प्रकाशित - 15 Nov 2022 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
भारत एक कृषि प्रधान देश हैं। भारत में 60 प्रतिशत आबादी कृषि क्षेत्र पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से निर्भर हैं। भारत के किसान अब पारंपरिक खेती के साथ-साथ अपनी आय बढ़ाने के लिए व्यावसायिक खेती की तरफ रुझान कर रहें हैं। इसी कड़ी में रबड़ की खेती करके किसान अच्छा मुनाफा प्राप्त कर सकते हैं। भारत रबड़ उत्पादन के मामले में विश्व में चौथे स्थान पर है। भारत में केरल सबसे ज्यादा रबड़ का उत्पादन करने वाला राज्य है। केरल के साथ ही भारत के अन्य राज्यों में भी रबड़ की खेती की जाती है। रबड़ का उपयोग करके उपयोग गाडि़यों के टायर और ट्यूबों के बनाने में तथा जूतों के तले और एड़ियाँ, बिजली के तार, खिलौने, बरसाती कपड़े, चादरें, खेल के सामान, बोतलों और बरफ के थैलों, सरजरी के सामान, टायर, इंजन की सील, गेंद, इलास्टिक बैंड व इलेक्ट्रिक उपकरणों इत्यादि को बनाने में भी किया जाता है। कोरोना जैसी महामारी में रबड़ का उपयोग करके पीपीटी किट भी बनाई गई थी। इसीलिए भारत के साथ-साथ विश्व में रबड़ की डिमांड दिन- प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। किसान भाइयों आज हम ट्रैक्टर जंक्शन की इस पोस्ट के माध्यम से आपके साथ रबड़ की खेती से जुड़ी सभी जानकारी साझा करेंगे।
विश्व में रबड़ की खेती करने वाले प्रमुख देशों में थाईलैंड, इंडोनेशिया, मलेशिया, भारत, चीन तथा श्रीलंका है। भारत का रबड़ के उत्पादन में विश्व में चौथा स्थान है। भारत में रबड़ की खेती करने वाले प्रमुख राज्य केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक हैं।
रबड़ की खेती करते समय अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए किसानों को कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक होता हैं। वो बातें इस प्रकार से हैं-
रबड़ की खेती करने के लिए हल्की नरम जलवायु की आवश्यकता होती हैं। रबड़ का पौधा मुख्य तौर पर दक्षिण पूर्व एशिया में उष्ण कटिबंधीय जलवायु वाले क्षेत्रों में पाया जाता है। रबड़ की खेती करने के लिए 25 से 30 डिग्री का तापमान उपयुक्त होती हैं और 150 से 200 सेंटीमीटर की वर्षा रबड़ की खेती करने के लिए उपयुक्त होती हैं।
रबड़ की खेती करने के लिए लेटेराइट युक्त लाल दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। मिट्टी का पीएच मान 4.5 से 6.0 के बीच का होना चाहिए।
रबड़ की खेती करने से पहले इसके पौधों की रोपाई करने के लिए खेत की तैयारी करना आवश्यक होता है। क्योंकि रबड़ की खेती करने के लिए इसके तैयार पौधों की रोपाई गड्ढ़ों में की जाती है। इसलिए खेत में गड्ढ़ों को तैयार करने से पहले खेत की कल्टीवेटर की मदद से गहरी जुताई करके मिट्टी को भुरभुरी कर लेनी चाहिए। उसके बाद पाटा लगाकर खेत को समतल करना आवश्यक होता है। पाटा लगाने से खेत समतल हो जाता हैं जिससे खेत की सिंचाई करने में आसानी होती हैं।
रबड़ के पौधों को लगाने का सही समय जून से जुलाई के मध्य का है। रबड़ के पौधों का अच्छा विकास करने के लिए अधिक पानी की आवश्यकता होती है, सूखा होने की स्थिति में पौधा कमजोर होता है, इसमें अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है।
भारतीय रबड़ अनुसंधान संस्थान ने कई सालों के शोध करने के बाद रबड़ की कई उन्नत किस्में विकसित की हैं, इन किस्मों की खेती से अच्छी मात्रा में लेटेक्स प्राप्त होता है। रबड़ की कुछ उन्नत किस्में हैं- तजीर 1, पीबी 86, बीडी 5, बीडी 10, पीआर 17, जीटी 1, आरआरआईआई 105, आरआरआईएम 600, पीबी 59, पीबी 217, पीबी 235, आरआरआईएम 703, आरआरआईआई 5, पीसीके-1, 2 और पीबी 260 आदि हैं।
