प्रकाशित - 23 Mar 2024 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
आज किसान खेती के साथ पशुपालन करके अपनी आय बढ़ा रहे हैं। पशुपालन के लिए अधिकतर गाय-भैंस का पालन किया जाता है, लेकिन अक्सर पशुपालकों को शिकायत होती है कि वे गाय, भैंस को क्या खिलाए जिसमें खर्च कम आए और पशु की दूध की मात्रा भी बढ़े। ऐसे में किसानों के लिए एक घास काफी उपयोगी मानी गई है जिसे उगाकर किसान पशुपालक अपने पशु के लिए सस्ता हरा चारे का इंतजाम कर सकते हैं। खास बात यह है कि इस चारे को उगाने में लागत कम आती और पशु इसे स्वाद से खाता भी है। इसके अलावा पशुओं को नियमित रूप से यह हरी घास खिलाने से उनके दूध की मात्रा को बढ़ाया जा सकता है।
वैसे तो पशु चारे के लिए बहुत सी किस्में है, लेकिन इनमें से एक किस्म अफ्रीकन टॉल (African Tall) किस्म सर्वोत्तम चारे की किस्म मानी जाती है। यह मक्का प्रजाति की चारे वाली किस्म है जो सामान्य चारे के मुकाबले दुगनी पैदावार देती है। इससे किसान कम लागत में पूरे सालभर के लिए हरे चारे का इंतजाम कर सकते हैं। अधिकांश किसान इस किस्म को पसंद करते हैं, क्योंकि इस किस्म का तना लंबा, मोटा और मजबूत होता है जिससे यह तेज हवा या आंधी में भी खड़ा रहता है। यह चारा मीठा रसदार होने से पशुओं को काफी पसंद है जिसे वे बड़े चाव से खाते हैं।
यह हरे चारे के रूप में सबसे ज्यादा उगाई जाने वाली किस्म है। इस किस्म में अधिक कल्ले, अच्छा फुटाव और चौड़ी लंबी पत्तियां होती है जिससे चारे की अधिक मात्रा प्राप्त होती है। मक्का के अफ्रीकन टॉल किस्म के चारे की विशेषताएं और लाभ इस प्रकार से हैं
मक्का की अफ्रीकन टॉल चारे की बुवाई के लिए बलुई, रेतीली, दोमट मिट्टी काफी अच्छी मानी जाती है। इस किस्म की बुवाई करने से पहले खेत को मिट्टी पलट हल से गहरी जुताई करनी चाहिए। इसके बाद देसी हल से दो जुताई करके हरो चलाकर मिट्टी को बारीक व समतल बना लेना चाहिए। अब चारे की बुवाई के लिए 25 से 30 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ हिसाब से पर्याप्त होता है। मक्का अफ्रीकन टॉल चारे की बुवाई 15 फरवरी से लेकर सितंबर के महीने तक की जा सकती है। बुवाई से पहले बीजों को थायरम केपटान 3 ग्राम प्रति किलोग्राम के हिसाब लेकर बीजों को उपचारित करना चाहिए। बुवाई के समय कतार से कतार की दूरी 30 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 20 सेमी रखनी चाहिए। एक हैक्टेयर में इस चारे की किस्म के 125 लाख पौधे लगाए जा सकते हैं।
मक्का की अफ्रीकन टॉल चारे की किस्म के अलावा किसान पशुओं को बरसीम, नेपियर घास, पैरा घास, गिनी घास व रिजका घास को भी हरे चारे के रूप में खिला सकते हैं। यह घास भी पशुओं के दूध की मात्रा बढ़ाने में सहायक होती है।
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