प्रकाशित - 15 Mar 2023 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
हमारे देश के किसान पारंपरिक खेती के साथ-साथ अपनी आय को बढ़ाने के लिए व्यावसायिक खेती की तरफ रुख कर रहे हैं। इसी कड़ी में किसान भाई सूरजमुखी की खेती करके अच्छा लाभ व मुनाफा कमा सकते हैं। सूरजमुखी एक तिलहनी फसल है, जिसके बीज से निकलने वाला तेल बेहतर मुनाफा दे सकता है। भारत में सूरजमुखी को नकदी फसल के रूप में भी जाना जाता है। भारत में सूरजमुखी की खेती पहली बार 1969 में उत्तराखंड के पंतनगर जिले में की गई थी। सूरजमुखी एक ऐसी तिलहनी फसल है, जिस पर प्रकाश का कोई खास असर नहीं पड़ता है। किसान भाई इसकी खेती खरीफ, रबी और जायद तीनों सीजन में कर सकते हैं। यदि आप इसकी खेती से अधिक लाभ प्राप्त करना चाहते हैं तो मार्च का महीना सूरजमुखी की खेती करने का सबसे उपयुक्त समय है। इसके बीजों में 45 से 50 फीसदी तक तेल पाया जाता है। पिछले कुछ वर्षों में सूरजमुखी अपनी उत्पादन क्षमता और अधिक मूल्य के कारण इसकी खेती किसानों के बीच लोकप्रिय हो रही है। साथ ही देश में बदलती जलवायु और तिलहन फसलों की बढ़ती कीमतों को देखते हुए किसान सूरजमुखी की खेती करके अच्छा लाभ कमा सकते है।
किसान भाइयों आज ट्रैक्टर जंक्शन की इस पोस्ट के माध्यम से हम आपके साथ सूरजमुखी की खेती से जुड़ी सभी जानकारियां साझा करेंगे।
भारत में सूरजमुखी की खेती सबसे पहले 1969 में की गई थी, जिसके बाद उत्तराखंड के पंतनगर जिले में इसकी खेती के अच्छे परिणाम देखे गये। अब हर साल भारत में 15 लाख हेक्टेयर से अधिक भूमि पर सूरजमुखी की खेती की जाती है, जिससे करीब 90 लाख टन से अधिक पैदावार होती है। भारत में सूरजमुखी की खेती महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, उत्तरप्रदेश, आंधप्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड और पंजाब के किसान प्रमुख रुप से इसकी खेती बड़े पैमाने पर करते हैं।
सूरजमुखी के बीज विभिन्न प्रकार के औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं, जिनका सेवन करना स्वास्थ्य के लिए लाभकारी माना जाता है। सूरजमुखी के बीज में कैल्शियम, प्रोटीन, विटामिन और कई अन्य पौष्टिक तत्वों से भरपूर होते हैं। ये हमारे शरीर को कई तरह की बीमारियों से बचाने का काम कर सकते हैं। सूरजमुखी के बीज आपके दिल को स्वस्थ रखने का काम करते हैं। इतना ही नहीं, इसके तेल व बीजों का इस्तेमाल करने से कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों से भी आपको बचाता है। सूरजमुखी के तेल का सेवन करने से लीवर भी सही रहता है। ऑस्टियोपरोसिस जैसी हड्डियों की बीमारी से बचाव करने में भी सूरजमुखी के तेल का सेवन फायदेमंद होता है। सूरजमुखी आपके शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को भी घटाता है, जिससे आपका दिल को स्वस्थ रखना आसान हो जाता है और इसके तेल के सेवन से हर्ट अटैक का खतरा भी कम होता है। इसके साथ ही इसके तेल का इस्तेमाल करने से आपकी त्वचा में निखार आता है और बाल भी मजबूत होते है।
सूरजमुखी की खेती वर्ष में तीन बार रबी, खरीफ एवं जायद सीजन में की जा सकती है। जायद मौसम में सूरजमुखी की बुवाई करने के लिए फरवरी से मध्य मार्च तक बोना सबसे उपयुक्त होता है, जायद मौसम में इसकी बुवाई करते समय कतार से कतार की दूरी 4 से 5 सेटीमीटर व एक पौधे से दूसरे पौधे की दूरी 25 से 30 सेटीमीटर की दूरी पर बुवाई करना सबसे उपयुक्त होता हैं।
सूरजमुखी की खेती करने के लिए शुष्क जलवायु होनी चाहिए। इसकी बुवाई करने के लिए 15 डिग्री तक का तापमान उपयुक्त होता है और इसकी खेती करने के लिए खेत की मिट्टी का पीएच मान 5 से 7 के बीच का होना चाहिए। इसके बीजों के अंकुरण के लिए अधिक तापमान की जरूरत होती है साथ ही इसके पौधे की वृद्धि के लिए सामान्य तापमान की आवश्यकता होती है।
सूरजमुखी की खेती किसी भी प्रकार की भूमि में की जा सकती है। इसकी खेती करने के लिए अच्छी जल निकासी वाले खेत उपयुक्त होते हैं। सूरजमुखी की खेती करने के लिए खेत की मिट्टी की जांच करवाना चाहिए, ताकि मिट्टी की जरूरतों के अनुसार खाद व उर्वरक और बीजों का इस्तेमाल किया जा सके। सबसे पहले हल या कल्टीवेटर की मदद से खेत की 2 से 3 बार गहरी जुताई करें। उसके बाद खेत को कुछ दिनों के लिए खाली छोड़ दे इससे खेत में खुली धूप लगने से खेत में कीड़े- मकौड़े का प्रकोप कम हो जाता है। इसके बाद खेत की मिट्टी को भुरभुरा बनाने के लिए 2 से 3 बार रोटावेटर की मदद से खेत की जुताई करें व खेत में पाटा लगाकर समतल कर ले। खेत में पाटा लगाने से खेत में सिंचाई करने में आसानी होती हैं।
