Published - 29 Mar 2022
खेती किसानी के अंतर्गत केवल सब्जियों की खेती करना भी खास फायदे का सौदा रहता है। कम भूमि वाले किसानों के लिए तो सब्जियों की खेती और भी अधिक लाभप्रद हो सकती है क्योंकि इसमें देखभाल अच्छी हो सकती है। यहां आपको ट्रैक्टर जंक्शन की इस पोस्ट के माध्यम से गर्मी के मौसम में उगाई जाने वाली भिंडी फसल के बारे में संपूर्ण जानकारी दी जा रही है। किसान भाई इसे ध्यान से पढ़ें और भिंडी की खेती यहां बताए गए तरीके से करें ताकि आपको कम लागत में अधिक मुनाफा हो सके। सब्जियों की पैदावार से किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार आता है और वे अच्छी कमाई कर सकते हैं।
भिण्डी की फसल की बुआई करने से पहले आपको उस जमीन को तैयार करना चाहिए जहां आप यह फसल करना चाहते हैं। यह फसल गर्मी और सर्दी दोनो ऋतुओं में होती है लेकिन गर्मी की भिंडी अधिक मुनाफा देने वाली होती है क्योंकि अक्सर सीजन की सब्जियों की डिमांड ज्यादा रहती है। यहां बता दें कि भिंडी को उत्तम जल निकास वाली जमीन पर उगाया जाना चाहिए। इसके लिए भूमि का पीएच मान 7.0 से 7.8 होना सही रहता है। भूमि की दो से तीन बार जुताई की जानी चाहिए। मिट्टी भुरभुरी हो जाए तब एक पाटा लगा कर इसे समतल कर लें। भिंडी की बुआई का समय यूं तो फरवरी से ही शुरू हो जाता है लेकिन यह मार्च के अंतिम दौर तक चलता है। इसके बाद जून या जुलाई में वर्षाकालीन भिंडी की बुआई होती है।
भिंडी की बुआई करने से पहले यह भली भांति जान लें कि यदि सही तरीके से भिंडी की बुआई की जाएगी तो पौधों में फलत अच्छा होगा। कतार से कतार की दूरी कम से कम 40 से 45 सेमी होनी चाहिए। वहीं सिंचित अवस्था में 2.5 से 3 किलोग्राम एवं असिंचित अवस्था में 5 से 7 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है। संकर किस्मों के लिए 5 किलोग्राम बीज पर्याप्त रहता है। भिंडी के बीज सीधे खेत में ही बोए जाते हैं। बीज 3 सेमी से ज्यादा गहराई में नहीं डालें। वहीं बुआई से पहले भिंडी के बीजों को 3 ग्राम में कोजेब कार्बोडाजिम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए। पूरे खेत को उचित आकार की पट्टियों में बांट लें जिससे कि सिंचाई करने में सुविधा हो। वर्षा ऋतु जल भराव से बचाव के लिए उठी क्यारियों में भिंडी की बुआई करना उचित रहता है।
बता दें कि भिण्डी की फसल में अच्छा उत्पादन लेने के लिए प्रति हेक्टेयर क्षेत्र में लगभग 15 से 20 टन गोबर की खाद एवं नत्रजन एवं स्फुर और पोटाश की क्रमश: 80 किग्रा. एवं 60 किग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में देना चाहिए। नत्रजन की आधी मात्रा स्फुर एवं पोटाश की क्रमश: 80 किलोग्राम और 60 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में देना चाहिए। नत्रजन की आधी मात्रा स्फुर एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुआई से पहले भूमि में देना चाहिए। इसके बाद नत्रजन 30 से 40 दिनों के अंतराल पर देना चाहिए।
भिंडी की खेती के लिए यह भी जरूरी है कि इसमें समय-समय पर निराई और गुड़ाई की जाए। खेत को खरपतवार से मुक्त रखें। बुआई से 15-20 दिन बाद प्रथम निराई एवं गुड़ाई करना जरूरी होता है। खरपतवार नियंत्रण के लिए रासायनिक कीटनाशकों को प्रयोग किया जा सकता है। खरपतवारनाशी दवा का प्रयोग भी कर सकते हैं। इसे बीज बोने से पहले मिलाने से भी प्रभावी खरपतवार नियंत्रण किया जा सकता है।
भिंडी की खेती (okra cultivation) में सिंचाई मार्च में बुआई से 10-12 दिन बाद करनी चाहिए। इसके बाद अप्रैल में 7 या 8 दिन और मई एवं जून में 4-5 दिन में सिंचाई करना जरूरी होता है। बरसात के दिनों में सिंचाई की जरूरत नहीं होती। ध्यान रखें खेत में पानी जमा नहीं होने पाए।
भिंडी की उन्नत किस्मे अच्छी पैदावार देती हैं। इसकी उत्तम किस्में इस प्रकार हैं-:
बता दें कि भिंडी की सब्जी स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक होती है। इससे कैंसर की बीमारी दूर रहती है। वहीं यह हृदय संबंधी विकारों को दूर करती है। डायबिटीज के मरीजों को भी भिंडी का सेवन फायदेमंद रहता है। इसके अलावा अनमिया रोग में भिंडी का सेवन भी लाभकारी रहता है।
अगर सही तरीके से उन्नत किस्म के बीजों के साथ भिंडी की खेती की जाए तो एक एकड़ में 5 लाख रुपये तक की आमदनी हो सकती है। इसमें लागत निकाल दें तो कम से कम साढ़े तीन लाख रुपये की बचत होती है। भिंडी की मांग हर मंडी में रहती है और सीजन में इसके भाव भी अच्छे रहते हैं। बता दें भिंडी की फसल के प्रमुख राज्यों में झारखंड, मध्यप्रदेश, गुजरात, पंजाब, उत्तरप्रदेश, असम, महाराष्ट्र आदि हैं। इसके अलावा हरियाणा एवं राजस्थान मेंं भी भिंडी की खेती खूब की जाने लगी है।
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