रबड़ की खेती करते समय खेत की तैयारी करने के बाद रबड़ की पौधों की रोपाई गड्ढ़ों में की जाती हैं। इसके लिए खेत में एक गड्ढ़े से दूसरे गड्ढ़े के बीच 3 मीटर की दूरी रखना आवश्यक होता हैं। गड्ढ़े एक फीट चौड़े और एक फीट गहरे होने चाहिए। सभी गड्ढ़ों को एक कतार में तैयार करें। इसके साथ ही पौधों की रोपाई के समय मिट्टी के अनुसार कृषि विशेषज्ञों की सलाह के आधार पर जैविक खाद एवं रासायनिक उर्वरक जैसे पोटाश, नाइट्रोजन और फॉस्फोरस का उचित मात्रा में प्रयोग करें। रबड़ की पौधों की रोपाई के तुरंत बाद सिंचाई अवश्य कर दे।
रबड़ की पौधे की रोपाई के लिए गड्ढा तैयार करते समय प्रत्येक पौधे के गड्ढे में 10 से 12 किलो अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद या जैविक खाद और 225 ग्राम रॉक फॉस्फेट का उपयोग करना चाहिए। रबड़ के पौधों का विकास करने के लिए समय-समय पर पोटाश, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस से पर्याप्त मिश्रित उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए और रबड़ की खेती में खरपतवार नियंत्रण के लिए समय-समय पर निराई-गुड़ाई करना आवश्यक होता हैं।
रबड़ के पेड़ को अधिक पानी की जरूरत होती है, इसलिए इसके पौधों को बार-बार पानी देने की आवश्यकता होती है। रबड़ का पौधा सूखा जैसी स्थिति नहीं सहन कर पाता। इसलिए रबड़ के खेत में नमी बनाए रखने के लिए समय-समय पर सिंचाई करते रहना चाहिए।
रबड़ के पौधों को सही संतुलन और उचित जलवायु की जरूरत होती है। इसका अर्थ है, कि अधिक प्रकाश और नम भूमि पौधों को स्वस्थ रखने के लिए पर्याप्त उवर्रक प्रदान करता है। इसके पौधों पर पत्तियां मोमी वाली होती है, जिसका रंग शुरुआत में गुलाबी-कोरल का होता है। रबड़ के पौधे की लंबाई अधिक होती है, जिस वजह से इसे गिरने से रोकने के लिए लंबी लकड़ी का सहारा देना पड़ता है।
रबड़ का पेड़ एक बार लगाने पर 5 वर्ष का होने के बाद उत्पादन देना शुरु कर देता है, लेकिन 14 साल में उत्पादन उच्च स्तर पर पहुंचता है और लगभग 40 वर्षों तक पैदावार देता रहता है। एक एकड़ के खेत में रबड़ के 150 पौधे लगाए जा सकते हैं। एक पेड़ से एक साल में 2.75 किलो तक रबर का उत्पादन प्राप्त होता है। इस तरह से किसान भाई 100 से 350 किलो तक रबड़ का उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। रबड़ का एक पेड़ 14 साल से लेकर 25 साल तक दूध (लेटेक्स) का अच्छा उत्पादन प्राप्त होता है। हालांकि 25 साल बाद पेड़ों से लेटेक्स का उत्पादन कम प्राप्त होना शुरू हो जाता है। जिसके बाद इन पेड़ों को दूसरे कामों के लिए बेच दिया जाता है। सामान्तयः रबड़ के पेड़ 40 साल के बाद गिर जाते हैं। इन पेड़ों से प्राप्त लकड़ी का इस्तेमाल रबड़वुड फर्नीचर बनाने में होता है।
रबड़ की खेती की शुरुआत करने से पहले आप रबर बोर्ड व कृषि वैज्ञानिक से अधिक उत्पादन के लिए सलाह ले सकते हैं। छोटे व सीमांत किसान स्थानीय रबड़ नर्सरी से जाकर रबड़ के पौधे खरीद सकते हैं। रबड़ की खेती करने के लिए रबर बागान योजना के अंर्तगत किसानों को बीज उपलब्ध कराए जाते हैं। रबड़ की प्राप्त उपज की बिक्री की बात करें, तो किसान कंपनियां व रबड़ प्रोसेसिंग यूनिट्स को अपनी उपज बेच सकते हैं।
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