प्रकाशित - 18 Nov 2024
जलवायु परिवर्तन का असर इस समय के मौसम में साफ तौर पर दिखाई दे रहा है। जहां नवंबर के महीने में काफी अच्छी सर्दी पड़ने लग जाती है, वहां इस बार अभी भी गर्मी का अहसास बना हुआ है। जलवायु परिवर्तन के कारण सर्दी अभी तक आई ही नहीं है, लोग अभी भी पंखे चलाकर सो रहे हैं। जबकि नवंबर के महीने में अच्छी खासी सर्दी हो जाया करती थी। जिस तरह जलवायु परिवर्तन का असर मौसम पर हो रहा है उसका असर भारतीय खेती पर भी पड़ रहा है। किसान रबी की बुवाई कर रहे हैं, जबकि कुछ किसानों ने रबी फसलों की बुवाई भी शुरू कर दी है और उनकी फसल अंकुरण के करीब है। ऐसे में इस समय हो रहे अधिक तापमान ने किसानों की चिंता को बढ़ा दिया है। किसान को यह चिंता है कि यदि ऐसे ही तापमान बढ़ता रहा और सर्दी नहीं पड़ी तो उसकी फसल का क्या होगा।
वहीं जिन किसानों ने अभी तक रबी फसलों की बुवाई नहीं की है, उन्हें कृषि विभाग ने अभी रुकने की सलाह दी है कि क्योंकि अभी यह मौसम रबी फसलों की बुवाई के लिए अनुकूल नहीं है। ऐसे में सही मौसम का इंतजार करें और तापमान को कम होने दे। उसके बाद ही अनुकूल मौसम में रबी फसलों की बुवाई करें जिससे अंकुरण में होने वाली समस्या नहीं हो और फसल को कोई नुकसान न पहुंचे।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक गुजरात से फसलों की बुवाई के पिछड़ने की खबर आ रही है। राज्य में नवंबर माह में तापमान अधिक रहना इसका कारण बताया जा रहा है। गुजरात के कृषि महानिदेशक ने जानकारी दी है कि इस बार प्रदेश में 3.08 लाख हैक्टेयर में रबी फसलों की बुवाई हुई है जो पिछले साल से 47 प्रतिशत कम है।
गुजरात कृषि विभाग के अधिकारियों ने बताया कि रबी की फसलों जैसे- गेहूं, सरसों, चना, जीरा, धनिया, प्याज और लहसुन को अंकुरण के लिए 25 से 30 डिग्री के बीच तापमान चाहिए। जबकि इस समय यहां प्रतिदिन का तापमान 34 से 36 डिग्री के आसपास चल रहा है, जो रबी की फसलों की बुवाई के लिए सही नहीं है। ऐसे में इन फसलों की तब तक बुवाई नहीं की जानी चाहिए जब तक यह तापमान रबी फसल के अनुकूल नहीं हो जाए। हाल ही में गुजरात के डिप्टी डायरेक्टर भावेश पटेल ने कहा कि अभी यहां दिन का तापमान अंकुरण वाले तापमान से अधिक चल रहा है।
नवंबर में ठंड पड़ने पर गेहूं व सरसों की फसल को फायदा होता है, लेकिन जलवायु परिवर्तन के इस दौर में इस साल नवंबर माह में अभी तक ठंड का कोई अता-पता नहीं है। सर्दी बढ़ने का नाम नहीं ले रही है। दोपहर का तापमान अभी भी नवंबर माह के हिसाब से अधिक है जो फसलों के लिए ठीक नहीं है। ऐसा तापमान गेहूं व सरसों की फसल के लिए नुकसानदेय साबित हो सकता है। इससे अंकुरण प्रभावित हो सकता है।
अन्य राज्यों में जहां रबी फसलों की बुवाई का काम कर लिया गया है, वहां के किसानों को जलवायु परिवर्तन के इस दौर में बढ़ते हुए तापमान से अपनी फसल को सुरक्षित करने के इंतजाम करने चाहिए। यदि तापमान नहीं गिरा तो उनकी फसलें प्रभावित हो सकती है, अंकुरण अच्छा नहीं होने की समस्या हो सकती है जिससे उत्पादन में गिरावट आ सकती है। जिन किसानों ने बुवाई कर ली है, वे फसल की फव्वारा विधि से सिंचाई करके खेत में नमी को बनाए रखें। वहीं किसी किसान को बुवाई करनी है तो वह भी फव्वारा सिंचाई विधि से ही फसलों की सिंचाई करें। इससे एक ओर पानी की बचत होगी तथा दूसरी ओर खेत में लंबे समय तक नमी बनी रहेगी जो इस समय अधिक तापमान से फसल को होने वाले नुकसान से बचाव कर सकती है।
जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के कारण इस बार ठंड देर से शुरू हो रही है। जबकि हर बार नवरात्रि के बाद तापमान में गिरावट आने लगती है और दीवाली या दिवाली के बाद सर्दी पूरी तरह से अपने रंग में आ जाती है। लेकिन इस बार दिवाली के बाद भी सर्दी पूरी तरह से नहीं बढ़ पा रही है जिसका असर रबी फसलों पर पड़ सकता है। इस बार मौसम में कई तरह की विसंगतियां देखने को मिल रही हैं। इस कारण किसानों ने इस बार देरी से बुवाई शुरू की है। इस बार गर्मी में भी अधिक तापमान रहा। मानसून सीजन में भी 30 प्रतिशत अधिक बारिश हुई। अब ठंड के सीजन में भी गर्मी का अहसास हो रहा है। अभी अधिकतम तापमान अधिक चल रहा है जिससे फसलों का अंकुरण और बढ़वार प्रभावित हो सकती है जिसका असर उत्पादन पर देखने को मिल सकता है।
किसानों को अभी रबी फसलों की बुवाई के लिए अनुकूल तापमान का इंतजार करना चाहिए।
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