प्रकाशित - 21 Jul 2022
देश में खरीफ की बुवाई अंतिम दौर में चल रही है। कई राज्यों में किसान इसकी बुवाई पूरी कर चुके है तो कहीं इसकी बुवाई का दौर समाप्ति की ओर बढ़ रहा है। ऐसे में किसानों के लिए एक परेशानी वाली खबर सामने आई है। दरअसल इस बार खरीफ की फसल मक्का, ज्वार और बाजारा की फसल में ग्रास हॉपर कीट का प्रकोप देखा जा रहा है। यदि समय पर इसका नियंत्रण नहीं किया जाए तो इससे किसानों को फसल का नुकसान हो सकता है जिससे किसानों को आर्थिक तौर पर हानि हो सकती है। इस बात को ध्यान में रखते हुए राजस्थान सरकार ने किसानों के लिए एडवाइजरी जारी की है। राजस्थान के कई जिलों में खरीफ फसल के शुरुआती दौर में इस कीट का प्रकोप देखा जा रहा है। इसने सरकार और किसानों की चिंता को बढ़ा दिया है। बता दें कि ये कीट फसल की पत्तियों पर हमला करता है और इसे चट कर जाता है जिससे पौधा विकसित होने से पहले ही नष्ट हो जाता है। समय पर इसकी रोकथाम नहीं की जाए तो पूरी की पूरी फसल बर्बाद हो जाती है।
यह कीट हरे से भूरे रंग का कीट होता है। इसके एंटिना की छोटी जोड़ी होती है। इसके वयस्क की लंबाई एक से सात सेंटीमीटर होती है। इसकी मादा पूरे में मौसम में दो सौ की संख्या में अंडा देती है। मौसम अनुकूल रहने पर अंडों की संख्या चार सौ तक पहुंच सकती है। मादा वयस्क दो इंच मिट्टी के अंदर रहकर अंडे देती है। ये कीट जल्दी बढ़ोतरी करते हैं जो किसानों की फसल के लिए हानिकारक है। यह कीट रात को अधिक सक्रिय होता है और फसल की पत्तियों पर हमला करता है। यह पत्तियों के किनारों को खाकर चट कर जाता है। इसके प्रकोप से फसल को भारी नुकसान होता है और कई बार सारी की सारी फसल तक चौपट हो जाती है। ग्रास हॉपर कीट को फुदका रोग के नाम से जाना जाता है।
ग्रास हॉपर, टिड्डे की जैसा दिखाई देने वाला कीट होता है। किसान कई बार इसे ही टिड्डा समझ कर घबरा जाते हैं। लेकिन इन दोनों में अंतर होता है। ग्रास हॉपर आकार में टिड्डे से बड़ा होता है जिसमें एंटीना की एक छोटी जोड़ी होती है। जबकि टिड्डा ग्रास हॉपर से आकार छोटा होता है जिसमें एंटीना की एक बहुत लंबी जोड़ी होती है। वे शरीर के रंग में भी भिन्न होते हैं। आम तौर पर, टिड्डे चमकीले हरे रंग के होते हैं, जबकि ग्रास हॉपर हरे से भूरे रंग के होते हैं। हालांकि, दोनों एक ही जाति के कीट हैं। लेकिन इन दोनों के बीच मुख्य अंतर का कारण इनके शरीर का आकार, एंटीना की लंबाई और रंग है।
ग्रास हॉपर कीट के शिशु पत्तियों को किनारे से खाना शुरू करते हैं जबकि प्रौढ़ कीट फसल को सीधा नुकसान पहुंचाते है इसलिए इसका शिशु अवस्था में ही नियंत्रण करना जरूरी होता है। किसान रासायनिक दवाओं के उपयोग से इस कीट पर नियंत्रण पा सकते हैं। सरकार द्वारा इन कीटनाशकों की खरीद पर सब्सिडी भी दी जाती है।
राजस्थान कृषि विभाग ने राज्य में खरीफ फसल को फड़का कीट से बचाने के लिए किसानों को परामर्श जारी किया है। इसमें कहा गया है कि फसलों में ज्यादा आर्थिक क्षति होने पर या अधिक कीट होने पर रासायनिक कीट का प्रयोग किसान कर सकते हैं। कीटनाशक का प्रयोग सुबह या शाम के समय खड़ी फसल में करें। फड़का कीट की रोकथाम के लिए क्यूनालफास 1.5 प्रतिशत (चूर्ण) 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर, क्यूनालफास 25 प्रतिशत (ई.सी.) 1 लीटर प्रति हेक्टेयर अथवा मेलाथियान 5 प्रतिशत (चूर्ण) 25 किलो प्रति हेक्टेयर छिड़काव करने की सलाह दी जाती है। इसके अलावा किसान खेतों के किनारे कचरा, अलाव या पुराने टायर जलाकर भी फडके कीट का प्रकोप कम किया जा सकता है। कीट नियंत्रण के लिए एक लाइट ट्रेप प्रति हैक्टेयर क्षेत्र में लगानी चाहिए।
प्रदेश में ग्रास हॉपर कीट के प्रकोप को देखते हुए राजस्थान के कृषि आयुक्त कानाराम ने निर्देश दिए कि फडक़ा (ग्रास हॉपर) कीट व्याधि की सर्वेक्षण अथवा रेपिड रोविंग सर्वे रिपोर्ट पूरी कर अविलम्ब संयुक्त निर्देशक कृषि (पौध संरक्षण) को भिजवायें ताकि किसानों को सरकारी अनुदान पर कीटनाशी रसायन उपलब्ध कराने के लिए भौतिक एवं वित्तीय लक्ष्यों का आवंटन किया जा सके। कृषि आयुक्त ने बताया कि अब किसान किसी भी अधिकृत डीलर से कीटनाशक खरीद सकते हैं, साथ ही अपनी इच्छा से डीलर से मोल भाव भी कर सकते हैं। कीट का समय पर नियंत्रण कर किसानों की फसलों को नुकसान से बचाया जा सकता है।
कीटनाशक का छिड़काव करते समय किसानों को कुछ सावधानियां भी रखनी चाहिए। ये सावधानियां इस प्रकार से हैं-
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