प्रकाशित - 05 Apr 2024
इस समय देश के अधिकांश राज्यों में रबी की फसल (Rabi crop) गेहूं व सरसों सहित अन्य फसलों की कटाई की जा रही है। इस समय किसान कुछ तकनीकें अपनाकर मिट्टी की उर्वरक क्षमता को बढ़ा सकते हैं। इसका फायदा किसानों को अगली बाई जाने वाली फसल में मिलेगा। इससे न केवल फसल की बेहतर पैदावार होगी बल्कि खेत की उपजाऊ क्षमता भी बनी रहेगी, यानी इससे आपको एक साथ दो तरीके से लाभ होगा।
अक्सर देखने में आता है कि किसान पिछली फसल की कटाई करके इसके अवशेषों को जला देते हैं ताकि वे अगले सीजन की बुवाई समय पर कर पाएं। लेकिन फसल अवशेष जलाने से वायु प्रदूषण फैलता है और मिट्टी की सेहत को भी नुकसान पहुंचता है। यदि इन फसल अवशेषों का सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए तो इससे खेती के लिए बहुत अच्छी खाद तैयार की जा सकती है जो पैदावार बढ़ाने के साथ ही मिट्टी की उपजाऊ क्षमता भी बढ़ाने में सहायक होगी।
आज हम ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से आपको फसल अवशेषों का सही से इस्तेमाल करके उससे खाद बनाने के तरीके बता रहे हैं जिसके प्रयोग से आप खेत को उपजाऊ बनाने के साथ ही फसल की पैदावार भी बढ़ा सकते हैं।
कृषि विभाग के अधिकारियों द्वारा किसानों को सलाह दी जा रही है कि किसान रबी फसलों की कटाई के बाद शेष बचे फसल अवशेषों को मिट्टी में दबाकर उसकी खाद बना सकते हैं। इसके अलावा किसान हरी खाद के लिए ढैंचा जैसी फसलों की खेती भी कर सकते हैं। किसान गेहूं की पराली यानी फसल अवशेषों को रोटावेटर की सहायता से खेत की मिट्टी में मिलाने से देसी खाद (local fertilizer) बना सकते हैं। इससे फसलों की पैदावार में बढ़ोतरी होने के साथ ही इसकी लागत में भी कमी आती है। कृषि विभाग की ओर से दी जा रही सलाह के मुताबिक किसान अपने खेत की नरवाई यानी पराली पर रोटावेटर चलाकर इसे खेत की मिट्टी में मिलाएं। फसल अवशेष यानी पराली को खेत की मिट्टी में मिला देने से ये अगली फसल के लिए खाद का काम करेगी। इससे खेत को नुकसान नहीं होगा और फसल की पैदावार भी अच्छी मिलेगी।
किसान खाली खेत में ढैचा की बुवाई करके हरी खाद और बीज दोनों प्राप्त कर सकते हैं। ढैंचा के हरे पौधों का उपयोग हरी खाद के लिए किया जाता है। ढैंचा एक दलहनी फसल है और भूमि की सेहत के लिए यह काफी लाभकारी मानी जाती है। इससे भूमि की संरचना सुधरती है और भूमि उपजाऊ बनती है। किसान भाई अपने खेत की उर्वरक क्षमता बढ़ाने के लिए ढैंचा की बुवाई कर सकते हैं। खास बात यह है कि इसकी खेती के लिए कृषि विभाग की ओर से किसानों को 80 प्रतिशत सब्सिडी भी दी जाती है। किसानों को इसके बीज की खरीद पर सब्सिडी दी जाती है। ढैंचा की बुवाई के लिए कई उन्नत किस्में है, जिनमें पंत ढैंचा-1, पंजाबी ढैंचा 1, सीएसडी 123, सीएसडी 137, हिसार ढैंचा 1 आदि शामिल हैं। यह किस्में 120 से लेकर 150 दिन के भीतर कटाई के लिए तैयार हो जाती है।
हरी खाद के लिए ढैंचा को बाेने के 40 से 50 दिन बाद नरम अवस्था में पटेला चलाकर और मिट्टी पलटने वाले हल को चलाकर फसल को खेत में ही दबा दिया जाता है। खेत में कम नमी हो तो पानी लगाया जाता है। इससे फसल गल-सड़कर खाद में परिवर्तित हो जाती है। हरी खाद दबाने के 22 से 25 दिन के बाद किसान फसल की बिजाई कर सकते हैं। वहीं धान की रोपाई हरी खाद दबाने के अगले दिन से शुरू की जा सकती है।
मूंग भी दलहन फसल है। इसकी बुवाई से भी खेत की उर्वरा शक्ति को बढ़ाया जा सकता है। मूंग की कटाई के बाद शेष रहे अवशेषों को किसान मिट्टी में मिलाकर हरी खाद बना सकते हैं। मूंग की हरी खाद धान की पैदावार बढ़ाने में सहायक होती है। ऐसे में जो किसान खरीफ सीजन में धान की बेहतर पैदावार प्राप्त करना चाहते हैं, वे रबी फसल की कटाई के बाद खाली खेत में मूंग की बुवाई करके काफी अच्छा लाभ कमा सकते हैं। मूंग के बाजार में भाव भी ठीक-ठाक मिल जाते हैं। इसके अलावा इसके अवशेषों से बनी हरी खाद का लाभ अगली फसल की पैदावार बढ़ाने में मिलता है। इस तरह किसान भाई खाली खेत में मूंग की फसल लेकर अतिरिक्त कमाई कर सकते हैं। मूंग की बहुत सी किस्में हैं जो बेहतर पैदावार देती हैं। मूंग की खेती में संरक्षिक विधि अपनाकर खेती की लागत को कम किया जा सकता है।
मूंग की हरी खाद बनना काफी आसान है। इसमें पौधे से मूंग की कटाई करने के बाद जो पत्ते व डंठल बचते हैं उन्हें खेत में दबा दिया जाता है। इसी से हरी खाद तैयार हो जाती है। मूंग की फसल 60 से 70 दिन के बहुत कम समय में तैयार हो जाती है। इसके बाद इसकी तुड़ाई करने के बाद इसके हरे पौधों को मिट्टी पलटने वाले हल की सहायता से खेत में दबा दिया जाता है। मिट्टी में दबा देने के बाद ये जल्दी ही सड़ जाते हैं और अगली फसल के लिए खाद का काम करते हैं।
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