Published - 24 Apr 2020 by Tractor Junction
टै्रक्टर जंक्शन पर किसान भाइयों का एक बार फिर स्वागत है। आज हम बात करते हैं अनाजों के सुरक्षित भंडारण की। देश में रबी की फसल की कटाई का अंतिम चरण चल रहा है। अधिकांश किसानों ने अपनी फसल को काट ली है। लॉकडाउन के चलते जिंसों की बिक्री अटकी हुई है। किसानों को उनके अनुमान के अनुसार फिलहाल भाव नहीं मिल रहे हैं। ऐसे में किसानों को अनाजों का सुरक्षित भंडारण करना चाहिए और भविष्य में बाजार में तेजी आने पर अपनी उपज को बेचना चाहिए। ट्रैक्टर जंक्शन के इस लेख में किसानों को अनाज भंडारण के नायाब तरीके बताए जा रहे हैं जिससे किसानों की फसल लंबे समय तक खराब नहीं होगी।
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फसल कटाई के बाद बाजार में अनाज की उपलब्धता बनाए दिन-प्रतिदिन की आवश्यकता है एवं बीज के लिए अनाज को संग्रहित करना आवश्यक है। आधुनिक किसान ने उन्नत बीज, महंगे उर्वरक तथा फसल सुरक्षा के उपायों के साथ उपज बढ़ाने की नई-नई तकनीकें अपनाकर उत्पादन बढ़ा लिया है। परंतु जब किसान की सालभर की कमाई को भंडारित किया जाता है, तब अनेक तरह के कीट और बीमारियां 10 से 15 प्रतिशत तक की क्षति पहुंचाते हैं। ऐसे में किसानों के लिए सुरक्षित भंडारण की आवश्यकता है।
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अनाज में कीटों का प्रकोप होने पर सुरक्षा के उपाय
अनाज को इन जीवों और कीटों से होता है नुकसान
चूहा : चूहों से किसानों की फसलों को बड़ा नुकसान होता है। चूहों पर प्रभावी नियंत्रण के लिए किसानों को एक सामूहिक अभियान चलाना होगा। जिस क्षेत्र में चूहों का प्रकोप हो वहां सारे बिल बंद करें व दूसरे दिन जो बिल खुला मिले वहां जहर रहित चुग्गा रखें। इसके लिए 960 ग्राम अनाज में 20 ग्राम मीठा तेल व 20 ग्राम गुड या शक्कर मिलाकर बिलों के पास रखे। यह क्रिया दो-तीन दिन तक करते रहें। इसके बाद उसी जगह शाम को 6 से 10 ग्राम विषयुक्त चुग्गा रखें। इसमें 940 ग्राम अनाज, 20 ग्राम खाने का तेल, 20 ग्राम गुड या शक्कर, 20 ग्राम जिंक फॉस्फाइड मिलाकर गोलियां बना लें। मरे चूहों को गड्ढा खोदकर गाड़ दें जो चूहे बच गए वे विषयुक्त चुग्गा नहीं खाएंगे। इनके लिए एक सप्ताह बाद आंतचनरोधी विष रेटामिन, वारफेरिन, ब्रोमोडियोलोन (सुपर वारफेरिन) की टिकिया के छह हिस्से एक समान बना लें। एक बिल के अंदर एक टुकड़ा डालकर बिल बंद कर दें। इसको चूहा खाना शुरू कर देंगे एवं इसके लगातार खाने से चूहों का चार-पांच दिन बाद मरना शुरू हो जाता है।
चावल का घुन : इसकी खोज सर्वप्रथम चावल में होने से इसे चावल का घुन कहा जाता है। प्रौढ़ मादा अनाज में छेद बनाकर अंडे देती है। इनसे निकलने वाली सूंडियां अंदर ही अंदर दाने को खाती है। इसका आक्रमण अप्रैल से अक्टूबर माह के बीच अधिक देखने को मिलता है। प्रौढ़ व सूंडियां दानों को खाकर खोखला कर देती है।
खपरा भृंग : गेहूं पर इसका अधिक प्रकोप होता है। अनाज की ऊपरी सतह में ज्यादा प्रकोप होता है। यह जुलाई से अक्टूबर के मध्य अधिक नुकसान करता है एवं दानों के भ्रूण को खाता है। इसके अधिक प्रकोप से अनाज में अधिक मात्रा में भूसी हो जाती है।
चावल का पतंगा : इनका आक्रमण चावल, ज्वार, सूजी, तिल और अलसी पर होता है। किंतु चावल और ज्वार पर अत्यधिक आक्रमण होता है। इसकी सूंडी ही नुकसान करती है एवं कीट बाधित अनाज जालनुमा हो जाता है।
लाल आटा बीटल : इसमें साबुत दानों को भेदने की क्षमता होती है। इसके व्यस्क व सूंडी मुख्य रूप से पिसे हुए उत्पाद आटा, सूजी, मैदा व बेसन आदि उत्पादों में अधिक हानि पहुंचाते हैं। आटे में इसकी संख्या अत्यधिक होने पर आटा पीला पड़ जाता है एवं जाल बन जाते हैं और गंध आती है।
दाल भृंग : इस कीट का आक्रमण मूंग, उड़द, चना, अरहर, मसूर तथा अन्य दालों पर होता है। कीट अपने अंडे हरी फलियों पर देती हैं। दानों के अंदर भृंग छेदकर घुस जाता है तथा छेद बंद कर देता है एवं वहां से गोदामों में पहुंच जाते हैं। ये सालभर सक्रिय रहते हैं किंतु जुलाई से सितंबर तक ज्यादा आक्रमण करते हैं।
अनाज का पतंगा : ये सूंडियां भंडारित गेहूं, चावल, मक्का, ज्वार आदि के दानों में सुराख करके घुस जाती है तथा उन्हें खोखला कर अपने अवशिष्ट पदार्थ से भर देती है। ये सूंडियां टूटे हुए चावलों पर बाहरी आक्रमण करती है। दानों का जाल बनाती है और अनाज को खाती रहती है।
आटे की पंखी : इसकी सूंडियां व व्यस्क दोनों नुकसान करते हैं। इसमें उडऩे की क्षमता होती है। यह भंडारित चावल, मक्का, ज्वार आदि पर मार्च से नवंबर के बीच आसानी से देखा जा सकता है। यह कीट दानों में सुराख कर देती है।
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