प्रकाशित - 17 Sep 2022 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
इस बार मानसून की अनियमितता के कारण कई राज्यों में किसानों को सरसों की जल्द पैदावार देने वाली किस्म तोरिया की खेती करने की सलाह दी जा रही है। इसके लिए कई राज्यों में किसानों को तोरिया के बीज उपलब्ध कराए जा रहे हैं। इसी क्रम में टीकमगढ़ कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों की ओर से गांव कोडिया में किसानों को तोरिया की खेती का प्रशिक्षण दिया गया। इसमें तोरिया की खेती की जानकारी दी गई। वैज्ञानिकों ने बताया कि खरीफ मौसम में शुरू में वर्षा कम एवं देर से होने पर जिले में अधिकांश गांवों में 10-15 प्रतिशत रकबा में फसल की बुवाई नहीं हो पाई है। ऐसी स्थिति में किसान खेतों में तोरिया जो सरसों की कम अवधि की फसल है इसे सितंबर में तीसरे सप्ताह तक बुवाई कर सकते हैं। उसके बाद नवंबर के अंतिम सप्ताह से दिसंबर के प्रथम सप्ताह तक गेहूं एवं जौ की बुवाई कर अधिक लाभ कमा सकते हैं। बता दें कि तोरिया कम समय में उगने वाली फसल हैं।
तोरिया जैसी कम फसलों की बुवाई करके किसान अतिरिक्त आय प्राप्त कर सकते है। तोरिया रबी मौसम में उगाई जाने वाली तिलहनी फसल है। तोरिया की कुछ किस्में 85 से 90 दिन में पककर तैयार हो जाती है। जो खेत अगस्त के आखिर में ज्वार, बाजरा आदि चारे वाली फसलों के व सब्जियों के बाद खाली हो जाते हैं, उनमें वैज्ञानिक तकनीक से तोरिया फसल उगाकर खाली खेतों का सदुपयोग करके लाभ कमा सकते हैं।
तोरिया की संगम किस्म 112 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। किसान इससे प्रति एकड़ करीब 6-7 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त कर सकते हैं। इसके अलावा तोरिया की कम अवधि में पकने वाली किस्मों में टीएल-15 और टीएच-68 है, जो 85 से 90 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इन किस्मों की औसत उपज छह क्विंटल प्रति एकड़ है।
सिंचित क्षेत्रों में तोरिया के बीजों की बुवाई के लिए प्रति एकड़ सवा किलो बीज पर्याप्त रहता है। तोरिया की बुवाई से पहले बीज को दो ग्राम काबेंडेजिम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित कर लेना चाहिए। वहीं फसल पाने के लिए एक पैकेट एजोटोबैक्टर जीवाणु खाद टीके से उपचारित करना चाहिए।
तोरिया के बीजों की बुवाई करते समय कतार से कतार की दूरी 30 से.मी. और बीज की गहराई चार से पांच सेमी रखनी चाहिए। वहीं पौधे से पौधे की दूरी 10 से 15 सेमी रखी जानी चाहिए।
किसानों को तोरिया की खेती में खाद व उर्वरक का प्रयोग मृदा परीक्षण की संस्तुतियों के अनुसार करना चाहिए। आम तौर पर तोरिया की बुवाई करते खेत में समय 50 किलो सुपर फासफेट और 25 किलो यूरिया प्रयोग करना चाहिए। इसके अलावा 10 किलो जिंक का किया जा सकता है। इसके बाद पहले पानी पर 25 किलो यूरिया प्रति एकड़ देनी चाहिए। यदि तोरिया में सुपर फास्फेट की जगह 18 किलो डीएपी डालनी हो तो दो कट्टे जिप्सम आखिरी जुताई के समय देनी चाहिए। यदि खेत असिंचित है तो प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन एवं फास्फोरस की मात्रा 40 एवं 20 किग्रा रखनी चाहिए। खेत सिंचित होने की दशा में ये अनुपात 60: 20 का रखें।
तोरिया में अगेती सिंचाई नहीं करनी चाहिए। सिंचाई हमेशा फूल व फलियां बनते समय ही करनी चाहिए। खरपतवार नियंत्रण के लिए बिजाई के तीन हफ्ते बाद एक गुड़ाई करनी चाहिए। तोरिया में मरोडिया रोग होने की संभावना रहती है। यदि ऐसा हो तो मरोडिया रोग प्रभावित पौधे निकालते चाहिए ताकि रोग का प्रकोप अधिक न हो। इसके लिए समय-समय पर खेत की निराई-गुड़ाई करते रहना चाहिए। जहां सरसों की फसल में चेपा लगता है। वहीं तोरिया की फसल में चेपा प्राय: नहीं लगता है। अन्य कीटों के नियंत्रण के लिए किसान 200 मिली. मैलाथियान 50 ईसी. 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिडक़ाव करके कीटों से बचाव कर सकते हैं।
तोरिया की कटाई फलियां पकने पर ही करनी चाहिए, क्योंकि हरी फलियां काटने पर दाना चिपक जाता है। अब बात करें इसकी उपज की तो इसकी उन्नत किस्म से करीब 6 से 7 क्विंटल तक उपज प्राप्त की जा सकती है।
तोरिया में 44 प्रतिशत तेल की मात्रा पाई जाती है। जबकि राया सरसों में केवल 40 प्रतिशत ही तेल की मात्रा होती है। तोरिया की खेती करने से खेत को लाभ होता है। खेत में नमी बनी रहती है जिससे किसान तोरिया के बाद गेहूं की फसल भी ले सकते हैं।
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