Published - 10 Nov 2020
ट्रैक्टर जंक्शन पर किसान भाइयों का एक बार फिर स्वागत है। दीपावली का पर्व दस्तक देने को तैयार है और दिल्ली-एनसीआर के लोग स्मॉग जैसी समस्या से जूझ रहे हैं। दिल्ली-एनसीआर की हवा जहरीली बन चुकी है। हर आदमी सांस लेने के साथ अपने शरीर में बीमारियों को भी बुला रहा है। प्रदूषण के चलते दिल्ली-एनसीआर में कोई राहत नहीं है। कई इलाकों में हवा में प्रदूषण 450 से 500 के बीच पहुंच गया है। प्रदूषण पर काबू करने के प्रयास विफल हो चुके हैं। इसके लिए पंजाब और आसपास के अन्य राज्यों में पराली जलाए जाने को भी जिम्मेदार माना जा रहा है। इन सबके बीच एक पॉजिटिव खबर आई है। पंजाब के एक छोटे गांव की बेटी ने पराली जलाने का विरोध सबसे पहले अपने घर में किया। परिजनों ने बेटी के दर्द को समझा और पराली जलाना बंद कर दिया। पराली को खेत में ही छोड़ दिया जो खाद में बदल गई और खेत की मिट्टी की गुणवत्ता सुधर गई। अगली फसल में कम खाद देना पड़ा। अब इस बेटी की पराली जलाने के खिलाफ मुहिम में पूरा गांव उनके साथ है। मीडिया, सोशल मीडिया के प्लेटफार्म्स पर इस बेटी के हौसले को लोग सलाम कर रहे हैं। किसानों में भी जागरूकता आई है और किसान पराली जलाने के खिलाफ शुरू की गई मुहिम का हिस्सा बन रहे हैं।
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पंजाब के संगरूर जिले की रहने वाली अमनदीप कौर अभी 17 साल की हुई है और कृषि विज्ञान में स्नातक तक पढ़ाई कर चुकी है। पिता किसान है इसलिए खेती से जमीनी जुड़ाव है। खेती में पिता का हाथ बंटाने के लिए ट्रैक्टर चलाना भी सीख लिया और अब खुद भी खेती करती है।
अमनदीन कौर छह साल की उम्र से सांस की जुड़ी बीमार से परेशान थी। हर साल धान की कटाई के बाद उसे गांव व आसपास के इलाके में बहुत बड़े स्तर पर खेत में पड़ी पराली जलाई जाती थी। जिसके कारण वह हर साल पराली जलाने के मौसम में बीमार पड़ जाती थी। अमनदीन की तरह आसपास के कई बच्चे और बुजुर्ग भी सांस सबंधी बीमारी से परेशान हैं। आखिर अमनदीन कौर ने सबसे पहले अपने पिता को पराली नहीं जलाने के लिए राजी किया। अमनदीप ने मीडिया को दिए बयान में बताया कि मुझे छह साल की उम्र से ही सांस संबंधी बीमारी थी। हर साल धान की कटाई के बाद पराली जलाए जाने से यह समस्या बढ़ जाती थी। मेरे पिता के पास 20 एकड़ ज़मीन है और वो 25 एकड़ ज़मीन किराए पर लेकर खेती करते हैं। सबसे पहले मैंने अपने पिता को पराली नहीं जलाने के लिए राजी किया। अब हमारे खेत में पराली नहीं जलाई जाने लगी। इससे मुझे सांस संबंधी बीमारी में कुछ राहत महसूस हुई। उनके पिता को देखकर कई और किसानों ने भी खेत में पराली जलाना बंद कर दिया और गांव प्रदूषण से मुक्त होने लगा। साथ ही मुझे धुएं से छुटकारा मिला।
अमनदीप के गांव सहित आसपास के इलाकों में अब पराली कम जलाई जाती है। किसान धान की कटाई के बाद पराली को खेत में छोड़ देते हैं। जिससे खेतों को उर्वरक शक्ति मिल जाती है और खाद का इस्तेमाल कम करना पड़ता है। धीरे-धीरे इलाके की मिट्टी की हालत में सुधार हो रहा है। पराली न जलाने की वजह से खेत ज्यादा उपजाऊ हो गए हैं और अब 60 से 70 फ़ीसदी कम खाद का प्रयोग होता है। उसके गांव के सरपंच ने हिसाब से किसानों ने पराली जलाना 80 प्रतिशत की कम कर दिया है। जब सरकारी सिस्टम के तमाम प्रयास प्रदूषण में मिटाने में विफल रहे हैं, ऐसे में १७ साल की पंजाब की बेटी अमनदीप किसी प्रेरणा से कम नहीं है।
पराली जलाने के खिलाफ अमनदीप के प्रयासों की जितनी सराहना की जाए, उतना कम है। लेकिन अब पराली का कई कामों में उपयोग होने लगा है। पंजाब के जागरूक किसानों का कहना है कि पराली का उपयोग अब बायोगैस, सीएनजी, पेपर, गत्ता, बिजली, कोयला, बॉयोमॉस, स्ट्रा, उर्वरक, कैटल फीडिंग, बिजली बनाने वाली इकाइयों में होने लगा है। किसानों का मानना है कि अगर सरकार पराली के निस्तारण पर और ज्यादा ध्यान दें और किसानों को पराली निस्तारण के लिए समय पर उपकरण मिल सके तो भारत विश्व में पराली का सबसे बड़ा हब बन सकता है। अब घर बनाने में भी पराली का इस्तेमाल होने लगा है क्योंकि पराली से तापमान नियंत्रित रहता है।
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