मार्डन :- सूरजमुखी की इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 6 से 8 क्विंटल प्रति एकड़ है। इसकी फसल की समय अवधि 80 से 90 दिन है। इसके पौधों की ऊँचाई 90 से 100 सेटीमीटर तक की होती है। इस किस्म की खेती बहुफसलीय क्षेत्र के लिए सबसे उपयुक्त है। इस किस्म में तेल की मात्रा 38 से 40 प्रतिशत तक की होती है।
बी.एस.एच. – 1 :- सूरजमुखी की इस प्रजाति की उत्पादन 10 से 15 किवंटल प्रति एकड़ है तथा इसकी फसल का समय 90 से 95 दिन है। इसके पौधों की ऊँचाई 100 से 150 सेटीमटर तक की होती है। इस किस्म में तेल की मात्रा 41 प्रतिशत तक की होती है।
एम.एस.एच. :- सूरजमुखी की इस प्रजाति का उत्पादन 15 से 18 किवंटल प्रति एकड़ है तथा इसकी फसल उत्पादन का समय 90 से 95 दिन है। इस किस्म के पौधों की ऊँचाई 170 से 200 सेटीमीटर तक की होती है। इस किस्म के बीज में तेल की मात्रा 42 से 44 प्रतिशत तक की होती है।
सूर्या :– सूरजमुखी की इस किस्म का उत्पादन 8 से 10 किवंटल प्रति एकड़ है तथा इसकी फसल उत्पादन का समय 90 से 100 दिन है। इस किस्म के पौधों की ऊँचाई 130 से 135 सेटीमीटर तक की होती है। इस किस्म की खेती देर से बुवाई करने के लिए उपयुक्त है। इस किस्म में तेल की मात्रा 38 से 40 प्रतिशत तक की होती है।
सूरजमुखी एक सदाबहार फसल है, जिसकी बुवाई रबी, खरीफ व जाय़द तीनों सीजन में की जा सकती है। इसकी बीजों की बुवाई छिड़काव विधि व कतार विधि से कर सकते हैं। लेकिन कतार विधि से ही सूरजमुखी के बीजों की बुवाई करनी चाहिये, ताकि फसल प्रबंधन कार्यों में आसानी रहे। इसके लिये लाइनों के बीच 4 से 5 सेटीमीटर और एक पौधे से दूसरे पौधे के बीच की दूरी 25 से 30 सेटीमीटर तक की होनी चाहिए।
सूरजमुखी की बुवाई करने से पहले खेत की पहली जुताई करते समय 7 से 8 टन प्रति एकड़ की दर से सड़ी हुई गोबर खाद खेत में मिलाएं व अच्छी उपज के लिए सिंचित अवस्था में यूरिया 130 से 160 किलोग्राम, एसएसपी 375 किलोग्राम व पोटाश 66 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से खेत में डाले। नाइट्रोजन की 2/3 मात्रा व स्लफर व पोटाश की समस्त मात्रा बुवाई के समय प्रयोग करें एवं नाइट्रोजन की 1/3 मात्रा को बुवाई के 30 से 35 दिन बाद खेत की पहली सिंचाई के समय खड़ी फसल में देना चाहिए।
जायद (फरवरी-मार्च माह में) में बोयी गई सूरजमुखी की फसल में 3 से 4 सिंचाई की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई बुवाई के 30 से 35 दिन बाद करें व पहली सिंचाई के बाद नाइट्रोजन की 1/3 मात्रा का उपयोग करें। इसके बाद 25 से 30 दिन के अंतराल पर इसकी सिंचाई अवश्य करते रहे।
सूरजमुखी की फसल में एफिड्स, जैसिड्स, हरे रंग की सुंडी व हेड बोरर जैसे कीड़ो का प्रकोप अधिक होता है। रस चूसक कीट, एफिड्स, जैडिस जैसे कीड़ों की रोकथाम करने के लिए इमिंडाक्लोप्रिड 125 ग्राम प्रति एकड़ या एसिटामिप्रिड 125 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिडक़ाव करें व सूंडी व हैड बोरर कीट के नियंत्रण के लिए क्विनालाफॉस 20 प्रतिशत 1 लीटर दवा को या प्रोफेनोफॉस 50 ईसी 1.5 लीटर दवा को 600 से 700 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें।
सूरजमुखी की फसल में मुख्यत: रतुआ, हेड राट, राइजोपस हेड राट, डाउनी मिल्ड्यू, जैसी रोग लगते हैं। पत्ती में झुलसा रोग के नियंत्रण हेतु मेन्कोजेब 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर फसल पर छिडक़ाव करें।
सूरजमुखी की फसल की कटाई उस समय करें जब कि फूल का पिछला हिस्सा नींबू जैसा पीला रंग का हो जाए और फूल झड़ने लग जाए तो इसकी फसल को कटाई के लिए तैयार समझना चाहिए। इस स्थिति में फूल को काटकर 3 से 4 दिन खुली जगह पर सूखने के लिए छोड़ दें। फूल के सूखने के बाद डंडों से पीटकर इसके बीजों को निकाल लेना चाहिए। इसकी एक एकड़ की फसल से 8 से 10 क्विंटल तक का उत्पादन प्राप्त हो सकता है।
सूरजमुखी की फसल से बीज निकलने के बाद अच्छी तरह सुखा लेना चाहिए। बीज में 8 से 10 प्रतिशत नमी से अधिक नहीं रहनी चाहिएI सूरजमुखी की बीजों से 3 महीने के अन्दर तेल निकल लेना चाहिए अन्यथा इसके तेल में कड़वाहट आ जाती है।
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