है। इसका फायदा ये मिला कि लोगों को सेहतमंद सब्जियां मिलने लगीं और उनके पैसे भी बचने लगे।

अमृतसर की सुमनदीप के पति को एसिडिटी समेत कई समस्याएं हैं वो ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं है लेकिन कहती हैं उन्हें इतना पता है कि उनके पति को यूरिक एसिड समेत कई बीमारियां खाद (यूरिया) और स्प्रे (कीटनाशकों) के चलते हुई है। 

 

कीटनाशक दवा का स्याह पहलू

पंजाब भारत का सबसे उपजाऊ क्षेत्र रहा है। यहां का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 50.36 लाख हेक्टेयर है। इसमें से करीब 42.23 लाख हेक्टेयर क्षेत्र खेती के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसमें 98 फीसदी खेतों तक पानी पहुंचता है। किसानों के लिए बिजली फ्री है। गेहूं धान समेत कई फसलों का बंपर उत्पादन होता है। लेकिन इसका स्याह पहलू ये है कि पंजाब में उर्वरक-कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग ने किसानों को कर्जदार और बीमार भी बनाया है। कीटनाशकों के फल, फूल और सब्जियों पर घातक परिणाम देखे गए हैं। पंजाब के गांव जितने हरे भरे दिखाई देते हैं, खेत में उतना ही जहर भरा हुआ है। अब कैंसर सिर्फ एक बीमारी नहीं है किडनी, त्वचा रोग समेत कई गंभीर किस्म के रोग लोगों को हो रहे।

 

सरकारी जारी कर चुकी है अपील 

सितंबर 2019 में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के राष्ट्रीय सलाहकार सीएम पांडे ने एक वीडियो जारी कर किसानों से अपील की कि वो कीटनाशकों का इस्तेमाल न करें। जरूरत पडऩे पर जैव कीटनाशकों का उपयोग करें। उन्होंने वीडियो में बताया कि पंजाब-हरियाणा में देश के औसत का तीन गुना ज्यादा कीटनाशक डाला जा रहा है। पंजाब-हरियाणा का औसत 0.75 किलोग्राम प्रति हेक्टयर है जबकि बाकी देश में 0.29 किलो प्रति हेक्टयर है।

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