प्रकाशित - 22 Dec 2024 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
इस समय रबी फसलों का सीजन चल रहा है। रबी फसलों में गेहूं, चना, सरसों आदि आती हैं। इसमें से सबसे अधिक तिलहनी फसलों में सरसों की खेती (Mustard Cultivation) किसानों द्वारा प्रमुख रूप से की जाती है। अधिकांश रूप से सरसों की खेती देश के कई राज्यों में की जाती है जिनमें मुख्य रूप से राजस्थान, पंजाब, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात, बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, असम शामिल हैं जहां सरसों की खेती प्रमुखता से की जाती है। सरसों की खेती मुख्य रूप से इसके तेल के लिए की जाती है। ऐसे में किसान अधिक तेल की मात्रा वाली सरसों की किस्मों (Varieties of Mustard) की बुवाई करते हैं।
इन दिनों पड़ रही कड़ाके की सर्दी और कोहरे की वजह से सरसों में कीट–रोगों का प्रकोप दिखाई दे रहा है। इसे लेकर किसान सरसों की पैदावार को लेकर चिंतित हैं। किसानों की चिंता को देखते हुए बिहार के कृषि विभाग की ओर से किसानों को सरसों की फसल में लगने वाले दो प्रमुख कीटों की पहचान और प्रबंधन की जानकारी दी गई है। किसान सरसों के कीटों की पहचान करके उनकी रोकथाम के उपाय करके संभावित फसल हानि से बच सकते हैं।
इन दिनों सरसों में लाटी कीट (Lathi Insect) व आरा मक्खी (Sawfly) का प्रकोप अधिक रहता है। इस रोग से फसल को बहुत नुकसान होता है। यदि समय पर इसकी रोकथाम नहीं की जाए तो फसल को नुकसान होता है। कभी–कभी तो इस रोग के प्रकोप से पूरी फसल चौपट हो जाती है। ऐसे में किसानों को सरसों के इन रोगों के बारे में जानकारी अवश्य होनी चाहिए ताकि वे समय पर इसकी रोकथाम के उपाय कर सके और नुकसान से बच सकें।
सरसों का लाही कीट छोटे भूरे या काले रंग का होता है तो पौधों का रस चूसकर उनके विकास को बाधित कर देता है। लाही कीट द्वारा पौधे का रस चूसने से पौधों की पत्तियां धीरे-धीरे मुरझाने लगती हैं और सिकुड़ जाती हैं। इससे पौधों की बढ़वार रूक जाती और पोधे कमजोर हो जाता है। इसका प्रभाव यह होता है कि इसकी फलियों में दाना नहीं बन पाता है जिसका असर फसल पैदावार पर पड़ता है। फसल की पैदावार में भारी गिरावट आ जाती है जिससे किसान को नुकसान होता है। लेकिन यदि समय पर इस कीट से फसल को बचाने के उपाय किए जाए तो इस पर नियंत्रण किया जा सकता है।
सरसों की फसल को लाही कीट से बचाव के लिए कृषि विभाग द्वारा जो उपाय बताएं गए हैं, वे इस प्रकार से हैं–
लाही कीट के प्रकोप पर नियंत्रण पाने के लिए किसान पीली स्टिकी ट्रैप का प्रयोग कर सकत हैं। इसके लिए 5–6 पीली स्टिकी ट्रैप प्रति एकड़ खेत में लगाया जाना चाहिए। ये ट्रैप कीटों को आकर्षित करती है और उन्हें अपने में फंसा लेती हैं, इसमें फंसकर यह कीट मर जाते हैं, जिससे उनकी संख्या में कमी आती है।
सरसों के खेत में खरपतवार न पनप पाए। इसके लिए समय–समय पर इसे हटाते रहना चाहिए। क्योंकि खरपतवार होने से इन कीटों को इसमें शरण मिल जाती है और वे पनपने लगते हैं और इनका प्रकोप फसल पर पड़ने लगता है। ऐसे में खेत को खरतवार से रहित रखें। खरपतवार उन अवांच्छनीय पौधों को कहा जाता है जो खेत में अनायास ही उग जाते हैं जिससे फसल को किसी प्रकार का लाभ नहीं होता है।
सरसों की फसल में लाही कीट के प्रकोप से निपटने के लिए किसान रसायनिक उपाय भी कर सकते हैं। इसके लिए जब सरसों की फसल 40 से 45 दिन की हो जाए और लाही कीटों का प्रकोप दिखाई दे तो इसके लिए आप क्लोरोपायरीफॉस 20 प्रतिशत ईसी 200 मिलीलीटर दवा को 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ के हिसाब से स्प्रे की सहायता से छिड़काव कर सकते हैं। इससे लाही कीट सहित अन्य कीटों को नष्ट किया जा सकता है।
सरसों में आरा मक्खी कीट का भी प्रकोप अधिक देखा गया है। इससे फसल को काफी नुकसान होता है। इस कीट के लार्वा काले व भूरे रंग के हाते हैं। ये लार्वा सरसों की पत्तियों के किनारे या पत्तियों के बीच में रहते हैं। ये मक्खी सरसों की पत्तियों को टेढ़े–मेढ़े तरीके से खाती है और उसमें छेद कर देती है। इस तरह आरा मक्खी कीट पूरे पौधे की पत्तियों का खाकर नष्ट कर देती है। इससे पौधा पत्ता रहित हो जाता है। परिणाम स्वरूप पौधा ठीक से पनप नहीं पता है जिसका असर सरसों की पैदावार पर पड़ता है।
आरा मक्खी कीट से सरसों की फसल को बचाने के लिए किसान भाई कुछ उपाय करके इस पर नियंत्रण कर सकते हैं। आरा मक्खी कीट के नियंत्रण के लिए किए जाने वाले उपाय इस प्रकार से हैं-
जब सरसों का पौधा थोड़ा बड़ा हो रहा हो तो उस अवस्था में सिंचाई करना काफी असरकारक माना गया है। ऐसा करने से आरा मक्खी के लार्वा पानी में डूबने से मर जाते हैं। इसी के साथ सुबह और शाम के समय आरा मक्खी के ग्रबों को इक्ट्ठा करके इन्हें नष्ट कर देना चाहिए।
आरा मक्खी कीट का प्रकोप होने पर सरसों की फसल पर मैलाथियान 50 ईसी प्रति 400 मिली प्रति एकड़ या क्विनालफॉस 25 ईसी प्रति 250 मिली दवा को 200 से 250 लीटर पानी में प्रति एकड़ के हिसाब से लेकर छिड़काव करना चाहिए।
नोट: किसान फसल में कीट नियंत्रण के लिए किसी भी दवा का इस्तेमाल करने से पहले अपने निकटतम कृषि विभाग से सलाह अवश्य लें और इसके बाद ही किसी रासायनिक दवा का उपयोग करें।
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