प्रकाशित - 20 Aug 2022 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
इस बार दलहन फसलों की अधिक पैदावार के लिए सरकार किसानों को प्रोत्साहित कर रही है। सरकार की मंशा है कि किसानों को उनकी फसल का समर्थन मूल्य भी अधिक मिले वहीं प्रति एकड़ पैदावार भी बढ़े। कई राज्य सरकारें दलहन फसलों को बढ़ावा देने के लिए विशेष स्कीम लेकर आई हैं। छत्तीसगढ़ सरकार ने तो अरहर और उड़द की दाल की खरीद के लिए ऐलान किया है कि प्रति क्विंटल 6600 रुपये से बढ़ाकर 8000 रुपये समर्थन मूल्य दिया जाएगा। इसके अलावा प्रति एकड़ 9000 रुपये की सब्सिडी प्रदान की जाएगी।
आपको बता दें कि छत्तीसगढ़ के कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे ने कहा है कि छत्तीसगढ़ में दलहन फसलों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए दलहन उगाने वाले किसानों को विशेष प्रोत्साहन दिया जा रहा है। इसके अंतर्गत धान की जगह दलहन उत्पादन करने वाले किसानों को प्रति एकड़ 9000 रूपये का अनुदान दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि दलहन उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार द्वारा फसल विविधीकरण की योजनाएं लागू की जाएंगी। जिससे भूजल के गम्भीर दोहन को रोकने में भी मदद मिलेगी और मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार भी होगा। राज्य सरकार के प्रयासों से पिछले वर्षों में राज्य में दलहन के रकबे एवं उत्पादन बढ़ोतरी हुई है, जिसके परिणामस्वरूप राज्य में आज 11 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में दलहन फसलों की खेती की जा रही है। छत्तीसगढ़ राज्य सरकार को आगामी दो वर्षों में बढक़र 15 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में दलहन फसलों की खेती होने की उम्मीद है।
छत्तीसगढ़ के कृषि मंत्री मंत्री रविन्द्र चौबे ने छत्तीसगढ़ के किसानों से ज्यादा से ज्यादा रकबे में दलहनी फसलें उगाने का आव्हान किया। इसकी बदौलत खरीफ सीजन में किसानों ने दलहन फसलों की अधिक खेती की है। उन्होंने कहा कि किसानों को धान की खेती छोड़ या कम करने के साथ दलहनी फसलों की खेती पर ज्यादा ध्यान देना होगा। क्योंकि धान की फसल के उत्पादन के लिए पानी की भारी मात्रा की आवश्यकता होती है। एक किलो चावल तैयार करने में करीब 3,000 लीटर पानी खर्च होता है। पहले से ही प्रदेश गिरते भूजल स्तर एवं मानसून की असामान्यता से जूझ रहा हैं। जानकारी के लिए बता दें कि पिछले दिनों छत्तीसगढ़ के कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे ने इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के सहयोग से दो दिवसीय रबी दलहन कार्यशाला एवं वार्षिक समूह बैठक का शुभारंभ किया था। इस दौरान चौबे ने छत्तीसगढ़ के कृषि विकास में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के योगदान की विशेष रूप से सराहना की।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के उप महानिदेशक डॉ. टी.आर. शर्मा ने इस अवसर पर कहा कि केन्द्र सरकार द्वारा भारत को दलहन उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने एवं इसका आयात कम करने के लिए विशेष प्रयास किये जा रहे हैं। साथ ही दलहनी फसलों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए इसकी रोगरोधी एवं उन्नतशील किस्में उगने तथा यंत्रीकरण के उपयोग में वृद्धि करने पर जोर दिया।
छत्तीसगढ़ में अब तक धान की पैदावार ज्यादा होती आई है। यह धान का कटोरा कहा जाता है। अब धान की जगह दलहन की खेती भी किसान खूब कर रहे हैं। ऐसे में यहां की पहचान दलहन प्रदेश के रूप में भी होगी। यह कहना है कि कृषि मंत्री रविंद्र चौबे का। उन्होंने किसानों से दलहन की मीडिया को बताया कि छत्तीसगढ़ आज दलहन उत्पादन के क्षेत्र में भी अपनी नई पहचान बना रहा है। जिसके परिणामस्वरूप देश में इस वर्ष 2 करोड़ 80 लाख मीट्रिक टन दलहन उत्पादन होने की संभावना है। गौरतलब है कि वर्ष 2016 में देश में 1 करोड़ 60 लाख मीट्रिक टन दलहन का उत्पादन होता था। उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल की जानकारी के अनुसार छत्तीसगढ़ में आज लगभग 11 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में दलहनी फसलें ली जा रहीं है जिनमें अरहर, चना, मूंग, उड़द, मसूर, कुल्थी, तिवड़ा, राजमा एवं मटर प्रमुख हैं। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में उगाई जाने वाली तिवड़ा की फसल खाद्य सुरक्षा उपलब्ध कराने के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सहायक महानिदेशक डॉ. संजीव गुप्ता ने कहा कि इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा दलहनी फसलों की नवीन उन्नतशील किस्में विकसित किये जाने पर बधाई दी। उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा अब तक विभिन्न दलहनी फसलों की उन्नतशील एवं रोग मुक्त कुल 25 किस्मों का विकास किया जा चुका है। डा. गुप्ता यह भी कहा कि दलहनी फसलों में यंत्रीकरण को बढ़ावा देने हेतु विश्वविद्यालय द्वारा नए कृषि यंत्र विकसित किए जा रहे हैं। वहीं नई दलहन फसलों की विकसित नस्लों में इसमें अरहर की 3, कुल्थी की 6, लोबिया की 1, चना की 5, मटर की 4, मूंग की 2, उड़द की 1, तिवड़ा की 2 एवं मसूर की 1 किस्में प्रमुख हैं।
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