प्रकाशित - 01 May 2024
देश में निरंतर गिरते भू-जल स्त्रोत के कारण आज पानी की संकट पैदा होता जा रहा है। गर्मियों में तो पेयजल संकट और गहरा जाता है। धान की खेती करने वाले किसानों के सामने सिंचाई की परेशानी आती है। धान की खेती में सबसे अधिक पानी लगता है। एक अनुमान के मुताबिक एक किलोग्राम धान पैदा करने में करीब 2500 से 3000 लीटर पानी की जरूरत होती है। ऐसे में आज आवश्यकता चावल की ऐसी किस्मों की है जो कम समय और कम पानी में तैयार हो जाए जिससे उनकी सिंचाई में पानी की बचत हो और कम पानी में बेहतर पैदावार मिल सके। इसी बात को ध्यान में रखते हुए पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीयू) के विशेषज्ञों ने चावल की कम व मध्यम अवधि में तैयार होने वाली किस्मों की सिफारिश की है। इसमें चावल की पीआर 126 और पीआर 131 के बेहतर परिणाम मिले हैं। यह दोनों ही किस्में कम पानी और कम समय में तैयार होने वाली चावल की किस्में हैं। किसान इन किस्मों की बुवाई करके कम लागत में चावल की बेहतर पैदावार प्राप्त कर सकते हैं।
धान (चावल) की पीआर 126 किस्म को पंजाब कृषि विभाग की ओर से विकसित किया गया है जो कम समय में तैयार हो जाती है। इस किस्म की ऊंचाई 102 सेमी होती है। यह किस्म 123 से 125 दिनों में पक जाती है। इस किस्म को कम पानी की आवश्यकता होती है। इतना ही नहीं यह किस्म सात अलग-अलग बैक्टीरियल ब्लाइट रोगजनकों के लिए प्रतिरोधी किस्म है। इसकी उपज की बात करें तो इस किस्म से प्रति एकड़ 31 क्विंटल की पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
चावल की पीआर 131 किस्म की ऊंचाई 111 सेमी है। यह किस्म रोपाई के करीब 110 दिन में पककर तैयार हो जाती है। यह वैक्टीरियल ब्लाइट रोगजनक के सभी 10 रोगों के लिए प्रतिरोधी किस्म है। इसकी उपज की बात करें तो इस किस्म से प्रति एकड़ करीब 31 क्विंटल की पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
उपरोक्त किस्मों के अलावा भी धान की कम पानी में उगने वाली अन्य किस्में भी है जिनकी खेती करके छोटी या मध्यम अवधि में धान की बेहतर पैदावार प्राप्त की जा सकती है। इन किस्मों में पूसा सुगंध- 5, पूसा बासमती- 1509, पूसा बासमती-1121 व पूसा-1612 आदि शामिल हैं।
धान की पूसा सुगंध -5 को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) पूसा दिल्ली द्वारा विकसित किया गया है। यह चावल की संकर किस्म है। इसके दाने पतले, सुगंधित और करीब 7 से 8 मिमी लंबे होते हैं। इसके दाने की क्वालिटी अच्छी होती है और उपज क्षमता भी बेहतर है। यह किस्म 120 से 125 दिन में तैयार हो जाती है। इस किस्म से औसत उपज करीब 5.5 से 6 टन प्रति हैक्टेयर प्राप्त की जा सकती है। पूसा सुगंध की खेती भारत में दिल्ली, पंजाब, हरियाणा व उत्तर प्रदेश में प्रमुख रूप से की जाती है।
धान (चावल) की पूसा बासमती 1509 किस्म भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर), नई दिल्ली द्वारा विकसित की गई कम अवधि में तैयार होने वाली किस्म है। यह किस्म 120 दिन की अवधि में तैयार हो जाती है। इसकी औसत उपज की बात करें तो इस किस्म से करीब 25 क्विंटल प्रति हैक्टेयर पैदावार प्राप्त की जा सकती है। इस किस्म के दाने लंबे व पतले हाते हैं जिनकी लंबाई करीब 8.19 मिमी होती है। यह चावल की सुगंधित किस्म है। इस किस्म में चार सिंचाई का पानी बचाने में सहायता मिल सकती है। यह किस्म धान की 1121 की तुलना में कम पानी में तैयार हो जाती है जिससे पानी की 33 प्रतिशत बचत होती है। यह किस्म सिंचित अवस्था में धान- गेहूं फसल प्रणाली के लिए उपयुक्त बताई गई है। इसके पौधे अर्ध बौने होते हैं और गिरते नहीं है। इसी के साथ फसल पकने पर इसके दाने झड़ते नहीं है। यह किस्म पूर्ण झुलसा व भूरा धब्बा रोग के प्रति मध्यम प्रतिरोधी किस्म है।
धान की पूसा बासमती-1121 किस्म को सिंचित क्षेत्रों में उगाया जा सकता है। यह किस्म 140 से 145 दिन में पककर तैयार हो जाती है। यह धान की अगेती किस्म है इसका दाना लंबा व पतला और खाने में स्वाद से भरपूर होता है। धान की इस किस्म से 40 से 45 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
धान की पूसा- 1612 किस्म को 2013 में विमोचित किया गया था। यह धान की सुगंध-5 किस्म का विकसित रूप है। यह किस्म 120 दिन में पककर तैयार हो जाती है। यह सिंचित अवस्था में रोपाई के लिए उपयुक्त है। यह किस्म ब्लास्ट बीमारी के प्रति प्रतिरोधी किस्म मानी जाती है। इस किस्म से करीब 55 से 60 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
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