Published - 19 Jun 2021
निरंतर गिरते जल स्तर और पानी किल्लत को ध्यान में रखते हुए भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान (आईआईआरआर) ने हाल ही में चावल की चार ऐसी नई किस्में विकसित की है जो कम पानी में बेहतर उत्पादन देने में समक्ष हैं। आज जहां कई राज्यों में किसान पानी की किल्लत को देखते हुए चावल की खेती से दूरी बना रहे हैं उनके लिए ये किस्में वरदान से कम साबित नहीं होंगी। कम पानी में चावल की खेती करने के उद्देश्य से ये किस्में अच्छी बताई जा रही हैं। इन किस्मों के संबंध में आईसीएआर-आईआईआरआर के निदेशक कहना है कि चावल की ये चार किस्में निश्चित रूप से देश में चावल के उत्पादन को स्थिर करेंगी। जीवाणु रोग और संक्रमण के कारण बेहतरीन चावल का दाना भी प्रभावित हो जाता है, इसे ध्यान में रखते हुए भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान ने चावल की चार किस्में विकसित की गई हैं।
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भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान (आईआईआरआर) ने जो चार नई किस्में विकसित की है उनमें डीआरआर धन 53, डीआरआर धन 54, डीआरआर धन 55 और डीआरआर धन 56 हैं।
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित बासमती चावल की किस्मों मेें पूसा बासमती 1121, पूसा बासमती 1509 किस्में काफी अच्छी हैं। इसके अलावा अन्य बासमती की उन्नत किस्में पूसा बासमती 1718, पूसा बासमती 1637 आदि देश के लगभग 1.5 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में उगाई जाती हैं। वर्ष 2018-19 के दौरान इन किस्मों के उत्पादन से भारत ने 32800 रुपए करोड़ की विदेशी मुद्रा अर्जित की थी।
भारत में पश्चिम बंगाल भारत में चावल का सबसे बड़ा उत्पादक है, इसके बाद उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश और पंजाब, छत्तीसगढ़ व तमिलनाडु राज्य आते हैं जहां चावल की खेती प्रमुखता से की जाती है।
भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान की स्थापना मुख्य रूप से तीन उद्देश्यों को लेकर की गई थी। उपरांव भूमि में चावल की उत्पादकता बढ़ाना, स्थानीय प्रजाति को उपरी जमीन के लिए विकसित करना तथा धान आधारित फसल चक्र को बढ़ावा देना इसके प्रमुख उद्देश्यों में शामिल हैं। केंद्र में अनुसंधान के साथ-साथ किसानों के खेत में नई प्रजाति का प्रत्यक्षण भी कराया जाता है।
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